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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
    ऋषिः - शुनः शेपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष दिवं॒ व्यास॑रत्ति॒रो रजां॒स्यस्पृ॑तः । पव॑मानः स्वध्व॒रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । दिव॑म् । वि । आ । अ॒स॒र॒त् । ति॒रः । रजां॑सि । अस्पृ॑तः । पव॑मानः । सु॒ऽअ॒ध्व॒रः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष दिवं व्यासरत्तिरो रजांस्यस्पृतः । पवमानः स्वध्वरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । दिवम् । वि । आ । असरत् । तिरः । रजांसि । अस्पृतः । पवमानः । सुऽअध्वरः ॥ ९.३.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एषः) स परमात्मा (दिवम्) द्युलोकं (व्यासरत्) प्राप्तोऽस्ति (रजांसि) परमाणुषु लोकलोकान्तरम् (तिरः) आच्छाद्य (अस्पृतः) अविनाशिभावेन (पवमानः) पवित्रतया (स्वध्वरः) अहिंसकत्वेन च विराजते ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (एषः) वही परमात्मा (दिवम्) द्युलोक को (व्यासरत्) प्राप्त है (रजांसि) परमाणु में लोक-लोकान्तरों को (तिरः) आच्छादन करके (अस्पृतः) अविनाशी भाव से (पवमानः) पवित्र और (स्वध्वरः) अहिंसकरूप से विराजमान है ॥८॥

    भावार्थ

    वह नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वभाव परमात्मा सर्वत्र विराजमान है और उसी की सत्ता से सब लोक-लोकान्तर परिभ्रमण करते हैं ॥८॥

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    विषय

    'स्वध्वर' सोम

    पदार्थ

    [१] (एष:) = यह सोम (अस्पृतः) = [स्पृणाति to kill ] न नष्ट किया गया हुआ (रजांसि तिरः) = सब रजोगुण के भावों को तिरस्कृत करके (दिवं व्यासरत्) = प्रकाश की ओर गतिवाला होता है । सुरक्षित सोम जीवन को प्रकाशमय बनाता है। [२] (पवमानः) = यह सोम हमारे हृदयों को पवित्र करता है और (स्वध्वरः) = हमारे जीवनों को उत्तम यज्ञोंवाला बनाता है। मस्तिष्क दीप्त होने पर और हृदय के पवित्र होने पर जीवन यज्ञमय क्यों नहीं बनेगा ?

    भावार्थ

    भावार्थ - यदि सोम का हम रक्षण करेंगे तो यह हमारे जीवनों को प्रकाशमय, पवित्र व यज्ञिय बनायेगा ।

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    विषय

    राजा का प्रयाण, विजय और अभिषेक प्राप्ति ।

    भावार्थ

    (एषः) वह (पवमानः) राष्ट्र को स्वच्छ करता हुआ (सु-अध्वरः) उत्तम अहिंसनीय, स्वयं हिंसा रहित, (अस्पृतः) किसी से न पराजित होने वाला, वीर पुरुष (रजांसि तिरः) रजोगुणों से मुक्त वा ऐश्वर्यो को दूर तक परे फेंकता हुआ, (दिवं वि आसरत्) विजयार्थं विविध दिशाओं में प्रयाण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ विराड् गायत्री। ३, ५, ७,१० गायत्री। ४, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This spirit radiates to the heavens across the atomic oceans of skies and spaces, unhurt and unopposed, pure, purifying, performing the cosmic yajna of love, non-violence and creation of new life in evolution.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    तो नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव परमेश्वर सर्वत्र विराजमान आहे व त्याच्या सत्तेनेच सर्व लोक लोकांत्तर परिभ्रमण करतात. ॥८॥

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