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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 23
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    व॒स॒न्तेन॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वा वस॑वस्त्रि॒वृता॑ स्तु॒ताः।र॒थ॒न्त॒रेण॒ तेज॑सा ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒स॒न्तेन॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। वस॑वः। त्रि॒वृतेति॑ त्रि॒ऽवृता॑। स्तु॒ताः। र॒थ॒न्त॒रेणेति॑ रथम्ऽत॒रेण॑। तेज॑सा। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसन्तेनऽऋतुना देवा वस्ववस्त्रिवृता स्तुताः । रथन्तरेण तेजसा हविरिन्द्रे वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वसन्तेन। ऋतुना। देवाः। वसवः। त्रिवृतेति त्रिऽवृता। स्तुताः। रथन्तरेणेति रथम्ऽतरेण। तेजसा। हविः। इन्द्रे। वयः। दधुः॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! ये वसवो देवा स्तुतास्त्रिवृता वसन्तेनर्तुना सह वर्त्तमाना रथन्तरेण तेजसेन्द्रे हविर्वयो दधुस्तान् स्वरूपतो विज्ञाय संगच्छध्वम्॥२३॥

    पदार्थः

    (वसन्तेन) वसन्ति सुखेन यस्मिंस्तेन (ऋतुना) प्राप्तव्येन (देवाः) दिव्याः (वसवः) पृथिव्यादयोऽष्टौ प्राथमकल्पिका विद्वांसो वा (त्रिवृता) यस्त्रिषु कालेषु वर्त्तते तेन (स्तुताः) प्राप्तस्तुतयः (रथन्तरेण) यत्र रथेन तरति तत् तेन (तेजसा) तीक्ष्णस्वरूपेण (हविः) दातव्यं वस्तु (इन्द्रे) सूर्य्यप्रकाशे (वयः) आयुर्वर्धकम् (दधुः)॥२३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या वासहेतून् दिव्यान् पृथिव्यादीन् विदुषो वा वसन्ते संगच्छेरँस्ते वासन्तिकं सुखं प्राप्नुयुः॥२३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (वसवः) पृथिवी आदि आठ वसु वा प्रथम कक्षा वाले विद्वान् लोग (देवाः) दिव्य गुणों से युक्त (स्तुताः) स्तुति को प्राप्त हुए (त्रिवृता) तीनों कालों में विद्यमान (वसन्तेन) जिस में सुख से रहते हैं, उस प्राप्त होने योग्य वसन्त (ऋतुना) ऋतु के साथ वर्त्तमान हुए (रथन्तरेण) जहां रथ से तरते हैं, उस (तेजसा) तीक्ष्ण स्वरूप से (इन्द्रे) सूर्य के प्रकाश में (हविः) देने योग्य (वयः) आयु बढ़ाने हारे वस्तु को (दधुः) धारण करें, उनको स्वरूप से जानकर संगति करो॥२३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य लोग रहने के हेतु दिव्य पृथिवी आदि लोकों वा विद्वानों की वसन्त में सङ्गति करें, वे वसन्तसम्बन्धी सुख को प्राप्त होवें॥२३।

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    विषय

    संवत्सर के ६ ऋतु भेद से यज्ञ प्रजापति और प्रजापालक राजा के ६ स्वरूपों का वर्णन ।

    भावार्थ

    (वसवः देवाः) वसु नामक देव, विद्वान् पुरुष, (वसन्तेन ऋतुना त्रिवृता) बसन्त, त्रिवृत् स्तोम और (रथन्तरेण) रथन्तर साम और तेज, पराक्रम से (इन्द्रे) इन्द्र, राजा और राष्ट्र में (हविः बयः दधुः) अन्न बल और दीर्घजीवन को धारण करें करावें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लिंगोक्ता देवताः । भुरिगनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    वसवः [वयो दधुः]

    पदार्थ

    १. (इन्द्रे) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता जितेन्द्रिय पुरुष में (हविः) = दानपूर्वक अदन की वृत्ति को तथा (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को (दधुः) = धारण करते हैं। कौन? २. (वसवः देवा:) = वसुदेव। चौबीस वर्षपर्यन्त आचार्य के समीप निवास करके उस उत्तम ज्ञान को प्राप्त करनेवाले जो ज्ञान उनके निवास को उत्तम बनानेवाला है। ये वसुदेव ३. (वसन्तेन ऋतुना स्तुताः) = वसन्त ऋतु से स्तुत होते हैं, जैसे वसन्त ऋतु में चारों ओर फूल खिले होते हैं और सौन्दर्य-हीसौन्दर्य दृष्टिगोचर होता है, इसी प्रकार इनके जीवन में ज्ञान-विज्ञानों के पुष्प विकसित होकर इनके जीवन को सुन्दर बनाते हैं । ४. ये वसुदेव (त्रिवृता स्तुताः) = त्रिवृत से स्तुत होते हैं। [त्रिषु वर्तत्ते] 'धर्म, अर्थ, काम' तीनों में समानरूप से वर्तने के कारण इनकी स्तुति होती है। ये धनप्रधान जीवनवाले होते हुए भी धर्मपूर्वक धन कमाते हैं और संसार के उचित आनन्दों को उस धन से प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। इस धर्मार्थकाम तीनों में वर्तन के कारण ही ये ५. (रथन्तरेण तेजसा) = [युक्ताः] उस तेज से युक्त होते हैं जिस तेज के कारण ये शरीररूप रथ से इस 'अश्मन्वती नदी' [भवसागर] को तैर जाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'वसु' देव वे हैं जिनके जीवन में वसन्तऋतु के समान ज्ञान-विज्ञान के पुष्प खिले होते हैं, जो धर्मार्थकाम का समसेवन करते हैं, जो शरीररूप रथ से इस अश्मन्वती नदी को तैर जानेवाले तेज से युक्त होते हैं। ये 'वसु' देव इन्द्र में हवि व वयः का धारण करें, अर्थात् जितेन्द्रिय पुरुष को त्यागपूर्वक खानेवाला व उत्कृष्ट जीवनवाला बनाएँ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे दिव्य पृथ्वी इत्यादी लोकांवर राहून वसंत ऋतूमध्ये विद्वानांची संगती धरतात. त्यांना वसंत ऋतूतील सर्व सुख प्राप्त होते.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (वसवः) पृथ्वी आदी आठ वसु अथवा प्रथम कोटीचे विद्वानजन (देवाः) दिव्य गुणांनी युक्त असून (स्तुताः) स्तुती केल्यानंतर (लाभ देणारे आहेत) (त्या विद्वानांची संगती) तुम्ही (त्रिवृता) भूत, भविष्यत्‌), वर्तमान या तीन्ही काळात (वसन्तेन) सुख पूर्वक निवास करण्यास योग्य अशा वसंत (ऋतुना) ऋतूसह (आनंदपूर्वक रहा) तसेच (ते विद्वान) (तेजसा) तेजाने तळपणाऱ्या (इन्द्रे) सूर्यप्रकाशामधे (हविः) प्रदान करण्यास (वा होमामधे टाकण्यास योग्य (वयः) आयुवर्धक वस्तू (दधुः) धारण करतात, त्या वस्तूंची माहिती घेऊन तुम्ही त्या विद्वानांचा संग धरा ॥23॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जी माणसें निवासाकरिता दिव्यगुणवती पृथ्वी आदी लोकांचा उपयोग करतात अथवा वसंत ऋतूत विद्वानांची संगती करतात, ते वसंतऋतूच्या सर्व सुखाचा उपभोग घेऊ शकतात ॥23॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people, eight vasus, full of divine qualities, extolled by humanity, present in past, present and future, where people move in conveyances, afford pleasure in the spring. The learned acquire with dignity, in light of the sun, longevity, through offering oblations.

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    Meaning

    The brilliant and generous Vasus, celebrated and worshipped with the Rathantara Sama, along with the spring season and with their own splendour, create the energies for the growth of life in the soul.

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    Translation

    In the Spring season, may the divine Vasus praised with the Trivrt Stomas and the Rathantara Samans, bestow lustre, supplies and long life on the aspirant. (1)

    Notes

    Vasantena rtuna, literally with the spring season; in the spring season. In these six mantras there are six seasons, six deities to be praised, six stomas and prsthas (sāmans) with which to praise, and six virtues with which those deities bestow lustre, supplies and long life on the aspirant. Season Deity Stoma Vasanta Vasus Trivṛt Grīsma Rudras Pañcadaśa Varṣā Adityas Saptadaśa Śarad Rbhus Ekaviinsa Hemanta Maruts Trinava (Twenty-seven) Sisira Amṛtāḥ Trayastrimsa Saman or Prstha Rathantara Tejas Brhat Yasas Vairūpa Vairāja Śākvara Virtue Visaujas Śrīh Balam Raivata Satyam Haviḥ, offerings. Also, supplies. Vayaḥ, long life.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যাহারা (বসবঃ) পৃথিবী আদি অষ্ট বসু অথবা প্রথম শ্রেণিভুক্ত বিদ্বান্গণ (দেবাঃ) দিব্য গুণযুক্ত (স্তুতাঃ) স্তুতিপ্রাপ্ত (ত্রিবৃতা) তিন কালে বিদ্যমান (বসন্তেন) যন্মধ্যে সুখে নিবাস করে, সেই প্রাপ্তি হওয়ার যোগ্য বসন্ত (ঋতুনা) ঋতুসহ বর্ত্তমান (রথন্তরেন) যেখানে রথ দ্বারা উত্তীর্ণ হয় সেই (তেজসা) তীক্ষ্ম স্বরূপ দ্বারা (ইন্দ্রে) সূর্য্যের প্রকাশে (হবিঃ) দেওয়ার যোগ্য (বয়ঃ) আয়ু বৃদ্ধিকারী বস্তুকে (দধুঃ) ধারণ করিবে, তাহাদেরকে স্বরূপ দ্বারা জানিয়া সঙ্গতি কর ॥ ২৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্যগণ নিবাস করিবার হেতু দিব্য পৃথিবী আদি লোক বা বিদ্বান্দিগের বসন্তে সঙ্গতি করিবে, তাহারা বসন্ত সম্পর্কীয় সুখ প্রাপ্ত করিবে ॥ ২৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ব॒স॒ন্তেন॑ऽঋ॒তুনা॑ দে॒বা বস॑বস্ত্রি॒বৃতা॑ স্তু॒তাঃ ।
    র॒থ॒ন্ত॒রেণ॒ তেজ॑সা হ॒বিরিন্দ্রে॒ বয়ো॑ দধুঃ ॥ ২৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বসন্তেনেত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । রুদ্রা দেবতাঃ । ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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