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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 68

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 68/ मन्त्र 7
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्र छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६८

    एमाशुमा॒शवे॑ भर यज्ञ॒श्रियं॑ नृ॒माद॑नम्। प॑त॒यन्म॑न्द॒यत्स॑खम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ई॒म् । आ॒शुम् । आ॒शवे॑ । भ॒र॒ । य॒ज्ञ॒ऽश्रि॑य॑म् । नृ॒ऽमाद॑नम् ॥ प॒त॒यत् । म॒न्द॒यत्ऽस॑ख्यम् ॥६८.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एमाशुमाशवे भर यज्ञश्रियं नृमादनम्। पतयन्मन्दयत्सखम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । ईम् । आशुम् । आशवे । भर । यज्ञऽश्रियम् । नृऽमादनम् ॥ पतयत् । मन्दयत्ऽसख्यम् ॥६८.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    [हे इन्द्र परमेश्वर !] (आशवे) वेगवाले [रथ आदि] के लिये (यज्ञश्रियम्) यज्ञ [संगतिकरण] से लक्ष्मी बढ़ानेवाले, (नृमादनम्) मनुष्यों को आनन्द देनेवाले (आशुम्) वेग आदि गुणवाले [अग्नि, वायु आदि] पदार्थ और (ईम्) प्राप्तियोग्य जल को और (पतयत्) स्वामिपन देनेवाले, (मन्दयत्सखम्) मित्रों को आनन्द देनेवाले धन को (आ) सब प्रकार (भर) भर दे ॥७॥

    भावार्थ - मनुष्यों को उचित है कि अग्नि वायु जल आदि पदार्थों से विज्ञान द्वारा उपकार लेकर सुखी होवें ॥७॥

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