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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - जगती सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    सोमे॑न पू॒र्णं क॒लशं॑ बिभर्षि॒ त्वष्टा॑ रू॒पाणां॑ जनि॒ता प॑शू॒नाम्। शि॒वास्ते॑ सन्तु प्रज॒न्व इ॒ह या इ॒मा न्यस्मभ्यं॑ स्वधिते यच्छ॒ या अ॒मूः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमे॑न । पू॒र्णम्‌ । क॒लश॑म् । बि॒भ॒र्षि॒ । त्वष्टा॑ । रूपाणा॑म् । ज॒नि॒ता । प॒शू॒नाम् । शि॒वा: । ते॒ । स॒न्तु॒ । प्र॒ऽज॒न्व᳡: । इ॒ह । या: । इ॒मा: । नि । अ॒स्मभ्य॑म् । स्व॒ऽधि॒ते॒ । य॒च्छ॒ । या: । अ॒मू: ॥४.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमेन पूर्णं कलशं बिभर्षि त्वष्टा रूपाणां जनिता पशूनाम्। शिवास्ते सन्तु प्रजन्व इह या इमा न्यस्मभ्यं स्वधिते यच्छ या अमूः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमेन । पूर्णम्‌ । कलशम् । बिभर्षि । त्वष्टा । रूपाणाम् । जनिता । पशूनाम् । शिवा: । ते । सन्तु । प्रऽजन्व: । इह । या: । इमा: । नि । अस्मभ्यम् । स्वऽधिते । यच्छ । या: । अमू: ॥४.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (रूपाणाम्) सब रूपों का (त्वष्टा) बनानेवाला और (पशूनाम्) सब जीवों का (जनिता) उत्पन्न करनेवाला तू (सोमेन) अमृत से (पूर्णम्) पूर्ण (कलशम्) कलश (बिभर्षि) धारण करता है। (स्वधिते) हे स्वयं धारण करनेवाले ! (ते) तेरी (प्रजन्वः) प्रजनन शक्तियाँ (इह) यहाँ पर (शिवाः) कल्याणी (सन्तु) होवें, (याः) जो प्रजनन शक्तियाँ (इमाः) यह हैं और (याः) जो (अमूः) वे हैं [उन सबको] (अस्मभ्यम्) हमें (नि) नियमपूर्वक (यच्छ) दान कर ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्य परमेश्वर के महान् उपकारों को विचार कर पुरुषार्थपूर्वक संसार के समीपस्थ और दूरस्थ पदार्थों को उपयोगी बनावें ॥६॥

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