यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 19
ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः
देवता - विश्वेदेवा देवताः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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ति॒स्रऽइडा॒ सर॑स्वती॒ भार॑ती म॒रुतो॒ विशः॑।वि॒राट् छन्द॑ऽइ॒हेन्द्रि॒यं धे॒नुर्गौर्न वयो॑ दधुः॥१९॥
स्वर सहित पद पाठति॒स्रः। इडा॑। सर॑स्वती। भार॑ती। म॒रुतः॑। विशः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। छन्दः॑। इ॒ह। इ॒न्द्रि॒यम्। धे॒नुः। गौः। न। वयः॑। द॒धुः॒ ॥१९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तिस्रऽइडा सरस्वती भारती मरुतो विशः । विराट्छन्दऽइहेन्द्रियन्धेनुर्गौर्न वयो दधुः ॥
स्वर रहित पद पाठ
तिस्रः। इडा। सरस्वती। भारती। मरुतः। विशः। विराडिति विऽराट्। छन्दः। इह। इन्द्रियम्। धेनुः। गौः। न। वयः। दधुः॥१९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्विषयमाह॥
अन्वयः
यथेहेडा सरस्वती भारती च तिस्रो मरुतो विशो विराट् छन्द इन्द्रियं धेनुर्गौर्न वयश्च दधुस्तथा सर्वे मनुष्या एतद्धृत्वा वर्तेरन्॥१९॥
पदार्थः
(तिस्रः) त्रित्वसंख्यावत्यः (इडा) भूमिः (सरस्वती) वाणी (भारती) धारणवती प्रज्ञा (मरुतः) वायवः (विशः) मनुष्याद्याः प्रजाः (विराट्) यद्विविधं राजते तत् (छन्दः) बलम् (इह) अस्मिन् संसारे (इन्द्रियम्) धनम् (धेनुः) या धापयति सा (गौः) (न) इव (वयः) प्राप्तव्यं वस्तु (दधुः) दध्युः॥१९॥
भावार्थः
अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा विद्वांसः सुशिक्षितया वाचा विद्यया प्राणैः पशुभिश्चैश्वर्य्यं लभन्ते, तथाऽन्यैर्लब्धव्यम्॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वानों के विषय में अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जैसे (इह) इस जगत् में (इडा) पृथ्वी (सरस्वती) वाणी और (भारती) धारण वाली बुद्धि ये (तिस्रः) तीन (मरुतः) पवनगण (विशः) मनुष्य आदि प्रजा (विराट्) तथा अनेक प्रकार से देदीप्यमान (छन्दः) बल (इन्द्रियम्) धन को और (धेनुः) पान कराने हारी (गौः) गाय के (न) समान (वयः) प्राप्त होने योग्य वस्तु को (दधुः) धारण करें, वैसे सब मनुष्य लोग इस को धारण करके वर्त्ताव करें॥१९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे विद्वान् लोग सुशिक्षित वाणी, विद्या, प्राण और पशुओं से ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं, वैसे अन्य सब को प्राप्त होना चाहिए॥१९॥
विषय
आप्री देवों का वर्णन । अग्नि, तनृनपात्, सोम बहिः, द्वार, उषासानक्ता, दैव्य होता, इडा आदि तीन देवियां, त्वष्टा, वनस्पति, वरण इन पदाधिकारों के कर्त्तव्य बल और आवश्यक सदाचार । तपः सामर्थ्य का वर्णन ।
भावार्थ
(इडा, सरस्वती, भारती) इडा, सरस्वती और भारती नामक (तिस्रः) तीन समितियां और (मरुतः) वायुओं के समान तीव्र वेग वाली या देशदेशान्तर में गमन करने वाली, शत्रुमारक वीर सेना रूप (विशः) प्रजाएं और (विराट् छन्दः) ४० अक्षरों के विराट् छन्द के अनुसार ४० वर्षों का अक्षत ' ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला पुरुष और (धेनुः गौः)दुधार गौ ये सब राष्ट्र में ( इन्द्रियम् ) राजा के ऐश्वर्यं और (वय: ) दीर्घ जीवन को धारण करते हैं वे राष्ट्र में भी धारण करावें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
धेनुगौः
पदार्थ
१. (इडा सरस्वती भारती तिस्रः) = श्रद्धा, ज्ञानाधिदेवता तथा वाणी-ये तीन, तथा २. (मरुतो विश:) = [मितराविणः, महद् द्रवन्ति इति वा - नि० ११।१३] कम बोलनेवाले, परन्तु खूब कार्य करनेवाले, मनुष्य अपने उदाहरण से हमारे जीवनों को उत्कृष्ट बनाएँ। ३. (विराट् छन्दः) = हमारे अन्दर भी ('मरुतो विशः') = की भाँति अपने जीवनों को विशिष्ट रूप से दीप्त बनाने की कामना हो। यह जीवनों को दीप्त बनाने की कामना हमें ऊँचा उठाती है। हम अपनी शक्ति को भोगविलास में नष्ट नहीं होने देते और इस प्रकार हमारा जीवन उत्कृष्ट बनता है। ४. (धेनुः गौः न) = [नकारश्चार्थे - उ०] ज्ञान- दुग्ध का पान करानेवाली ज्ञानरश्मियाँ (इह) = इस मानव-जीवन में (इन्द्रियम्) = शक्ति को तथा (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को हममें (दधुः) = धारण करें। सारी अवनति का मूल अज्ञान है, ज्ञान से ही जीवन उन्नत होता है।
भावार्थ
भावार्थ - १. श्रद्धा, ज्ञान व पवित्र वाणी २. मितभाषी पुरुष ३. विशेषरूप से चमकने हमारे जीवन को उत्कृष्ट की प्रबल कामना तथा ४. ज्ञानदुग्ध को पिलानेवाली ज्ञानरश्मियाँ बनाएँ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान लोक जसे सुशिक्षित वाणी, विद्या, प्राण व पशू यांच्यापासून ऐश्वर्य प्राप्त करतात तसे इतरांनीही प्राप्त करावे.
विषय
आता विद्वानांविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - ज्याप्रमाणे (इह) या जगात (इडा) फृथ्वी (सरस्वती) वाणी आणि (भारती) धारणावती बुद्धी या (तिस्रः) तीन (धन धारण करतात वा धनार्जनाची कारणें असतात) (पृथ्वी, मधुरवाणी आणि कुशल बुद्धी याद्वारे ऐश्वर्यवृद्धी होत असते) तसेच ज्याप्रमाणे (मरूतः) विविध प्राण आदी पवन (विशः) मनुष्य आदी प्राण्याचे धारण करतात, (विराट) (छन्दः) विराट छंदातील मंत्र (त्यातील उपदेशाद्वारे) देदीप्यमान शक्ती देतात (इन्द्रियम्) धन देतात (धेनुः) वासराला दुग्धपान करविणाऱ्या (गौः) (न) गायीप्रमाणे (वयः) प्राप्तव्य वा इच्छित वस्तू (दधुः) धारण (वा प्राप्त) करतात, तद्वत या (वाणी, बुद्धी, प्राणशक्ती) आदी द्वारा सर्व मनुष्यांनी धन-ऐश्वर्य प्राप्त केले पाहिजे. ॥19॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जसे विद्वान वा विचारक कुशल लोक सुसंस्कृत वाणी, विद्या, प्राण, आणि पशुधनाद्वारे ऐश्वर्य प्राप्त करतात, तसे इतर सर्वांनाही प्राप्त केले पाहिजे ॥19॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O people, just as the Earth, speech and intellect, all three, air-folk, subjects, illuminating strength of various kinds, like the milch-cow, in this world, give wealth and attainable objects, so should ye all acquire these.
Meaning
In the world here, three, earth, Speech and Intelligence, the winds, the humans and other living forms, and virat verses, like the milch cow and the bullock, sustain the life and the health and wealth of life for us.
Translation
May the three, Ida (i. e. the divine intellect), Sarasvati (i. e. the divine speech), and Bharati (i. e. the divine culture), and Maruts (the cloud-bearing winds) and Visah (the people), Virat metre and the milch-cow bestow long life and vigour (on the aspirant). (1)
Notes
Dhenuḥ, a milch cow.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্বিদ্বদ্বিষয়মাহ ॥
পুনঃ বিদ্বান্দিগের বিষয়ে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- যেমন (ইহ) এই জগতে (ইডা) পৃথিবী (সরস্বতী) বাণী এবং (ভারতী) ধারণাবতী বুদ্ধি এই সব (তিস্রঃ) তিন (মরুতঃ) পবনগণ (বিশঃ) মনুষ্যাদি প্রজা (বিরাট্) তথা অনেক প্রকারে দেদীপ্যমান (ছন্দঃ) বল (ইন্দ্রিয়ম্) ধনকে এবং (ধেনুঃ) পানকারিণী (গৌঃ) গাভীর (ন) সমান (বয়ঃ) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য বস্তুকে (দধুঃ) ধারণ করিবে, সেইরূপ সব মনুষ্যগণ ইহাকে ধারণ করিয়া আচরণ করিবে ॥ ১ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমা ও বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন বিদ্বান্গণ সুশিক্ষিত বাণী, বিদ্যা, প্রাণ ও পশুদিগের হইতে ঐশ্বর্য্য প্রাপ্ত হন্ সেইরূপ অন্য সকলকে প্রাপ্ত হওয়া উচিত ॥ ১ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
তি॒স্রऽইডা॒ সর॑স্বতী॒ ভার॑তী ম॒রুতো॒ বিশঃ॑ ।
বি॒রাট্ ছন্দ॑ऽই॒হেন্দ্রি॒য়ং ধে॒নুর্গৌর্ন বয়ো॑ দধুঃ ॥ ১ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
তিস্র ইত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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