ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
ए॒ष दे॒वो वि॒पा कृ॒तोऽति॒ ह्वरां॑सि धावति । पव॑मानो॒ अदा॑भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । दे॒वः । वि॒पा । कृ॒तः । अति॑ । ह्वरां॑सि । धा॒व॒ति॒ । पव॑मानः । अदा॑भ्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष देवो विपा कृतोऽति ह्वरांसि धावति । पवमानो अदाभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । देवः । विपा । कृतः । अति । ह्वरांसि । धावति । पवमानः । अदाभ्यः ॥ ९.३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एष, देवः) अयं पूर्ववर्णितः परमात्मा देवः (विपा) मेधाविभिर्विद्वद्भिः। विप इति मेधाविनामसु पठितम्। निघ० ३।१५ ॥ (अति) विस्तरेण (कृतः) वर्णितः (अदाभ्यः) उपासितः (पवमानः) पवित्रो देवः सः (ह्वरांसि) उपासकहृदये (धावति) प्राप्नोति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एष देवः) यह पूर्वोक्त देव (विपा) मेधावी विद्वानों ने (अति) विस्तार से (कृतः) वर्णन किया है “विप इति मेधाविनामसु पठितम्” नि० ३।१५। (अदाभ्यः) उपासना किया हुआ (पवमानः) यह पवित्र देव (ह्वरांसि) उपासकों के हृदय में (धावति) प्राप्त होता है ॥२॥
भावार्थ
जिस परमात्मा का विद्वान् लोग वर्णन करते हैं, वह उपासना करने से उपासकों के हृदय में आविर्भाव को प्राप्त होता है ॥२॥
विषय
पवमान अदाभ्य
पदार्थ
[१] (विपा) = [विप् = A wise man] एक बुद्धिमान् पुरुष से (कृतः) = शरीर में परिष्कृत किया गया (एषः देवः) = यह रोगकृमियों को जीतनेवाला सोम [वीर्य] (ह्वरांसि अतिधावति) = सब कुटिलताओं को भी लांघ जाता है। शरीर में परिष्कृत सोम रोगों से व कुटिलताओं से बचाकर हमें स्वस्थ शरीर व निर्मल मनवाला बनाता है। [२] यह सोम (पवमानः) = हमें पवित्र करता है और (अदाभ्यः) = कभी हिंसित होने योग्य नहीं होता। जब सोम शरीर में सुरक्षित होता है तो मन में छलछिद्र व कुटिलता की भावनायें उत्पन्न नहीं होती। इसी प्रकार शरीर पर रोग आक्रमण नहीं कर पाते ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम रोगकृमियों को पराजित करता है और हमें कुटिल भावों से बचाता है ।
विषय
विजिगीषु राजा सोम।
भावार्थ
(एषः) यह (देवः) तेजस्वी (पवमानः) राष्ट्र का कण्टक-शोधन करता हुआ, (अदाभ्यः) किसी से हिंसित या पीड़ित न होकर (विपा) विशेष पालक शक्ति से (कृतः) समर्थ होकर (ह्वरांसि) कुटिलाचारी जनों को (अति धावति) पार कर जाता है, उनको जीत कर प्रजा को अपने वश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुनःशेप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ विराड् गायत्री। ३, ५, ७,१० गायत्री। ४, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This refulgent spirit is celebrated by sages and, being undaunted, overtakes all crookedness, purifying and sanctifying everything and every mind.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या परमेश्वराचे विद्वान लोक वर्णन करतात. त्याची उपासना करण्याने तो उपासकांच्या हृदयात प्रकट होतो ॥२॥
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