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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 131 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 131/ मन्त्र 16
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - याजुषी गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
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    शयो॑ ह॒त इ॑व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शय॑: । ह॒त: । इ॒व ॥१३१.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शयो हत इव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शय: । हत: । इव ॥१३१.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 16
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    हिन्दी (3)

    विषय

    ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (शयः) साँप [के समान शत्रु] (हतः) मारा हुआ (इव) जैसे है ॥१६॥

    भावार्थ

    मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥

    टिप्पणी

    १६−(शयः) शीङ् शयने-अच्। सर्पः। सर्प इव शत्रुः (हतः) नाशितः (इव) यथा ॥

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    विषय

    अहिंसा-वासनाशून्यता

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार हे ब्रह्मनिष्ठ [अश्वत्थ]! तू (अरत् उपरम) = [ऋto kill]-हिंसा से उपरत हो। किसी भी प्राणी का तू हिंसन करनेवाला न बन। २. (हत: इव) = जिसकी सब वासनाएँ मर गई हैं, ऐसा बना हुआ तू (शय:) = [शी अच्] इस संसार में निवास करनेवाला हो [शेते इति शयः] ३. ऐसे वासनाशुन्य व्यक्ति को (पूरुषः) = वह परम पुरुष प्रभु (व्याप) = विशेष रूप से प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    हम हिंसा से निवृत्त हों। वासनाओं को मारकर संसार में पवित्र जीवनवाले बनें। तभी हमें उस परमपुरुष की प्राप्ति होगी।

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    भाषार्थ

    ऐसा हो जा (इव) जैसे कि कोई (शयः) सोया हुआ होता है, और (हतः) मरा हुआ होता है।

    टिप्पणी

    [शयः=सोया हुआ व्यक्ति संसार-सम्बन्धों से रहित होता है, परन्तु स्वप्न लेता हुआ “अन्तःप्रज्ञ” होता है। इसके द्वारा उपासक की सम्प्रज्ञात समाधि का निर्देश किया है। हतः=व्यक्ति जब मर जाता है तब न तो वह “बहिःप्रज्ञ” होता है और न “अन्तःप्रज्ञ”। इसके द्वारा उपासक की असम्प्रज्ञात समाधि का निर्देश किया है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Even latencies in the unconscious are silenced, dead as if.

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    Translation

    The inactive enemy is like dead.

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    Translation

    The inactive enemy is like dead.

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    Translation

    He (the soul or God) lies (latent) unknown, like a dead person.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(शयः) शीङ् शयने-अच्। सर्पः। सर्प इव शत्रुः (हतः) नाशितः (इव) यथा ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শয়ঃ) সাপ [এর ন্যায় শত্রু] (হতঃ) নিহত/নাশিত (ইব) যেমন হয়॥১৬॥

    भावार्थ

    মনুষ্য উচিত রীতিতে ভোজন আদির উপহার বা দান এবং কর আদি গ্রহণ করে দৃঢ়চিত্ত হয়ে শত্রুদের বিনাশ করুক ॥১২-১৬॥

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    भाषार्थ

    এমন হও (ইব) যেমন কেউ (শয়ঃ) শায়িত থাকে, এবং (হতঃ) নিহত থাকে।

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