Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    पुमा॑न॒न्तर्वा॒न्त्स्थवि॑रः॒ पय॑स्वा॒न्वसोः॒ कब॑न्धमृष॒भो बि॑भर्ति। तमिन्द्रा॑य प॒थिभि॑र्देव॒यानै॑र्हु॒तम॒ग्निर्व॑हतु जा॒तवे॑दाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुमा॑न् । अ॒न्त:ऽवा॑न् । स्थवि॑र: । पय॑स्वान् । वसो॑: । कब॑न्धम् । ऋ॒ष॒भ: । बि॒भ॒र्ति॒ । तम् । इन्द्रा॑य । प॒थिऽभि॑: । दे॒व॒ऽयानै॑: । हु॒तम् । अ॒ग्नि: । व॒ह॒तु॒ । जा॒तऽवे॑दा: ॥४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुमानन्तर्वान्त्स्थविरः पयस्वान्वसोः कबन्धमृषभो बिभर्ति। तमिन्द्राय पथिभिर्देवयानैर्हुतमग्निर्वहतु जातवेदाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुमान् । अन्त:ऽवान् । स्थविर: । पयस्वान् । वसो: । कबन्धम् । ऋषभ: । बिभर्ति । तम् । इन्द्राय । पथिऽभि: । देवऽयानै: । हुतम् । अग्नि: । वहतु । जातऽवेदा: ॥४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (पुमान्) रक्षा करनेवाला, (अन्तर्वान्) [सबको अपने] भीतर रखनेवाला, (स्थविरः) स्थिरस्वभाव [ब्रह्मा] (पयस्वान्) अन्नवान् (ऋषभः) सर्वव्यापक परमेश्वर (वसोः) निवास करनेवाले [संसार] के (कबन्धम्) उदर को (बिभर्त्ति) भरता है। (तम् हुतम्) उस दाता को (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य के लिये (देवयानैः) विद्वानों के जाने योग्य (पथिभिः) मार्गों से (जातवेदाः) बड़े ज्ञानवाला (अग्निः) अग्नि [समान तेजस्वी पुरुष] (वहतु) प्राप्त करे ॥३॥

    भावार्थ - जो परमात्मा सब संसार में भीतर और बाहिर व्यापक होकर सबका पालन करता है, ज्ञानी पुरुष उसी की उपासना से ऐश्वर्य प्राप्त करते हैं ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top