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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 62/ मन्त्र 6
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६२
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    त्वमि॑न्द्राभि॒भूर॑सि॒ त्वं सूर्य॑मरोचयः। वि॒श्वक॑र्मा वि॒श्वदे॑वो म॒हाँ अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । इ॒न्द्र॒ । अ॒भि॒ऽभू: । अ॒सि॒ । त्वम् । सूर्य॑म् । अ॒रो॒च॒य॒: ॥ वि॒श्वऽक॑र्मा । वि॒श्वऽदे॑व: । म॒हान् । अ॒सि॒ ॥६२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमिन्द्राभिभूरसि त्वं सूर्यमरोचयः। विश्वकर्मा विश्वदेवो महाँ असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । इन्द्र । अभिऽभू: । असि । त्वम् । सूर्यम् । अरोचय: ॥ विश्वऽकर्मा । विश्वऽदेव: । महान् । असि ॥६२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (त्वम्) तू (अभिभूः) विजयी (असि) है, (त्वम्) तूने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमक दी है। तू (विश्वकर्मा) विश्वकर्मा [सबका बनानेवाला], (विश्वदेवः) विश्वदेव [सबका पूजनीय] और (महान्) महान् [अति प्रबल] (असि) है ॥६॥

    भावार्थ

    मनुष्य उस महाबली परमात्मा की उपासना से अपने आत्मा को बलवान् करें ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (अभिभूः) अभिभविता। विजेता (असि) (त्वम्) (सूर्यम्) रविमण्डलम् (अरोचयः) अदीपयः (विश्वकर्मा) सर्वस्य कर्ता (विश्वदेवः) सर्वैः स्तुत्यः (महान्) अतिप्रबलः (असि) ॥

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    विषय

    विश्वकर्मा विश्वदेव:-महान्

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! (त्वम्) = आप (अभिभूः असि) = हमारे सब काम-क्रोध आदि शत्रुओं का अभिभव करनेवाले हैं और (त्वम्) = आप ही इन शत्रुओं का विनाश करके हमारे मस्तिष्करूप धुलोक में सूर्यम् (अरोचय:) = ज्ञानसूर्य को दीस करते हैं। बाह्य आकाश में सूर्य आदि का दीपन आपके द्वारा ही हो रहा है। तस्य भासा सर्वमिदं विभाति'। २. हे प्रभो! आप ही (विश्वकर्मा) = सब कर्मों के करनेवाले हैं। सब कार्यशक्ति आप से ही प्राप्त होती है। आप (विश्वदेवः) = सब दिव्य गुणोंवाले हैं। जैसे सूर्य आदि देवों को देवत्व आपसे ही प्राप्त होता है, इसी प्रकार सब देवपुरुषों को देवीसम्पत्ति भी आप ही प्राप्त कराते हैं। इसी से आप (महान् असि) = महान् है-पूजनीय है।

    भावार्थ

    प्रभु हमारे सब काम-क्रोध आदि शत्रुओं को अभिभूत करके हमारे मस्तिष्करूप धुलोक में ज्ञानसूर्य का उदय करते हैं। हम सदा उस 'विश्वकर्मा-विश्वदेव-महान्' प्रभु का पूजन करें।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (अभिभूः) सबका पराभव करनेवाले (असि) हैं, (त्वम्) आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमकाया है। (विश्वकर्मा) आप विश्व के कर्त्ता हैं, (विश्वदेवः) विश्व में आप ही एकमात्र उपास्य देव हैं, क्योंकि आप ही (महान् असि) सबसे महान् हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Indra, you are the lord supreme dominant over all, you give light to the sun, you are the maker of the universe, you are the one adorable light and spirit of the world, you are the one great and glorious life of the world.

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    Translation

    O Almighty God, you are preeminent and you illuminate the sun. You are the creator of all and great mysterious Divinity of all wondrous powers.

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    Translation

    O Almighty God, you are preeminent and you illuminate the sun. You are the creator of all and great mysterious Divinity of all wondrous powers.

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    Translation

    O Mighty Lord, Thou art Omnipresent and Almighty. Thou enlightened the Sun. Thou art the Great Creator of the universe.and the Bestower of all the divine forces and Worthy to be worshipped by the learned persons.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (अभिभूः) अभिभविता। विजेता (असि) (त्वम्) (सूर्यम्) रविमण्डलम् (अरोचयः) अदीपयः (विश्वकर्मा) सर्वस्य कर्ता (विश्वदेवः) सर्वैः स्तुत्यः (महान्) अतिप्रबलः (असि) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ -১০ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    [ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহান ঐশ্বর্যবান পরমাত্মন্] (ত্বম্) আপনি (অভিভূঃ) বিজয়ী (অসি) হন, (ত্বম্) আপনি (সূর্যম্) সূর্যমণ্ডলকে (অরোচয়ঃ) দীপ্তি প্রদান করেছেন। আপনি (বিশ্বকর্মা) বিশ্বকর্মা [সবকিছুর স্রষ্টা], (বিশ্বদেবঃ) বিশ্বদেব [সকলের পূজনীয়] এবং (মহান্) মহান্ [অতি প্রবল] (অসি) হন॥৬॥

    भावार्थ

    মনুষ্য মহাবলী পরমাত্মার উপাসনা দ্বারা নিজ আত্মাকে বীর্যবান্ করে/করুক ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (ত্বম্) আপনি (অভিভূঃ) সকলের পরাভবকারী (অসি) হন, (ত্বম্) আপনি (সূর্যম্) সূর্যকে (অরোচয়ঃ) প্রদীপ্ত করেছেন। (বিশ্বকর্মা) আপনিই বিশ্বের কর্ত্তা, (বিশ্বদেবঃ) বিশ্বে আপনিই একমাত্র উপাস্য দেব, কারণ আপনিই (মহান্ অসি) সবথেকে মহান্।

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