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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 6
    ऋषिः - शुनः शेपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष विप्रै॑र॒भिष्टु॑तो॒ऽपो दे॒वो वि गा॑हते । दध॒द्रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । विप्रैः॑ । अ॒भिऽस्तु॑तः । अ॒पः । दे॒वः । वि । गा॒ह॒ते॒ । दध॑त् । रत्ना॑नि । दा॒शुषे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष विप्रैरभिष्टुतोऽपो देवो वि गाहते । दधद्रत्नानि दाशुषे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । विप्रैः । अभिऽस्तुतः । अपः । देवः । वि । गाहते । दधत् । रत्नानि । दाशुषे ॥ ९.३.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एषः) अयं परमात्मा (विप्रैः) मेधाविभिः (अभिष्टुतः) वर्णितः (अपो देवः) कर्मणामध्यक्षः (विगाहते) समस्तस्य जगतः सृष्टिस्थितिलयकर्ता (दाशुषे) यजमानाय (रत्नानि) विविधं धनम् (दधत्) दद्यात् ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (एषः) यह परमात्मा (विप्रैः) मेधावी लोगों के द्वारा (अभिष्टुतः) वर्णन किया गया है “विप्र इति मेधाविनामसु पठितम्” निरु० ३।१९५ (अपो देवः) कर्मों का अध्यक्ष है (विगाहते) सम्पूर्ण संसार की उत्पति स्थिति प्रलय करनेवाला है, (दाशुषे) यह यजमानों को (रत्नानि) नाना प्रकार के धन (दधत्) देवे ॥६॥

    भावार्थ

    विद्वान् लोग जिस परमात्मा का नाना प्रकार से वर्णन करते हैं, वही इन्द्रियागोचर और एकमात्र ज्ञानगम्य परमात्मा सर्वाधार, सर्वकर्ता, अजर, अमर और कूटस्थनित्य है, इसी की उपासना सबको करनी चाहिये ॥६॥

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    विषय

    रत्नों का आधान

    पदार्थ

    [१] (एषः) = यह (विप्रैः) = मेधावी पुरुषों से (अभिष्टुतः) = अभ्युदय व निःश्रेयस प्राप्ति के साधन के रूप में स्तुत हुआ हुआ (देवः) = रोगों को जीतने की कामनावाला सोम (अपः विगाहते) = कर्मों का अवगाहन करता है। सोम के रक्षण से इहलोक अभ्युदयवाला बनता है तो परलोक निःश्रेयसवाला होता है। एवं सोम इहलोक व परलोक दोनों के दृष्टिकोण से स्तुत होता है। रक्षित सोम से शक्ति वर्धन होकर हमारा जीवन कर्ममय होता है। इस प्रकार यह सोम हमें कर्मों में अवगाहन करनेवाला बनाता है । [२] यह सोम (दाशुषे) = अपने को सोम के प्रति दे डालनेवाले के लिये, सोमरक्षण को ही जीवन का लक्ष्य बना लेनेवाले के लिये (रत्नानि दधत्) = रत्नों को धारण करता है । सोम के रक्षित होने पर हमें सभी रमणीय वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। यही भाव चतुर्थ मन्त्र में 'विश्वानि वार्या सिषासति' इन शब्दों से कहा गया है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे जीवन का ध्येय सोम का रक्षण हो । यह रक्षित सोम सब रमणीय वस्तुओं को हमें प्राप्त करायेगा। इसके रक्षण से तमोगुण की अकर्मण्यता नष्ट हो जाएगी।

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    विषय

    अभिषेक होने का अन्य अभिप्राय । सोम-सवन विधि से राज्याभिषेक के कर्त्तव्यों की सूचना ।

    भावार्थ

    (एषः) वह (देवः) दानशील, तेजस्वी, विजिगीषु राजा, (विप्रैः) विद्वानों से (अभि-स्तुतः) सब प्रकार से स्तुति किया जाकर (रत्नानि दधत्) नाना रत्नों, ऐश्वर्यों और धनों को धारण करता हुआ (दाशुषे) अपने को अधीन समर्पण करने वाला राष्ट्र के हितार्थ (अपः वि गाहते) अभिषेचनीय जलों में स्नान करता है, उसी प्रकार वह प्राप्त प्रजाजनों में भी विचरता है। राज्याभिषेक काल में समस्त जल समस्त प्रजाओं के प्रतिनिधि होते हैं। और इसी प्रकार यज्ञ में ‘वसतीवरी’ जल का पात्र द्रोणकलश भी प्रजारूप जलों से पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधि कहा जाता है। रहस्य स्पष्टीकरण देखो यजुर्वेद (अ० १०) आलोकभाष्य अभिषेक प्रकरण।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ विराड् गायत्री। ३, ५, ७,१० गायत्री। ४, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This spirit, divine, generous and refulgent, adored and exalted by sages and scholars, and holding jewel gifts of life for people of generous charity, watches and controls the actions of humanity and the laws of nature in operation.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान लोक ज्या परमेश्वराचे नाना प्रकारे वर्णन करतात तो इंद्रियागोचर व एकमेव ज्ञानगम्य परमेश्वर सर्वाधार, सर्वकर्ता, अजर, अमर व कूटस्थ नित्य आहे. त्याचीच उपासना सर्वांनी केली पाहिजे. ॥६॥

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