ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 4
ए॒ष विश्वा॑नि॒ वार्या॒ शूरो॒ यन्नि॑व॒ सत्व॑भिः । पव॑मानः सिषासति ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । विश्वा॑नि । वार्या॑ । शूरः॑ । यन्ऽइ॑व । सत्व॑ऽभिः । पव॑मानः । सि॒सा॒स॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष विश्वानि वार्या शूरो यन्निव सत्वभिः । पवमानः सिषासति ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । विश्वानि । वार्या । शूरः । यन्ऽइव । सत्वऽभिः । पवमानः । सिसासति ॥ ९.३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः) पूर्वोक्तो देवः (विश्वानि) सर्वाणि (वार्या) धनानि (सिषासति) विभजति। (इव) यथा (शूरः) वीरः (सत्वभिः) आत्मपराक्रमैः (यन्) आक्रामन् सर्वमसत्यमपाकरोति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः) यह पूर्वोक्त देव (विश्वानि) सम्पूर्ण (वार्या) धनों का (सिषासति) विभाग करता है। (इव) जिस प्रकार (शूरः) शूरवीर (सत्वभिः) अपने पराक्रमों से (यन्) आक्रमण करता हुआ सच-झूठ का निपटारा कर देता है ॥४॥
भावार्थ
परमात्मदेव अपने ऐश्वर्य्यों का विभाग पात्र-अपात्र समझकर करता है। जिसको वह अपने ऐश्वर्य्य का पात्र समझता है, उसको ऐश्वर्य्य देता है और जिसको अपात्र समझता है, उससे ऐश्वर्य्य हर लेता है। जिस प्रकार पात्र अपनी बनावट और अपने गुण-कर्म्म-स्वभाव से पात्रता को प्राप्त है, वा यों कहो कि पूर्वकृत प्रारब्ध कर्मों से वह उपादेय वस्तु को प्राप्त होने योग्य बनाता है ॥ जो लोग निष्कर्म्म मन्दभागी और आलसी हैं, वे सदैव ईश्वर के ऐश्वर्य्य से वञ्चित रहते हैं, इसीलिये उनको अपात्र कहा है। उक्त मन्त्र में शूरवीर का दृष्टान्त इस अभिप्राय से दिया है कि जिस प्रकार शूरवीर के निपटारा करने के बाद किसी को अतोष तथा ननु नच करने का अवकाश नहीं मिलता, उसी प्रकार परमात्मा के निपटारा करने पर फिर किसी को झगड़े अथवा ननु नच करने का अवकाश नहीं रहता ॥४॥
विषय
शूर
पदार्थ
[१] (एषः) = यह सोम (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता है और (विश्वानि वार्या) = सब वरणीय वस्तुओं को (सिषासति) = हमें प्राप्त कराता है। शरीर के स्वास्थ्य को, मन के प्रसाद को तथा बुद्धि की तीव्रता को देनेवाला यही है । [२] यह सोम (शूरः इव) = एक शूरवीर योद्धा के समान है, जो कि (सत्वभिः यन्) = पराक्रमों के साथ शत्रुओं के प्रति आक्रमण करनेवाला है। शरीर में रोगकृमि रूप शत्रुओं को यह सोम [वीर्य] उसी प्रकार नष्ट करता है, जैसे कि एक वीर योद्धा रणांगण में शत्रुओं को ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम वह शूरवीर योद्धा बनता है जो कि रोगकृमि रूप शत्रुओं को शीर्ण कर देता है ।
विषय
उसका अभिषेक ।
भावार्थ
(एषः शूरः) वह शूरवीर (सत्वभिः) अपने बलों और बलवान् पुरुषों द्वारा (विश्वानि वार्या) समस्त उत्तम २ ऐश्वर्यो को (यन् इव) मानो प्राप्त ही करता हुआ (पवमानः) स्वयं पवित्र करता. हुआ (सिषासति) सबमें न्यायपूर्वक विभक्त करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुनःशेप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ विराड् गायत्री। ३, ५, ७,१० गायत्री। ४, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This divine spirit, pure, purifying and powerful, advancing by its own essential power as a hero, brings and distributes cherished gifts of life among the celebrants.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर आपल्या ऐश्वर्याची विभागणी पात्र व अपात्र जाणून करतो. ज्याला तो ऐश्वर्याच्या पात्र समजतो त्याला ऐश्वर्य देतो व ज्याला अपात्र समजतो त्याच्याकडून ऐश्वर्य काढून घेतो. पुरुष आपल्या गुण कर्म स्वभावामुळे पात्रता प्राप्त करतो किंवा पूर्वकृत प्रारब्ध कर्मांनी उपादेय वस्तूला प्राप्त करण्या योग्य बनतो.
टिप्पणी
जे लोक निष्कर्मी, मन्दभागी व आळशी असतात ते सदैव ईश्वराच्या ऐश्वर्यापासून वंचित असतात. त्यासाठी त्यांना अपात्र म्हटलेले आहे. वरील मंत्रात शूरवीराचा दृष्टांत याच अभिप्रायाने दिलेला आहे. एकदा शूरवीराचा निर्णय झाल्यावर कुणालाही असंतोष व नकाराचा अवकाश नसतो. ॥४॥
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