ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 5
ए॒ष दे॒वो र॑थर्यति॒ पव॑मानो दशस्यति । आ॒विष्कृ॑णोति वग्व॒नुम् ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । दे॒वः । र॒थ॒र्य॒ति॒ । पव॑मानः । द॒श॒स्य॒ति॒ । आ॒विः । कृ॒णो॒ति॒ । व॒ग्व॒नुम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष देवो रथर्यति पवमानो दशस्यति । आविष्कृणोति वग्वनुम् ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । देवः । रथर्यति । पवमानः । दशस्यति । आविः । कृणोति । वग्वनुम् ॥ ९.३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एष, देवः) अयं देवः परमात्मा (पवमानः) सर्वं पुनानः (रथर्यति) सर्वस्य शुभं काङ्क्षति (दशस्यति) मनोवाञ्छितं प्रापयति च तथा (वग्वनुम्) सत्यम् (आविष्कृणोति) प्रकटयति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एष देवः) यह पूर्वोक्तदेव (पवमानः) सबको पवित्र करता हुआ (रथर्यति) सदा सबका शुभ चाहता है और (दशस्यति) मनोवाञ्छित फलों की प्राप्ति कराता है तथा (वग्वनुम्) सत्य को (आविष्कृणोति) प्रकट करता है ॥५॥
भावार्थ
वही परमात्मा सबके लिये पवित्रता का धाम है। सब लोग आत्मिक, शारीरिक तथा सामाजिक पवित्रताएँ उसी से प्राप्त करते हैं, इसलिये वही परमदेव एकमात्र उपासनीय है ॥७॥१०॥
विषय
रथर्यति - दशस्यति
पदार्थ
[१] (एषः) = यह सोम (देवः) = सब रोगों को जीतने की कामना करता हुआ (रथर्यति) = उत्तम रथ को चाहता है, शरीर रूप रथ को उत्तम बनाना चाहता है। (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र बनाता हुआ (दशस्यति) = [दश आत्मनः इच्छति ] दसों इन्द्रियाश्वों को सुन्दर बनाता है । सोम के द्वारा शरीर - रथ भी ठीक बना रहता है और इन्द्रियाश्व भी शक्तिशाली बने रहते हैं । [२] यह सोम हमारी ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर (वग्वनुम्) = उत्तम ज्ञान की वाणियों को (आविष्कृणोति) = प्रकट करता है । बुद्धि के दीप्त होने पर और हृदय के पवित्र होने पर अन्तः स्थित प्रभु की प्रेरणायें सुन ही पड़ती हैं। यही आत्मा की आवाज का सुनाई पड़ना है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से शरीर, इन्द्रियाँ व बुद्धि सभी का ठीक विकास होता है ।
विषय
उसका कण्टक-शोधन का कर्त्तव्य । (६)
भावार्थ
(एषः) वह (देवः) तेजस्वी पुरुष (पवमानः) राष्ट्र को दुष्ट पुरुषों से कण्टक शोधनवत् स्वच्छ करता हुआ, शत्रु के प्रति प्रयाण करने के लिये उद्यत होकर (रथर्यति) रथों, रथारोही सैन्यगण की कामना करे और उनको (दशस्यति) अभिमत वेतनादि भी दे। और (वग्वनुम्) उत्तम वचन (आविः कृणोति) प्रकट करे। इति विंशो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुनःशेप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ विराड् गायत्री। ३, ५, ७,१० गायत्री। ४, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This spirit of divinity going forward like a chariot, pure, purifying, gives the gifts of life and reveals new and latest words of advance knowledge as it moves on.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्माच सर्वांसाठी पवित्रतेचे धाम आहे. सर्व लोक आत्मिक, शारीरिक, सामाजिक पवित्रता त्याच्याकडूनच प्राप्त करतात. त्यासाठी तोच परमदेव उपासनीय आहे. ॥५॥
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