अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 68/ मन्त्र 2
उप॑ नः॒ सव॒ना ग॑हि॒ सोम॑स्य सोमपाः पिब। गो॒दा इद्रे॒वतो॒ मदः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । न॒: । सव॑ना । आ । ग॒हि॒ । सोम॑स्य । सो॒म॒ऽपा॒: । पि॒ब॒ ॥ गो॒ऽदा: । इत् । रे॒वत॑: । मद॑: ॥६८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
उप नः सवना गहि सोमस्य सोमपाः पिब। गोदा इद्रेवतो मदः ॥
स्वर रहित पद पाठउप । न: । सवना । आ । गहि । सोमस्य । सोमऽपा: । पिब ॥ गोऽदा: । इत् । रेवत: । मद: ॥६८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 2
विषय - मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ -
(सोमपाः) हे ऐश्वर्य के रक्षक ! [राजन्] (नः) हमारे लिये (सवना) ऐश्वर्ययुक्त पदार्थों को (उप) समीप से (आ गहि) तू प्राप्त हो और (सोमस्य) सोम [तत्त्वरस] का (पिब) पान कर, (रेवतः) धनवान् पुरुष का (मदः) हर्ष (इत्) ही (गोदाः) दृष्टि का देनेवाला है ॥२॥
भावार्थ - राजा ऐश्वर्यवान् और दूरदर्शी होकर प्रसन्नतापूर्वक प्रजा को ज्ञानवान् बनावें। ॥२॥
टिप्पणी -
१-३−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।७।१-३ ॥