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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 14
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    गुदा॑ आसन्त्सिनीवा॒ल्याः सू॒र्याया॒स्त्वच॑मब्रुवन्। उ॑त्था॒तुर॑ब्रुवन्प॒द ऋ॑ष॒भं यदक॑ल्पयन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गुदा॑: । आ॒स॒न् । सि॒नी॒वा॒ल्या: । सू॒र्याया॑: । त्वच॑म् । अ॒ब्रु॒व॒न् । उ॒त्था॒तु: । अ॒ब्रु॒व॒न् । प॒द: । ऋ॒ष॒भम् । यत् । अक॑ल्पयन् ॥४.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गुदा आसन्त्सिनीवाल्याः सूर्यायास्त्वचमब्रुवन्। उत्थातुरब्रुवन्पद ऋषभं यदकल्पयन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गुदा: । आसन् । सिनीवाल्या: । सूर्याया: । त्वचम् । अब्रुवन् । उत्थातु: । अब्रुवन् । पद: । ऋषभम् । यत् । अकल्पयन् ॥४.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    [परमेश्वर की] (गुदाः) गुदा की नाड़ियाँ (सिनीवाल्याः) चौदस के साथ मिली हुई अमावस की (आसन्) थीं, [उसकी] (त्वचम्) त्वचा को (सूर्यायाः) सूर्य की धूप का (अब्रुवन्) उन्होंने बतलाया। (पदः) [उसके] पैरों को (उत्थातुः) उठनेवाले [उत्साही पुरुष] का (अब्रुवन्) उन्होंने बतलाया, (यत्) जब (ऋषभम्) सर्वव्यापक परमेश्वर को (अकल्पयन्) उन्होंने कल्पना से माना ॥१४॥

    भावार्थ - परमेश्वर अन्धकार और प्रकाश का जतानेवाला और पुरुषार्थियों को चलानेवाला है, ऐसा विद्वान् लोग समझते हैं [चौदस के साथ मिली अमावस में प्रकाश थोड़ा और अन्धकार अधिक होता है] ॥१४॥

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