अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
इन्द्र॑मि॒त्था गिरो॒ ममाच्छा॑गुरिषि॒ता इ॒तः। आ॒वृते॒ सोम॑पीतये ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑म् । इ॒त्था । गिर॑: । मम॑ । अच्छ॑ । अ॒गु॒: । इ॒षि॒ता: । इ॒त: ॥ आ॒ऽवृते॑ । सोम॑ऽपीतये ॥२४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रमित्था गिरो ममाच्छागुरिषिता इतः। आवृते सोमपीतये ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रम् । इत्था । गिर: । मम । अच्छ । अगु: । इषिता: । इत: ॥ आऽवृते । सोमऽपीतये ॥२४.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(इत्था) इस प्रकार से (मम) मेरी (इषिताः) प्रेरणा की गयीं (गिरः) वाणियाँ (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] को (सोमपीतये) सोमरस [उत्तम ओषधि] पीने के लिये (आवृते) घूमने को (अच्छ) अच्छे प्रकार (इतः) यहाँ से (अगुः) गयी हैं ॥३॥
भावार्थ
विद्वान् लोग विद्वानों का सत्कार उत्तम रीति से करते रहें ॥३॥
टिप्पणी
३−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (इत्था) अनेन प्रकारेण (गिरः) वाण्यः (मम) (अच्छ) सुरीत्या (अगुः) इण् गतौ-लुङ्। अगमन्। प्राप्ताः (इषिताः) प्रेरिताः (इतः) अस्मात् स्थानात् (आवृते) वृतु वर्तने-सम्पदादिः क्विप्। आवर्तनाय। आगमनाय (सोमपीतये) महौषधिरसस्य पानाय ॥
विषय
आवृते, सोमपीतये
पदार्थ
१. (इत:) = यहाँ-हमारे गृह की यज्ञभूमि से (मम) = मेरी (गिरः) = स्तुतिरूप वाणियाँ (इषिता:) = हमसे प्रेरित हुई-हुई (इत्था) = सचमुच (इन्द्रम् अच्छा) = प्रभु को लक्ष्य करके (अगु:) = प्रभु की ओर जाती हैं। हम स्तुतिवाणियों द्वारा प्रभु का स्तवन करते हैं। २. हम यह स्तवन (आवृते) = प्रभु को अपनी ओर आवृत्त करने के लिए करते हैं। हम अपनी ओर प्रभु की आवृत्ति (सोमपीतये) = सोम के रक्षण के लिए चाहते हैं।
भावार्थ
हम प्रभु-स्तवन करें। प्रभु को प्राप्त करने से हम सोम का रक्षण कर पाएंगे।
भाषार्थ
(इत्था) वस्तुतः (इतः) इस मेरे हृदय से (इषिताः) निकली हुई तथा एषणाओं से भरी हुईं (मम गिरः) मेरी स्तुतियाँ (इन्द्रम् अच्छ) परमेश्वर की ओर (अगुः) प्रवृत्त हुई हैं। ताकि स्तुतियाँ (सोमपीतये) भक्तिरस के पान के लिए (आवृते) परमेश्वर का मेरी ओर आवर्तन करे, झुकाव करें।
टिप्पणी
[इत्था=सत्यम् (निघं০ ३.१०)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Self-integration
Meaning
Let my words of adoration thus inspired rise up from here and reach across the sky beyond the clouds to share the ecstasy of soma with Indra.
Translation
May true words of praise sent from here go to them man of learning of make him inclined to guard the kingdom (Soma).
Translation
May true words of praise sent from here go to them man of learning of make him inclined to guard the kingdom (Soma).
Translation
My speeches, thus moved by the impulses of the people, are well presented to the mighty king for the protection and satisfaction of the people, well-guarded on all sides, or covering all spheres of activities.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (इत्था) अनेन प्रकारेण (गिरः) वाण्यः (मम) (अच्छ) सुरीत्या (अगुः) इण् गतौ-लुङ्। अगमन्। प्राप्ताः (इषिताः) प्रेरिताः (इतः) अस्मात् स्थानात् (आवृते) वृतु वर्तने-सम्पदादिः क्विप्। आवर्तनाय। आगमनाय (सोमपीतये) महौषधिरसस्य पानाय ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
বিদ্বদ্গুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইত্থা) এইভাবে (মম) আমার (ইষিতাঃ) প্রেরিত (গিরঃ) বাণীসমূহ (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান্ পুরুষ] এর (সোমপীতয়ে) সোমরস [উত্তম ঔষধি] পান করার জন্য (আবৃতে) আবর্তনের জন্য (অচ্ছ) উত্তমরূপে (ইতঃ) এখান থেকে (অগুঃ) গিয়েছে ॥৩॥
भावार्थ
বিদ্বান্ মনুষ্য বিদ্বানগনের সৎকার উত্তমরীতিতে করুক ॥৩॥
भाषार्थ
(ইত্থা) বস্তুতঃ (ইতঃ) এই আমার হৃদয় থেকে (ইষিতাঃ) নির্গত তথা এষণা দ্বারা পরিপূর্ণ (মম গিরঃ) আমার স্তুতি-সমূহ (ইন্দ্রম্ অচ্ছ) পরমেশ্বরের দিকে (অগুঃ) প্রবৃত্ত হয়েছে। যাতে স্তুতি-সমূহ (সোমপীতয়ে) ভক্তিরস পানের জন্য (আবৃতে) পরমেশ্বরের আমার দিকে আবর্তন করে, ঝুকাব করেং।
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