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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 13
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    भ॒सदा॑सीदादि॒त्यानां॒ श्रोणी॑ आस्तां॒ बृह॒स्पतेः॑। पुच्छं॒ वात॑स्य दे॒वस्य॒ तेन॑ धूनो॒त्योष॑धीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भ॒सत् । आ॒सी॒त् । आ॒दि॒त्याना॑म् । श्रोणी॒ इति॑ । आ॒स्ता॒म् । बृह॒स्पते॑: । पुच्छ॑म् । वात॑स्य । दे॒वस्य॑ । तेन॑ । धू॒नो॒ति॒ । ओष॑धी: ॥४.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भसदासीदादित्यानां श्रोणी आस्तां बृहस्पतेः। पुच्छं वातस्य देवस्य तेन धूनोत्योषधीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भसत् । आसीत् । आदित्यानाम् । श्रोणी इति । आस्ताम् । बृहस्पते: । पुच्छम् । वातस्य । देवस्य । तेन । धूनोति । ओषधी: ॥४.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 13

    पदार्थ -
    (भसत्) [परमेश्वर की] पेड़ू (आदित्यानाम्) अनेक सूर्यलोकों की (आसीत्) थी, [उसके] (श्रोणी) दोनों कूल्हे (बृहस्पतेः) बृहस्पति लोक के (आस्ताम्) थे। [उसकी] (पुच्छम्) पूँछ (देवस्य) गतिमान् (वातस्य) वायु की [थी], (तेन) उससे (ओषधीः) ओषधियों को (धूनोति) वह हिलाता है ॥१३॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में परमेश्वर को पूँछवाले पक्षी पशु आदि के समान माना है। उस परमेश्वर में अनन्त सूर्य और बृहस्पति आदि लोक और वायुमण्डल रह कर उसी की शक्ति से चलते हैं ॥१३॥

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