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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 12
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    पा॒र्श्वे आ॑स्ता॒मनु॑मत्या॒ भग॑स्यास्तामनू॒वृजौ॑। अ॑ष्ठी॒वन्ता॑वब्रवीन्मि॒त्रो ममै॒तौ केव॑ला॒विति॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पा॒र्श्वे इति॑ । आ॒स्ता॒म् । अनु॑ऽमत्या: । भग॑स्य । आ॒स्ता॒म् । अ॒नु॒ऽवृजौ॑ । अ॒ष्ठी॒वन्तौ॑ । अ॒ब्र॒वी॒त् । मि॒त्र: । मम॑ । ए॒तौ । केव॑लौ । इति॑ ॥४.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पार्श्वे आस्तामनुमत्या भगस्यास्तामनूवृजौ। अष्ठीवन्तावब्रवीन्मित्रो ममैतौ केवलाविति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पार्श्वे इति । आस्ताम् । अनुऽमत्या: । भगस्य । आस्ताम् । अनुऽवृजौ । अष्ठीवन्तौ । अब्रवीत् । मित्र: । मम । एतौ । केवलौ । इति ॥४.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    [परमेश्वर की] (पार्श्वे) दोनों काँखें [कक्षाएँ] (अनुमत्याः) अनुकूल बुद्धि की (आस्ताम्) थीं, (अनुवृजौ) [उसकी] दोनों कोखें (भगस्य) ऐश्वर्य की (आस्ताम्) थीं। (अष्ठीवन्तौ) [उसके] दोनों घुटनों को (मित्रः) प्राण ने (अब्रवीत्) बतलाया, “(एतौ) यह दोनों (केवलौ) केवल (मम) मेरे हैं, (इति) बस” ॥१२॥

    भावार्थ - अलङ्कार से निराकार परमेश्वर में मनुष्य आदि के आकार की कल्पना करके उसके गुणों का वर्णन है। वह जगदीश्वर सर्वथा अनुकूल बुद्धिवाला परम ऐश्वर्यवान् और प्राण आदि का चलानेवाला है ॥१२॥

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