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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 16

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
    सूक्त - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१६

    सोषाम॑विन्द॒त्स स्वः सो अ॒ग्निं सो अ॒र्केण॒ वि ब॑बाधे॒ तमां॑सि। बृह॒स्पति॒र्गोव॑पुषो व॒लस्य॒ निर्म॒ज्जानं॒ न पर्व॑णो जभार ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । उ॒षाम् । अ॒वि॒न्द॒त् । स: । स्व॑१॒ रिति॑ स्व॑: । स: । अ॒ग्निम् । स: । अ॒र्केण॑ । वि । ब॒बा॒धे॒ । तमां॑सि ॥ बृह॒स्पति॑: । गोऽव॑पुष: । व॒लस्य॑ । नि: । म॒ज्जान॑म् । न । पर्व॑ण: । ज॒भा॒र॒ ॥१६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोषामविन्दत्स स्वः सो अग्निं सो अर्केण वि बबाधे तमांसि। बृहस्पतिर्गोवपुषो वलस्य निर्मज्जानं न पर्वणो जभार ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । उषाम् । अविन्दत् । स: । स्व१ रिति स्व: । स: । अग्निम् । स: । अर्केण । वि । बबाधे । तमांसि ॥ बृहस्पति: । गोऽवपुष: । वलस्य । नि: । मज्जानम् । न । पर्वण: । जभार ॥१६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 16; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    (सः) उस (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी वेदविद्या के रक्षक महाविद्वान्] ने (उषाम्) उषा [प्रभातवेला के समान प्रकाशवती बुद्धि] को, (सः) उसने (स्वः) सुख को, (सः) उसने (अग्निम्) अग्नि [समान तेज] को (अविन्दत्) पाया है, (सः) उसने (अर्केण) पूजनीय विचार से (तमांसि) अन्धकारों को (वि बबाधे) हटा दिया है। उसने (गोवपुषः) वज्रसमान दृढ़ शरीरवाले (वलस्य) हिंसक असुर के (पर्वणः) जोड़ से (मज्जानम्) मींग को (न) अव (निः जभार) निकाल डाला है ॥९॥

    भावार्थ - विद्वान् पुरुष उत्तम बुद्धि प्राप्त करके सुख के साथ तेजस्वी होकर अज्ञान का नाश कर दुष्टों को मिटावे ॥९॥

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