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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 62/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६२
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    यस्य॑ द्वि॒बर्ह॑सो बृ॒हत्सहो॑ दा॒धार॒ रोद॑सी। गि॒रीँरज्राँ॑ अ॒पः स्वर्वृषत्व॒ना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । द्वि॒ऽबर्ह॑स: । बृ॒हत् । सह॑: । दा॒धार॑ । रोद॑सी॒ इति॑ ॥ गि॒रीन् । अज्रा॑न् । अ॒प: । स्व॑: । वृ॒ष॒ऽत्व॒ना॥६२.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य द्विबर्हसो बृहत्सहो दाधार रोदसी। गिरीँरज्राँ अपः स्वर्वृषत्वना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । द्विऽबर्हस: । बृहत् । सह: । दाधार । रोदसी इति ॥ गिरीन् । अज्रान् । अप: । स्व: । वृषऽत्वना॥६२.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 62; मन्त्र » 9
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    हिन्दी (3)

    विषय

    मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (द्विबर्हसः) दोनों विद्या और पुरुषार्थ में बढ़े हुए (यस्य) जिस [परमात्मा] के (बृहत्) बड़े (सहः) सामर्थ्य ने (रोदसी) सूर्य और भूमि, (अज्रान्) शीघ्रगामी (गिरीन्) मेघों, (अपः) जलों [समुद्र आदि] और (स्वः) प्रकाश को (वृषत्वना) बल के साथ (दाधार) धारण किया है ॥९॥

    भावार्थ

    अकेला महाविद्वान् और महापुरुषार्थी परमात्मा सबको परस्पर धारण-आकर्षण से चलाता हुआ अपने विश्वासी भक्तों को उनके पुरुषार्थ के अनुसार धन और कीर्ति देता है ॥९, १०॥

    टिप्पणी

    ८-१०−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६१।४-६ ॥

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    विषय

    व्याख्या देखो अथर्व २०.६१.४-६

    पदार्थ

    सब लोगों के हित की कामनावाला [भुवनस्य अस्ति इति] 'भुवनः' तथा साधनामय जीवनवाला 'साधनः' अगले सूक्त में प्रथम तीन मन्त्रों का ऋषि है। तृतीय के उत्तरार्ध में 'भरद्वाज' ऋषि है-अपने में शक्ति को भरनेवाला। बीच के तीन मन्त्रों के ऋषि 'गोतम' है प्रशस्तेन्द्रिय। अन्तिम तीन के ऋषि पर्वत' हैं-अपना पूरण करनेवाले। 'भुवन' प्रार्थना करते -

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    भाषार्थ

    [देखो—२०.६१.५।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Glorify Indra, who sustains the cosmic yajna in the two worlds, your life here and the life hereafter, whose cosmic potential sustains heaven, earth and the middle regions, who moves and controls the mighty gusts of winds and motions of mountainous clouds, and who gives us heavenly showers of rain for joy and vital energies.

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    Translation

    He is that who holds two-fold powers (the creative and destructive) whose mighty energy supports heaven and earth, moving clouds, raining water and firmament.

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    Translation

    He is that who holds two-fold powers (the creative and destructive) whose mighty energy supports heaven and earth, moving clouds, raining water and firmament.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८-१०−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६१।४-६ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ -১০ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (দ্বিবর্হসঃ) উভয় বিদ্যা ও পুরুষার্থে পরিবর্ধিত (যস্য) যার [পরমাত্মার] (বৃহৎ) বৃহৎ (সহঃ) সামর্থ্য (রোদসী) সূর্য এবং ভূমি, (অজ্রান্) শীঘ্রগামী (গিরীন্) মেঘ, (অপঃ) জল [সমুদ্র আদি] ও (স্বঃ) প্রকাশকে (বৃষত্বনা) বলের সহিত (দাধার) ধারণ করে রয়েছে॥৯॥

    भावार्थ

    একাকী মহাবিদ্বান্ এবং মহাপুরুষার্থী পরমাত্মা সকলকে পরস্পর ধারণ-আকর্ষণ দ্বারা নিয়ন্ত্রণ করে নিজের বিশ্বাসী ভক্তদের তাঁদের পুরুষার্থ অনুসারে ধন ও কীর্তি প্রদান করেন ॥৯॥

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    भाषार्थ

    [দেখো—২০.৬১.৫।]

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