अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
तुभ्येदि॑न्द्र॒ स्व ओ॒क्ये॒ सोमं॑ चोदामि पी॒तये॑। ए॒ष रा॑रन्तु ते हृ॒दि ॥
स्वर सहित पद पाठतुभ्य॑ । इत् । इ॒न्द्र॒ । स्वे । ओ॒क्ये॑ । सोम॑म् । चो॒दा॒मि॒ । पी॒तये॑ ॥ ए॒ष: । र॒र॒न्तु॒ । ते॒ । हृ॒दि ॥२४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
तुभ्येदिन्द्र स्व ओक्ये सोमं चोदामि पीतये। एष रारन्तु ते हृदि ॥
स्वर रहित पद पाठतुभ्य । इत् । इन्द्र । स्वे । ओक्ये । सोमम् । चोदामि । पीतये ॥ एष: । ररन्तु । ते । हृदि ॥२४.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले जन] (तुभ्य) तेरे लिये (इत्) ही (स्वे) अपने (ओक्ये) घर में (पीतये) पीने को (सोमम्) सोमरस [महौषधि] (चोदयामि) भेजता हूँ। (एषः) यह (ते) तेरे (हृदि) हृदय में (रारन्तु) अत्यन्त रमे ॥८॥
भावार्थ
मनुष्य उत्तम-उत्तम पदार्थों को रुचि के साथ खावें, जिससे हृदय में उत्तम रस उत्पन्न होकर सब शरीर में फैले और बल बढ़े ॥८॥
टिप्पणी
८−(तुभ्य) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्लुक्। तुभ्यम् (इत्) एव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् (स्वे) स्वकीये (ओक्ये) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। उच समवाये-ण्यत् कुत्वं च। ओकसि। गृहे (सोमम्) महौषधिरसम् (चोदामि) प्रेरयामि (पीतये) पानाय (एषः) सोमः (रारन्तु) रमु क्रीडायाम्-यङ्लुकि लोट्, नुमभावश्छान्दसः सांहितिको दीर्घः। भृशं रमताम् (ते) तव (हृदि) हृदये ॥
विषय
सोम-रक्षण व प्रभु-प्राप्ति
पदार्थ
१. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (तुभ्य इत्) = आपकी प्राप्ति के लिए ही मैं (स्वे ओक्ये) = अपने निवासस्थानभूत इस शरीर में ही (सोमम्) = सोम को (पीतये) = पीने के लिए (चोदामि) = प्रेरित करता हूँ। शरीर में सुरक्षित सोम अन्ततः प्रभु-प्राप्ति का साधन बनता है। २. (एषा) = यह सोम (हृदि) = हृदय में (ते सरन्तु) = आपको रमण करानेवाला हो। सोम-रक्षण द्वारा हम हृदयस्थ प्रभु में रमण करनेवाले बनें।
भावार्थ
प्रभु-प्राप्ति का मूल सोम-रक्षण ही है।
भाषार्थ
(इन्द्र) हे परमेश्वर! (तुभ्येत्) आपके लिए ही, मैं उपासक (स्वे ओक्ये) अपने हृदय-गृह में (सोमं) भक्तिरस को (चोदामि) प्रेरित करता हूँ, (पीतये) ताकि आप इसे स्वीकार करें। (हृदि) मेरे हृदय में स्थित (एषः) यह भक्तिरस (ते) आपके लिए (रारन्तु) प्रसन्नतादायक हो।
इंग्लिश (4)
Subject
Self-integration
Meaning
Indra, lord lover of power and energy, for your drink I distil and reinforce this soma in my own yajnic house of science. It would inspire, strengthen and delight your heart.
Translation
O enlightened one, I send this Soma-juice for you to drink in your own place. Let this give satisfaction to your heart.
Translation
O enlightened one, I send this Soma-juice for you to drink, in your own place. Let this give satisfaction to your heart.
Translation
O king or soul, I mobilise all the means of enjoyment and pleasure at thy residence alone for thy satisfaction. Let it fill thy heart with pleasure and joy.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(तुभ्य) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्लुक्। तुभ्यम् (इत्) एव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् (स्वे) स्वकीये (ओक्ये) ऋहलोर्ण्यत्। पा० ३।१।१२४। उच समवाये-ण्यत् कुत्वं च। ओकसि। गृहे (सोमम्) महौषधिरसम् (चोदामि) प्रेरयामि (पीतये) पानाय (एषः) सोमः (रारन्तु) रमु क्रीडायाम्-यङ्लुकि लोट्, नुमभावश्छान्दसः सांहितिको दीर्घः। भृशं रमताम् (ते) तव (हृदि) हृदये ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
বিদ্বদ্গুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [ঐশ্বর্যবান্] (তুভ্য) তোমার জন্য (ইৎ) ই (স্বে) নিজের (ওক্যে) ঘরে (পীতয়ে) পান করার (সোমম্) সোমরস [মহৌষধি] (চোদয়ামি) প্রেরণ করি। (এষঃ) এইটি (তে) তোমার (হৃদি) হৃদয়ে (রারন্তু) অত্যন্ত রমন করুক॥৮॥
भावार्थ
মনুষ্যগন উত্তম-উত্তম পদার্থসমূহ রুচি সহকারে সেবা করুক, যা থেকে হৃদয়ে উত্তম রস উৎপন্ন হয়ে পুরো শরীরে ছড়িয়ে পড়ে এবং শক্তি বৃদ্ধি হয় ॥৮॥
भाषार्थ
(ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (তুভ্যেৎ) আপনার জন্যই, আমি উপাসক (স্বে ওক্যে) নিজের হৃদয়-গৃহে (সোমং) ভক্তিরস (চোদামি) প্রেরিত করি, (পীতয়ে) যাতে আপনি তা স্বীকার করেন। (হৃদি) আমার হৃদয়ে স্থিত (এষঃ) এই ভক্তিরস (তে) আপনার জন্য (রারন্তু) প্রসন্নতাদায়ক হোক।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal