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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 70/ मन्त्र 19
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०
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    इन्द्र॒ त्वोता॑स॒ आ व॒यं वज्रं॑ घ॒ना द॑दीमहि। जये॑म॒ सं यु॒धि स्पृधः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । त्वाऽऊ॑तास: । आ । व॒यम् । वज्र॑म् । घ॒ना । द॒दी॒म॒हि॒ ॥ जये॑म । सम् । यु॒धि । स्पृध॑: ॥७०.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र त्वोतास आ वयं वज्रं घना ददीमहि। जयेम सं युधि स्पृधः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । त्वाऽऊतास: । आ । वयम् । वज्रम् । घना । ददीमहि ॥ जयेम । सम् । युधि । स्पृध: ॥७०.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १०-२० परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (त्वोतासः) तुझसे रक्षा किये गये (वयम्) हम (वज्रम्) वज्र [बिजुली और अग्नि के शस्त्रों] और (घना) घनों [मारने के तलवार आदि हथियारों] को (आ ददीमहि) ग्रहण करें और (युधि) युद्ध में (स्पृधः) ललकारते हुए शत्रुओं को (सम्) ठीक-ठीक (जयेम) जीतें ॥१९॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमात्मा की शरण में रहकर वीर सेना और पुष्कल युद्धसामग्री लेकर शत्रुओं को हरावें ॥१९॥

    टिप्पणी

    १९−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (त्वोतासः) त्वया रक्षिताः (वयम्) धार्मिकाः (वज्रम्) विद्युदग्निशस्त्रास्त्रसमूहम् (घना) दृढानि युद्धसाधनानि लौहमुद्गरखङ्गादीनि (आ ददीमहि) गृह्णीयाम (जयेम) अभिभवेम (सम्) सम्यक् (युधि) युद्धे (स्पृधः) स्पर्ध संघर्षे-क्विप्। बहुलं छन्दसि। पा० ६।१।३४। रेफस्य सम्प्रसारणमल्लोपश्च। स्पर्धमानान्। युद्धाय शब्दमानान् शत्रून् ॥

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    विषय

    धन द्वारा शस्त्रास्त्र संग्रह

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभो! (त्वा ऊतास:) = आपसे रक्षित हुए-हुए (वयम्) = हम (घना) = दृढ़ (वनम्) = वन को-शस्त्रास्त्रसमूह को (आददीमहि) = सब प्रकार से ग्रहण करें। राष्ट्ररक्षा के लिए शस्त्रास्त्र की कमी न हो। सैनिकों के लिए उपकरण होंगे तभी तो विजय प्राप्त होगी। २. इस अस्त्र-संग्रह द्वारा हम (युधि) = युद्ध में (स्पृधः) = शत्रुओं को (संजयेम) = सम्यक पराजित कर सकें।

    भावार्थ

    हम धन से सैन्यसंग्रह के साथ शस्त्रास्त्र संग्रह करके शत्रुओं का पराभव करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (त्वोतासः) आप द्वारा सुरक्षित (वयम्) हम, (घना=घनानि) पाप-वृत्रों के हनन के साधनों का (आ ददीमहि) आदान करते हैं, और (वज्रम्) पाप-वृत्रों के लिए वज्ररूप आपका आश्रय लेते हैं। इस प्रकार (युधि) देवासुर-संग्राम में (स्पृधः) स्पर्धा आदि आसुरी भावनाओं को (सं जयेम) हम सम्यक् जीत लेते हैं।

    टिप्पणी

    [घना=हनन-साधन यम-नियमादि। अर्वता=अर्व हिंसायाम्।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Indra, lord of might and splendour, under your divine protection, may we develop, we pray, strong and sophisticated weapons of defence so that fighting battles of mutual contest we may win the prize of victory.

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    Translation

    O Almighty Divinity, we assisted and guarded by you may hold bolt and fatal weapons and conquer our foes in battle.

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    Translation

    O Almighty Divinity, we assisted and guarded by you may hold bolt and fatal weapons and conquer our foes in battle.

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    Translation

    O Mighty Lord of Destruction or king, being protected by Thee or thee, being enabled to smash the evil forces of ignorance or the foe give a thoroughly deadly blow like a thunderbolt to them (these forces) and completely vanquish these warring elements.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (त्वोतासः) त्वया रक्षिताः (वयम्) धार्मिकाः (वज्रम्) विद्युदग्निशस्त्रास्त्रसमूहम् (घना) दृढानि युद्धसाधनानि लौहमुद्गरखङ्गादीनि (आ ददीमहि) गृह्णीयाम (जयेम) अभिभवेम (सम्) सम्यक् (युधि) युद्धे (स्पृधः) स्पर्ध संघर्षे-क्विप्। बहुलं छन्दसि। पा० ६।१।३४। रेफस्य सम्प्रसारणमल्लोपश्च। स्पर्धमानान्। युद्धाय शब्दमानान् शत्रून् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১০-২০ পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মন্] (ত্বোতাসঃ) আপনার দ্বারা রক্ষিত (বয়ম্) আমরা (বজ্রম্) বজ্র [বিদ্যুৎ এবং আগ্নেয়াস্ত্র] এবং (ঘনা) দৃঢ় [মারণাস্ত্র আদি শস্ত্র] (আ দদীমহি) হস্তে ধারণ করি এবং যেন (যুধি) যুদ্ধে (স্পৃধঃ) স্পর্ধাপূর্বক অগ্রসর হয়ে শত্রুদের (সম্) সর্বতোভাবে (জয়েম) জয় করি ॥১৯॥

    भावार्थ

    মনুষ্য পরমাত্মার শরণে-আশ্রয়ে থেকে বীর সেনা এবং বজ্র, দৃঢ় মারণাস্ত্র যুদ্ধসামগ্রী দ্বারা শত্রুদের পরাজিত করুক॥১৯॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (ত্বোতাসঃ) আপনার দ্বারা সুরক্ষিত (বয়ম্) আমরা, (ঘনা=ঘনানি) পাপ-বৃত্রের হননের সাধনের (আ দদীমহি) আদান/গ্রহণ করি, এবং (বজ্রম্) পাপ-বৃত্র-সমূহের জন্য বজ্ররূপ আপনার আশ্রয় গ্রহণ করি। এইভাবে (যুধি) দেবাসুর-সংগ্রামে (স্পৃধঃ) স্পর্ধা আদি আসুরিক ভাবনা-সমূহকে (সং জয়েম) আমরা সম্যক্ জয় করি।

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