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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४
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    इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॒ स्तोमै॑रि॒ह ह॑वामहे। उ॒क्थेभिः॑ कु॒विदा॒गम॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ । स्तोमै॑: । इ॒ह॒ । ह॒वा॒म॒है॒ ॥ उ॒क्थेभि॑: । कु॒वित् । आ॒ऽगम॑त् ॥२४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे। उक्थेभिः कुविदागमत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । सोमस्य । पीतये । स्तोमै: । इह । हवामहै ॥ उक्थेभि: । कुवित् । आऽगमत् ॥२४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] को (सोमस्य) सोमरस [महौषधि] के (पीतये) पीने के लिये (स्तोमैः) स्तुतियों के साथ (इह) यहाँ (हवामहे) हम बुलाते हैं। वह (उक्थेभिः) अपने उपदेशों के साथ (कुवित्) बहुत बार (आगमत्) आवे ॥४॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग विद्वानों के बुलाने से प्रसन्न होकर जाया-आया करें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (सोमस्य) महौषधिरसस्य (पीतये) पानाय (स्तोमैः) स्तोत्रैः (इह) अत्र (हवामहे) आह्वयामः (उक्थेभिः) कथनीयोपदेशैः (कुवित्) म० २। बहुवारम् (आगमत्) गमेर्लेटि अडागमः। आगच्छेत् ॥

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    विषय

    स्तोमैः-उक्थेभिः

    पदार्थ

    १. (इह) = यहाँ इस जीवन में (सोमस्य पीतये) = सोम के रक्षण के लिए (इन्द्रम्) = उस शत्रुविद्रावक प्रभु को (स्तोमैः) = स्तोत्रों के द्वारा (हवामहे) = पुकराते हैं। २. (उक्थेभि:) = ऊँचे से उच्चार्यमाण इन स्तोत्रों के द्वारा बे प्रभु (कुवित्) = अच्छी प्रकार (आगमत्) = हमें प्राप्त होते हैं। प्रभु-प्राप्ति होने पर काम आदि शत्रुओं का सम्भव ही नहीं रहता, अत: सोमपान सहज में ही हो जाता है।

    भावार्थ

    हम स्तोत्रों के द्वारा प्रभु की समीपता प्रास करते हैं। समीपस्थ प्रभु वासनाविनाश द्वारा सोम का रक्षण करते हैं।

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    भाषार्थ

    (सोमस्य) भक्तिरस के (पीतये) स्वीकार करने के लिए (स्तोमैः) सामगानों द्वारा, तथा (उक्थेभिः) वैदिक सूक्तों की स्तुतियों द्वारा (इह) इस हृदय में (इन्द्रं हवामहे) हम परमेश्वर का आह्वान करते हैं। इस विधि से परमेश्वर (कुविद्) बार-बार (आगमत्) हमें दर्शन देता है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    We invoke and invite Indra, lord of energy and knowledge, here, with songs of adoration and words of sacred speech, to have a drink of soma, and we pray he may come again and again.

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    Translation

    We with the sets of praise call the learned men here for preserving the integrity of kingdom (Soma). He frequently visit us with all sorts of grain and praiseworthy sermons.

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    Translation

    We with the sets of praise call the learned men here for preserving the integrity of kingdom (Soma). He frequently visit us with all sorts of grain and praiseworthy sermons.

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    Translation

    We (the populace) invite the king here at our place, with respectful prayers to enjoy himself with the means of enjoyment and pleasure we can offer. May he come often at our respectful invitations.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(इन्द्रम्) परमैश्वर्यवन्तं पुरुषम् (सोमस्य) महौषधिरसस्य (पीतये) पानाय (स्तोमैः) स्तोत्रैः (इह) अत्र (हवामहे) आह्वयामः (उक्थेभिः) कथनीयोपदेशैः (कुवित्) म० २। बहुवारम् (आगमत्) गमेर्लेटि अडागमः। आगच्छेत् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বিদ্বদ্গুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রম্) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান পুরুষ] কে (সোমস্য) সোমরস [মহৌষধি] (পীতয়ে) পানের জন্য (স্তোমৈঃ) স্তুতিপূর্বক (ইহ) এখানে (হবামহে) আমরা আহ্বান করি। তিনি (উক্থেভিঃ) নিজের উপদেশসমূহের সাথে (কুবিৎ) বহুবার (আগমৎ) আগমন করুক॥৪॥

    भावार्थ

    বিদ্বানগণ বিদ্বানদের আহ্বানে/আমন্ত্রণে প্রসন্ন হয়ে যাওয়া-আসা করুক ॥৪॥

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    भाषार्थ

    (সোমস্য) ভক্তিরস (পীতয়ে) স্বীকার করার জন্য (স্তোমৈঃ) সামগান দ্বারা, তথা (উক্থেভিঃ) বৈদিক সূক্তের স্তুতি দ্বারা (ইহ) এই হৃদয়ে (ইন্দ্রং হবামহে) আমরা পরমেশ্বরের আহ্বান করি। এই বিধি দ্বারা পরমেশ্বর (কুবিদ্) বারংবার (আগমৎ) আমাদের দর্শন দেন।

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