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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 16/ मन्त्र 7
    सूक्त - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१६

    बृह॒स्पति॒रम॑त॒ हि त्यदा॑सां॒ नाम॑ स्व॒रीणां॒ सद॑ने॒ गुहा॒ यत्। आ॒ण्डेव॑ भि॒त्त्वा श॑कु॒नस्य॒ गर्भ॒मुदु॒स्रियाः॒ पर्व॑तस्य॒ त्मना॑जत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॒स्पति॑: । अम॑त । हि । त्यत् । आ॒सा॒म् । नाम॑ । स्व॒रीणा॑म् । सद॑ने । गुहा॑ । यत् ॥ आ॒ण्डाऽइ॑व । भि॒त्त्वा । श॒कु॒नस्य॑ । गर्भ॑म् । उत् । उ॒स्रिया॑: । पर्व॑तस्य । त्मना॑ । आ॒ज॒त् ॥१६.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पतिरमत हि त्यदासां नाम स्वरीणां सदने गुहा यत्। आण्डेव भित्त्वा शकुनस्य गर्भमुदुस्रियाः पर्वतस्य त्मनाजत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पति: । अमत । हि । त्यत् । आसाम् । नाम । स्वरीणाम् । सदने । गुहा । यत् ॥ आण्डाऽइव । भित्त्वा । शकुनस्य । गर्भम् । उत् । उस्रिया: । पर्वतस्य । त्मना । आजत् ॥१६.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 16; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी वेदवाणी के रक्षक महाविद्वान्] ने (हि) ही (आसाम्) इन (स्वरीणाम्) शब्द करती हुई [वेदवाणियों] के (त्यत्) उस (नाम) यश को (अमत) जाना है, (यत्) जो (गुहा) हृदय के भीतर (सदने) घर में है। (इव) जैसे (आण्डा) अण्डों को (भित्त्वा) तोड़कर (शकुनस्य) पक्षी के (गर्भम्) बच्चे को, [वैसे ही] उस [महाविद्वान्] ने (उस्रियाः) निवास करनेवाली [प्रजाओं] को (पर्वतस्य) पर्वत [समान दृढ़ स्वभाववाले मनुष्य] के (त्मना) आत्मा से (उत् आजत्) उदय किया है ॥७॥

    भावार्थ - विद्वान् पुरुष अपने हृदय में प्राप्त वेदवाणियों के गुणों को जानकर संसार में इस प्रकार प्रकट करे, जैसे अण्डों के पककर फूटने पर पक्षियों के बच्चे निकलते हैं ॥७॥

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