अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 2
ऋषिः -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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तस्य॑ अनु॒ निभ॑ञ्जनम् ॥
स्वर सहित पद पाठतस्य॑ । अनु॒ । निभ॑ञ्जनम् ॥१३१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्य अनु निभञ्जनम् ॥
स्वर रहित पद पाठतस्य । अनु । निभञ्जनम् ॥१३१.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(तस्य) हिंसक विघ्न का (अनु) लगातार (निभञ्जनम्) विनाश होवे ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य पूर्वज विद्वानों के समान विघ्नों को हटाकर अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१-॥
टिप्पणी
२−(तस्य) तर्द हिंसे-डप्रत्ययः। हिंसकस्य विघ्नस्य। चौरस्य (अनु) निरन्तरम् (निभञ्जनम्) विनाशनम् ॥
विषय
मन्दन व भञ्जन
पदार्थ
१. गतमन्त्रों में वर्णित धन के प्रकरण में ही कहते हैं कि एक [श्वा-] प्रवृद्ध ऐश्वर्यवाले व्यक्ति के (आ अमिनोन्) = समन्तात् धन का प्रक्षेपण हुआ है [मि प्रक्षेपणे]-मेरे चारों ओर धन ही धन है (इति) = यह सोचकर (भद्यते) = सुखी होता है-आनन्द का अनुभव करता है। अपने को धन में लोटता हुआ [rolling in the wealth] देखकर प्रसन्न होता है। २. परन्तु यह प्रसन्नता स्थायी नहीं होती। यह व्यक्ति धन के मद में विषयों में फंस जाता है और (अनु) = इस भोगप्रवणता के कुछ बाद (तस्य अनु निभञ्जनम्) = उस भोगासक्त धनी पुरुष का भजन [आमर्दन-विनाश] हो जाता है।
भावार्थ
जो व्यक्ति धनमदमत्त हुआ-हुआ भोगासक्त हो जाता है, वह थोड़े दिनों के विलास के बाद शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है।
भाषार्थ
(अनु) तत्पश्चात्, (तस्य) उस कल्याणमय और सुखी के क्लेशों की ग्रन्थि, (निभञ्जनम्) भग्न हो जाती है, टूट-फूट जाती है।
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
The obstacles of his spiritual journey are removed, eliminated.
Translation
Let there be always removal of obstacles.
Translation
Let there be always removal of obstacles.
Translation
There are hundreds of splendorous powers, like the holies.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(तस्य) तर्द हिंसे-डप्रत्ययः। हिंसकस्य विघ्नस्य। चौरस्य (अनु) निरन्तरम् (निभञ्जनम्) विनाशनम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(তস্য) হিংসক বিঘ্নের (অনু) নিরন্তর (নিভঞ্জনম্) বিনাশ হোক ॥২॥
भावार्थ
মনুষ্য পূর্বজ বিদ্বানদের মতো বিঘ্নসমূহ দূর করে অনেক প্রকার ঐশ্বর্য প্রাপ্ত করুক॥১-৫॥
भाषार्थ
(অনু) তৎপশ্চাৎ, (তস্য) সেই কল্যাণময় এবং সুখী ক্লেশের গ্রন্থি, (নিভঞ্জনম্) ভগ্ন হয়ে যায়।
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