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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 68

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 68/ मन्त्र 3
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६८

    अथा॑ ते॒ अन्त॑मानां वि॒द्याम॑ सुमती॒नाम्। मा नो॒ अति॑ ख्य॒ आ ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अथ॑ । ते॒ । अन्त॑मानाम् । वि॒द्याम॑ । सु॒ऽम॒ती॒नाम् ॥ मा । न॒: । अति॑ । ख्य॒: । आ । ग॒हि॒ ॥६८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम्। मा नो अति ख्य आ गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अथ । ते । अन्तमानाम् । विद्याम । सुऽमतीनाम् ॥ मा । न: । अति । ख्य: । आ । गहि ॥६८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 68; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    [हे राजन् !] (अथ) और (ते) तेरी (अन्तमानाम्) अत्यन्त समीप रहनेवाली (सुमतीनाम्) सुन्दर बुद्धियों का (विद्याम) हम ज्ञान करें। तू (नः) हमें (अति) छोड़कर (मा ख्यः) मत बोल, (आ गहि) तू आ ॥३॥

    भावार्थ - जब राजा पूर्ण रीति से प्रजापालन करता है, प्रजागण उसकी धार्मिक नीतियों से लाभ उठाकर उससे प्रीति करते हैं ॥३॥

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