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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 62/ मन्त्र 7
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६२
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    वि॒भ्राजं॒ ज्योति॑षा॒ स्वरग॑च्छो रोच॒नं दि॒वः। दे॒वास्त॑ इन्द्र स॒ख्याय॑ येमिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒ऽभ्राज॑न् । ज्योति॑षा । स्व॑: । अग॑च्छ । रो॒च॒नम् । दि॒व: ॥ दे॒वा: । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । स॒ख्याय॑ । ये॒मि॒रे॒ ॥६२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विभ्राजं ज्योतिषा स्वरगच्छो रोचनं दिवः। देवास्त इन्द्र सख्याय येमिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विऽभ्राजन् । ज्योतिषा । स्व: । अगच्छ । रोचनम् । दिव: ॥ देवा: । ते । इन्द्र । सख्याय । येमिरे ॥६२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (ज्योतिषा) अपनी ज्योति से (विभ्राजन्) चमकता हुआ तू (दिवः) सूर्य के, (रोचनम्) चमकानेवाले (स्वः) अपने आनन्दस्वरूप को (अगच्छः) प्राप्त हुआ है, (देवाः) विद्वानों ने (ते) तेरी (सख्याय) मित्रता के लिये (येमिरे) उद्योग किया है ॥७॥

    भावार्थ

    जो प्रकाशस्वरूप परमात्मा अपनी महिमा से प्रत्येक वस्तु में चमकता है, उसकी उपासना से हम अपने आत्मा में प्रकाश करें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(विभ्राजन्) विविधं प्रकाशमानः (ज्योतिषा) स्वतेजसा (स्वः) स्वकीयं सुखस्वरूपम् (अगच्छः) प्राप्तवानसि (रोचनम्) प्रकाशकम् (दिवः) सूर्यस्य (देवाः) विद्वांसः (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सख्याय) मित्रत्वाय (येमिरे) नियमितवन्तः। उद्यतवन्तः ॥

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    विषय

    संयम द्वारा प्रभु-मैत्री की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! ज्योतिषा विभाजन-ज्योति से दीप्त होते हुए आप स्व: अगच्छ:-सुख को प्राप्त होते हैं, अर्थात् आप सर्वज्ञ है और अतएव आनन्दमय हैं। आप ही अपने उपासकों को दिवः रोचनम-मस्तिष्करूप घलोक की ज्ञानदीति को [अगच्छ:-अगमय-] प्राप्त कराते हैं। २. हे इन्द्र-परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! देवा:-देववृत्ति के पुरुष ते-आपकी सख्याय-मित्रता के लिए येमिरे-अपने को नियमों के बन्धनों में बाँधते हैं। यह संयम ही इन देवों को महादेव का मित्र बनाता है।

    भावार्थ

    प्रभु प्रकाशमय हैं, अतएव आनन्दमय हैं-उपासकों को भी प्रभु ज्ञान-दीप्ति प्राप्त कराते हैं। संयम-रज में अपने को बाँधकर देववृत्ति के पुरुष महादेव के मित्र बनते हैं।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (ज्योतिषा) निज ज्योति द्वारा (स्वः) उपतापी सूर्य को (विभ्राजम्) प्रदीप्त करते हुए, (दिवः) द्युलोक के (रोचनम्) रुचिकर चमकते नक्षत्र-तारामण्डल में (अगच्छः) प्राप्त हुए-हुए हैं। (देवाः) दिव्यगुणी उपासक (ते) आपके (सख्याय) सखिभाव की प्राप्ति के लिए (येमिरे) यम-नियमों का पालन करते हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Refulgent with your own light you pervade the regions of bliss and beatify the glory of heaven. Indra, the lights and divinities of the world vye and struggle for friendship with you.

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    Translation

    O Almighty, you illumining through your radiance the luminous heaven pervade the space. All the learned men and luminous powers employ great effort to achieve your friendliness.

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    Translation

    O Almighty, you illumining through your radiance the luminous heaven pervade the space. All the learned men and luminous powers employ great effort to achieve your friendliness.

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    Translation

    O Lord of riches and fortunes, Radiant with splendour and Illuminator of the heavens. Thou persuadest the sky. All the learned persons and the divine forces ever try to seek Thy friendship,

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(विभ्राजन्) विविधं प्रकाशमानः (ज्योतिषा) स्वतेजसा (स्वः) स्वकीयं सुखस्वरूपम् (अगच्छः) प्राप्तवानसि (रोचनम्) प्रकाशकम् (दिवः) सूर्यस्य (देवाः) विद्वांसः (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सख्याय) मित्रत्वाय (येमिरे) नियमितवन्तः। उद्यतवन्तः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ -১০ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যশালী পরমাত্মন্] (জ্যোতিষা) নিজের জ্যোতি দ্বারা (বিভ্রাজন্) বিবিধ দীপ্যমান/প্রকাশমান আপনি (দিবঃ) সূর্যের, (রোচনম্) প্রকাশক (স্বঃ) নিজ আনন্দস্বরূপকে (অগচ্ছঃ) প্রাপ্ত হয়েছেন, (দেবাঃ) বিদ্বানগণ (তে) আপনার (সখ্যায়) মিত্রতা প্রাপ্তির জন্য (যেমিরে) উদ্যোগ গ্রহণ করেছেন ॥৭॥

    भावार्थ

    যে প্রকাশস্বরূপ পরমাত্মা নিজের মহিমা দ্বারা প্রত্যেক বস্তুর মধ্যে প্রকাশমান, সেই পরমেশ্বরের উপাসনা দ্বারা আমরা নিজ আত্মাকে প্রকাশযুক্ত করি ॥৭॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (জ্যোতিষা) নিজ জ্যোতি দ্বারা (স্বঃ) উপতাপী সূর্যকে (বিভ্রাজম্) প্রদীপ্ত করে, (দিবঃ) দ্যুলোকের (রোচনম্) রুচিকর প্রদীপ্ত নক্ষত্র-তারামণ্ডলে (অগচ্ছঃ) প্রাপ্ত হয়েছেন। (দেবাঃ) দিব্যগুণী উপাসক (তে) আপনার (সখ্যায়) সখিভাব প্রাপ্তির জন্য (যেমিরে) যম-নিয়মের পালন করে।

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