अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 7
बृह॒स्पति॒रम॑त॒ हि त्यदा॑सां॒ नाम॑ स्व॒रीणां॒ सद॑ने॒ गुहा॒ यत्। आ॒ण्डेव॑ भि॒त्त्वा श॑कु॒नस्य॒ गर्भ॒मुदु॒स्रियाः॒ पर्व॑तस्य॒ त्मना॑जत् ॥
स्वर सहित पद पाठबृह॒स्पति॑: । अम॑त । हि । त्यत् । आ॒सा॒म् । नाम॑ । स्व॒रीणा॑म् । सद॑ने । गुहा॑ । यत् ॥ आ॒ण्डाऽइ॑व । भि॒त्त्वा । श॒कु॒नस्य॑ । गर्भ॑म् । उत् । उ॒स्रिया॑: । पर्व॑तस्य । त्मना॑ । आ॒ज॒त् ॥१६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहस्पतिरमत हि त्यदासां नाम स्वरीणां सदने गुहा यत्। आण्डेव भित्त्वा शकुनस्य गर्भमुदुस्रियाः पर्वतस्य त्मनाजत् ॥
स्वर रहित पद पाठबृहस्पति: । अमत । हि । त्यत् । आसाम् । नाम । स्वरीणाम् । सदने । गुहा । यत् ॥ आण्डाऽइव । भित्त्वा । शकुनस्य । गर्भम् । उत् । उस्रिया: । पर्वतस्य । त्मना । आजत् ॥१६.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
विद्वानों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी वेदवाणी के रक्षक महाविद्वान्] ने (हि) ही (आसाम्) इन (स्वरीणाम्) शब्द करती हुई [वेदवाणियों] के (त्यत्) उस (नाम) यश को (अमत) जाना है, (यत्) जो (गुहा) हृदय के भीतर (सदने) घर में है। (इव) जैसे (आण्डा) अण्डों को (भित्त्वा) तोड़कर (शकुनस्य) पक्षी के (गर्भम्) बच्चे को, [वैसे ही] उस [महाविद्वान्] ने (उस्रियाः) निवास करनेवाली [प्रजाओं] को (पर्वतस्य) पर्वत [समान दृढ़ स्वभाववाले मनुष्य] के (त्मना) आत्मा से (उत् आजत्) उदय किया है ॥७॥
भावार्थ
विद्वान् पुरुष अपने हृदय में प्राप्त वेदवाणियों के गुणों को जानकर संसार में इस प्रकार प्रकट करे, जैसे अण्डों के पककर फूटने पर पक्षियों के बच्चे निकलते हैं ॥७॥
टिप्पणी
मन्त्र ७ और ८ का पाठ ऋग्वेद, निरु० १०।१२, तथा अथर्ववेदसंहिता गवर्नमेन्ट बुकडिपो बम्बई, और प० सेवकलाल कृष्णदास बम्बई के पुस्तकों के अनुसार लिया है, वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तक का पाठ विचारणीय है कि कदापि छपने में मन्त्र का अङ्क [७] चौथे पाद पर लगने के स्थान पर दूसरे पाद पर लग गया है, क्योंकि उसमें मन्त्र ७ दो पाद का और मन्त्र ८ छह पाद का छपा है ॥ ७−(बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाण्या रक्षकः (अमत) मनु अवबोधने-लुङ्। ज्ञातवान् (हि) निश्चयेन (त्यत्) प्रसिद्धम् (आसाम्) प्रसिद्धानाम् (नाम) यशः। कीर्तिम् (स्वरीणाम्) अवितॄस्तृतन्त्रिभ्य ईः। उ० ३।१८। स्वृ शब्दोपतापयोः-ईप्रत्ययः। शब्दायमानानां वेदवाणीनाम् (सदने) गृहे (गुहा) गुहायाम्। हृदये (यत्) (आण्डा) अण्डानि (भित्त्वा) विदार्य (शकुनस्य) पक्षिणः (गर्भम्) बालकम् (उत्) ऊर्ध्वम् (उस्रियाः) म० ६। निवासशीलाः प्रजाः (पर्वतस्य) शैलतुल्यदृढस्वभावस्य पुरुषस्य (त्मना) आत्मना (आजत्) म० । अगमयत् ॥
विषय
आण्डेव भित्त्वा शकुनस्य गर्भम्
पदार्थ
१. (बृहस्पतिः) = ज्ञान के स्वामी प्रभु (गुहा सदने) = बुद्धिरूप गुहा के स्थान में (स्वरीणाम्) = शब्दायमान (आसाम्) = इन ज्ञान-धेनुओं के त्यत् नाम-उस प्रसिद्ध [नाम-form] स्वरूप को अमत-जब जनाते हैं तब (हि) = निश्चय से (पर्वतस्य गर्भभित्वा) = अविद्यापर्वत के गर्भ को विदीर्ण करके (उस्त्रिया:) = ज्ञानदुग्ध देनेवाली धेनुओं को त्मना स्वयं ही (उदजत) = उद्गत करते हैं। प्रभु वासना को विनष्ट करते हैं-ज्ञानरश्मियों को प्रकट करते हैं। २. प्रभु बुद्धिरूप गुहा में स्थित ज्ञान की रश्मियों को इसप्रकार प्रकट करते हैं, (इव) = जिस प्रकार (शकुनस्य) = पक्षी के (आण्डा) = अण्डों को (भित्त्वा) = विदीर्ण करके तदन्त:स्थित (गर्भम्) = गर्भ को प्रकट करते हैं।
भावार्थ
प्रभु वासना-विनाश द्वारा ज्ञानरश्मियों को हमारे हृदयों में प्रकट करते हैं।
भाषार्थ
(बृहस्पतिः) वायु ने (सदने) अपने निवासस्थान अन्तरिक्ष में (यत् त्यत्) जो वह (आसां स्वरीणाम्) इन घोषपूर्वक बहती हुई नदियों का (नाम) जल (गुहा) छिपा पड़ा था, उसे (अमत) जान लिया। और उसने (त्मना) निजशक्ति द्वारा (पर्वतस्य) मेघ से (गर्भम्) गर्भ को (भित्त्वा) छिन्न-भिन्न करके (उस्रियसाः) नदियों को (आजत्) प्रकट कर दिया। (इव) जैसे कि (आण्डा) अण्डों को (भित्त्वा) तोड़कर (शकुनस्य) पक्षी के (गर्भम्) गर्भस्थ या गर्भभूत बच्चे को प्रकट किया जाता है।
टिप्पणी
[‘बृहस्पति’ का अर्थ बृहती-सेना का अधिपति भी है। इस आधिभौतिक दृष्टि से सेनानी ने घोष करती हुईं, तथा तापक अस्त्रशस्त्रों से सम्पन्न इन शत्रु सेनाओं को, जो कि अपने सदन में छिप गई थीं, उनके ‘नाम’=अर्थात् नमन को आत्मसमर्पण को ‘अमत’=मान लिया, स्वीकार कर लिया। और पर्वतों के गर्भ में रहनेवाली शत्रु-प्रजा को स्वतन्त्र कर दिया है। ‘स्वरीणाम्’=स्वर करती हुई, आघोष या निनाद करती हुईं बहती नदियाँ। तथा स्वरीणाम्=‘स्वृ’ शब्दे उपतापे। शब्द करती हुईं तथा तपानेवाले अस्त्रशस्त्रों से सम्पन्न शत्रु की सेनाएँ। [पर्वतस्य=मेघस्य (निघं০ १.१०)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indr a Devata
Meaning
Brhaspati knows the name and identity of these voluble facts and processes of existence which are present but hidden in the deep womb of nature and which, radiating like rays of light and flowing like streams, grow and come into being as chicks on maturity break the bird’s egg and spring into full life.7. Brhaspati knows the name and identity of these voluble facts and processes of existence which are present but hidden in the deep womb of nature and which, radiating like rays of light and flowing like streams, grow and come into being as chicks on maturity break the bird’s egg and spring into full life.
Translation
Brihaspati, the atmospheric fire when in the cave-home of the clouds finds the clue of recognition of these luminous rays takes these rays itself away as the youngs of birds come out disclosing the eggs.
Translation
Brihaspati, the atmospheric fire when in the cave-home of the clouds finds the clue of recognition of these luminous rays takes these rays itself away as the youngs of birds come out disclosing the eggs.
Translation
When the Vedic scholar realises the full import of these enlightening Ved-mantras. hidden deep in the Invisible source of theirs (i.e., God), he reveals them with his own power of knowledge, as the rays of light from the Almighty Father, just like the mother-bird, taking out its young one by breaking open the egg.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र ७ और ८ का पाठ ऋग्वेद, निरु० १०।१२, तथा अथर्ववेदसंहिता गवर्नमेन्ट बुकडिपो बम्बई, और प० सेवकलाल कृष्णदास बम्बई के पुस्तकों के अनुसार लिया है, वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तक का पाठ विचारणीय है कि कदापि छपने में मन्त्र का अङ्क [७] चौथे पाद पर लगने के स्थान पर दूसरे पाद पर लग गया है, क्योंकि उसमें मन्त्र ७ दो पाद का और मन्त्र ८ छह पाद का छपा है ॥ ७−(बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाण्या रक्षकः (अमत) मनु अवबोधने-लुङ्। ज्ञातवान् (हि) निश्चयेन (त्यत्) प्रसिद्धम् (आसाम्) प्रसिद्धानाम् (नाम) यशः। कीर्तिम् (स्वरीणाम्) अवितॄस्तृतन्त्रिभ्य ईः। उ० ३।१८। स्वृ शब्दोपतापयोः-ईप्रत्ययः। शब्दायमानानां वेदवाणीनाम् (सदने) गृहे (गुहा) गुहायाम्। हृदये (यत्) (आण्डा) अण्डानि (भित्त्वा) विदार्य (शकुनस्य) पक्षिणः (गर्भम्) बालकम् (उत्) ऊर्ध्वम् (उस्रियाः) म० ६। निवासशीलाः प्रजाः (पर्वतस्य) शैलतुल्यदृढस्वभावस्य पुरुषस्य (त्मना) आत्मना (आजत्) म० । अगमयत् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
বিদ্বদ্গুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(বৃহস্পতিঃ) বৃহস্পতি [মহান বেদবাণীর রক্ষক বিদ্বান্] (হি) ই (আসাম্) এই (স্বরীণাম্) শব্দযুক্ত [বেদবাণীসমূহ] এর (ত্যৎ) সেই (নাম) যশ (অমত) জ্ঞাত হয়েছে, (যৎ) যা (গুহা) হৃদয়ের গুহার (সদনে) ঘরে রয়েছে। (ইব) যেরূপে (আণ্ডা) অণ্ড/ডিম (ভিত্ত্বা) ভেঙে (শকুনস্য) পক্ষীর (গর্ভম্) বাচ্চাকে, [তেমনই] সেই [মহাবিদ্বান্] (উস্রিয়াঃ) নিবাসকারীদের [প্রজাদের] (পর্বতস্য) পর্বত [সমান দৃঢ় স্বভাবযুক্ত মনুষ্য] এর (ত্মনা) আত্মা হতে (উৎ আজৎ) উদিত করেছে॥৭॥
भावार्थ
বিদ্বান্ ব্যক্তি নিজ হৃদয়ে প্রাপ্ত বেদবাণীসমূহের গুণসমূহ জ্ঞাত হয়ে সংসারে এরূপে প্রকট করুক, যেমন ডিম পরিপক্ক হয়ে তা থেকে পক্ষীর বাচ্চা বের হয়॥৭॥ মন্ত্র ৭ এবং ৮ এর পাঠ ঋগ্বেদ, নিরু০ ১০।১২, তথা অথর্ববেদসংহিতা গভর্নমেন্ট বুক ডিপো বোম্বাই, এবং প০ সেবকলাল কৃষ্ণদাস বোম্বাই এর পুস্তক অনুসারে নেওয়া হয়েছে, বৈদিক যন্ত্রালয় আজমের-এর পুস্তকের পাঠ বিচারযোগ্য যে, ছাপার সময় মন্ত্রের অঙ্ক [৭] চতুর্থ পাদে থাকার পরিবর্তে দ্বিতীয় পাদে আছে, কারণ সেখানে মন্ত্র ৭ দুই পাদ-এর এই মন্ত্র ৮ ছয় পাদ-এর ছাপা হয়েছে ॥
भाषार्थ
(বৃহস্পতিঃ) বায়ু (সদনে) নিজের নিবাসস্থান অন্তরিক্ষে (যৎ ত্যৎ) যে সেই (আসাং স্বরীণাম্) এই ঘোষপূর্বক প্রবাহিত নদী-সমূহের (নাম) জল (গুহা) সুপ্ত ছিল, উহা (অমত) জেনে নিয়েছে। এবং (ত্মনা) নিজশক্তি দ্বারা (পর্বতস্য) মেঘ থেকে (গর্ভম্) গর্ভকে (ভিত্ত্বা) ছিন্ন-ভিন্ন করে (উস্রিয়সাঃ) নদী-সমূহ (আজৎ) প্রকট করেছে। (ইব) যেমন (আণ্ডা) ডিম (ভিত্ত্বা) ভেঙে (শকুনস্য) পক্ষীর (গর্ভম্) গর্ভস্থ বা গর্ভভূত বাচ্চা প্রকট করা হয়।
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