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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 42
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - होत्रादयो देवताः छन्दः - आर्च्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    होता॑ यक्षद॒श्विनौ॒ सर॑स्वती॒मिन्द्र॑ꣳ सु॒त्रामा॑णमि॒मे सोमाः॑ सु॒रामा॑ण॒श्छागै॒र्न मे॒षैर्ऋ॑ष॒भैः सु॒ताः शष्पै॒र्न तोक्म॑भिर्ला॒जैर्मह॑स्वन्तो॒ मदा॒ मास॑रेण॒ परि॑ष्कृताः शु॒क्राः पय॑स्वन्तो॒ऽमृताः॒ प्र॑स्थिता वो मधु॒श्चुत॒स्तान॒श्विना॒ सर॑स्व॒तीन्द्रः॑ सु॒त्रामा॑ वृत्र॒हा जु॒षन्ता॑ सो॒म्यं मधु॒ पिब॑न्तु॒ मद॑न्तु॒ व्यन्तु॒ होत॒र्यज॑॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    होता॑। य॒क्ष॒त्। अ॒श्विनौ॑। सर॑स्वतीम्। इन्द्र॑म्। सु॒त्रामा॑णमिति॑ सु॒ऽत्रामा॑णम्। इ॒मे। सोमाः॑। सु॒रामा॑णः। छागैः॑। न। मे॒षैः। ऋ॒ष॒भैः। सु॒ताः। शष्पैः॑। न। तोक्म॑भिरिति॒ तोक्म॑ऽभिः। ला॒जैः। मह॑स्वन्तः। मदाः॑। मास॑रेण। परि॑ष्कृताः। शु॒क्राः। पय॑स्वन्तः। अ॒मृताः॑। प्र॑स्थिता॒ इति॒ प्रऽस्थि॑ताः। वः॒। म॒धु॒श्चुत॒ इति॑ मधु॒ऽश्चुतः॑। तान्। अ॒श्विना॑। सर॑स्वती। इन्द्रः॑। सु॒त्रामा॑। वृ॒त्र॒हा। जु॒षन्ता॑म्। सो॒म्यम्। मधु॑। पिब॑न्तु। मद॑न्तु। व्यन्तु॑। होतः॑। यज॑ ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    होता यक्षदश्विनौ सरस्वतीमिन्द्रँ सुत्रामाणमिमे सोमाः सुरामाणश्छागैर्न मेषैरृषभैः सुताः शष्पैर्ब तोक्मभिर्लाजैर्महस्वन्तो मदा मासरेण परिष्कृताः शुक्राः पयस्वन्तोमृताः प्रस्थिता वो मधुश्चुतस्तानश्विना सरस्वतीन्द्रः सुत्रामा वृत्रहा जुषन्ताँ सोम्यम्मधु पिबन्तु व्यन्तु होतर्यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    होता। यक्षत्। अश्विनौ। सरस्वतीम्। इन्द्रम्। सुत्रामाणमिति सुऽत्रामाणम्। इमे। सोमाः। सुरामाणः। छागैः। न। मेषैः। ऋषभैः। सुताः। शष्पैः। न। तोक्मभिरिति तोक्मऽभिः। लाजैः। महस्वन्तः। मदाः। मासरेण। परिष्कृताः। शुक्राः। पयस्वन्तः। अमृताः। प्रस्थिता इति प्रऽस्थिताः। वः। मधुश्चुत इति मधुऽश्चुतः। तान्। अश्विना। सरस्वती। इन्द्रः। सुत्रामा। वृत्रहा। जुषन्ताम्। सोम्यम्। मधु। पिबन्तु। मदन्तु। व्यन्तु। होतः। यज॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 42
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे होतर्यथा होताऽश्विनौ सरस्वतीं सुत्रामाणमिन्द्रं यक्षद्य इमे सुरामाणः सोमाः सुताश्छागैर्न मेषैर्ऋषभैः शष्पैर्न तोक्मभिर्लाजैर्महस्वन्तो मदा मासरेण परिष्कृताः शुक्राः पयस्वन्तोऽमृता मधुश्चुतः प्रस्थिता वो निर्मितास्तान् यक्षद्यथाऽश्विना सरस्वती सुत्रामा वृत्रहेन्द्रश्च सोम्यं मधु जुषन्तां पिबन्तु मदन्तु सकला विद्या व्यन्तु तथा यज॥४२॥

    पदार्थः

    (होता) दाता (यक्षत्) यजेत् (अश्विनौ) अध्यापकोपदेष्टारौ (सरस्वतीम्) विज्ञानवतीं वाचम् (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्ययुक्तराजानम् (सुत्रामाणम्) प्रजायाः सुष्ठु रक्षकम् (इमे) (सोमाः) ऐश्वर्य्यवन्तः सभासदः (सुरामाणः) सुष्ठु दातारः (छागैः) (न) इव (मेषैः) (ऋषभैः) (सुताः) अभिषेकक्रियाजाताः (शष्पैः) हिंसकैः। अत्रौणादिको बाहुलकात् कर्त्तरि यत्। (न) इव (तोक्मभिः) अपत्यैः (लाजैः) भर्जितैः (महस्वन्तः) महांसि पूजनानि सत्करणानि विद्यन्ते येषान्ते (मदाः) आनन्दाः (मासरेण) ओदनेन (परिष्कृताः) परितः शोभिताः। संपर्य्युपेभ्यः करोतौ भूषण इति सुट्। (शुक्राः) शुद्धाः (पयस्वन्तः) प्रशस्तजलदुग्धादियुक्ताः (अमृताः) अमृतात्मैकरसाः (प्रस्थिताः) कृतप्रस्थानाः (वः) युष्मभ्यम् (मधुश्चुतः) मधुरादिगुणा विश्लिष्यन्ते येभ्यः (तान्) (अश्विना) सुसत्कृतौ पुरुषौ (सरस्वती) प्रशस्तविद्यायुक्ता स्त्री (इन्द्रः) (सुत्रामा) सुष्ठु रक्षकः (वृत्रहा) मेघस्य हन्ता सूर्य्य इव (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् (सोम्यम्) सोमार्हम् (मधु) मधुररसम् (पिबन्तु) (मदन्तु) आनन्दन्तु (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु (होतः) (यज)॥४२॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सृष्टिपदार्थविद्यां सत्यां वाचं सुरक्षकं राजानं च प्राप्त पशूनां पयआदिभिः पुष्यन्ति ते सुरसान् सुसंस्कृताादीन् सुपरीक्षितान् भोगान् युक्त्या भुक्त्वा रसान् पीत्वा धर्मार्थकाममोक्षार्थे प्रयतन्ते ते सदा सुखिनो भवन्ति॥४२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (होतः) लेने हारा जैसे (होता) देने वाला (अश्विनौ) पढ़ाने और उपदेश करने वाले पुरुषो! (सरस्वतीम्) तथा विज्ञान की भरी हुई वाणी और (सुत्रामाणम्) प्रजाजनों की अच्छी रक्षा करने हारे (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्ययुक्त राजा को (यक्षत्) प्राप्त हो वा (इमे) ये जो (सुरामाणः) अच्छे देने हारे (सोमाः) ऐश्वर्यवान् सभासद् (सुताः) जो कि अभिषेक पाये हुए हों वे (छागैः) विनाश करने योग्य पदार्थों वा बकरा आदि पशुओं (न) वैसे तथा (मेषैः) देखने योग्य पदार्थ वा मेंढ़ों (ऋषभैः) श्रेष्ठ पदार्थों वा बैलों और (शष्पैः) हिंसको से जैसे (न) वैसे (तोक्मभिः) सन्तानों और (लाजैः) भुंजे अन्नों से (महस्वन्तः) जिन के सत्कार विद्यमान हों वे मनुष्य और (मदाः) आनन्द (मासरेण) पके हुए चावलों के साथ (परिष्कृताः) शोभायमान (शुक्राः) शुद्ध (पयस्वन्तः) प्रशंसित जल और दूध से युक्त (अमृताः) जिन में अमृत एक रस (मधुश्चुतः) जिन से मधुरादि गुण टपकते वा (प्रस्थिताः) एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हुए (वः) तुम्हारे लिए पदार्थ बनाए हैं (तान्) उनको प्राप्त होवे वा जैसे (अश्विना) सुन्दर सत्कार पाये हुए पुरुष (सरस्वती) प्रशंसित विद्यायुक्त स्त्री (सुत्रामा) अच्छी रक्षा करने वाले (वृत्रहा) मेघ को छिन्न भिन्न करने वाले सूर्य के समान (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् सज्जन (सोम्यम्) शीतलता गुण के योग्य (मधु) मीठेपन का (जुषन्ताम्) सेवन करें (पिबन्तु) पीवें (मदन्तु) हरखें और समस्त विद्याओं को (व्यन्तु) व्याप्त हो वैसे तू (यज) सब पदार्थों की यथायोग्य संगति किया कर॥४२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो संसार के पदार्थों की विद्या सत्य वाणी और भलीभांति रक्षा करने हारे राजा को पाकर पशुओं के दूध आदि पदार्थों से पुष्ट होते हैं, वे अच्छे रसयुक्त, अच्छे संस्कार किये हुए अन्न आदि पदार्थ जो सुपरीक्षित हों, उन को युक्ति के साथ खा और रसों को पी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के निमित्त अच्छा यत्न करते हैं, वे सदैव सुखी होते हैं॥४२॥

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    विषय

    अधिकारदान, उनके सहायकों के कर्तव्य । महीधर आदि के किये बकरे की बलिपरक अर्थ का सप्रमाण खण्डन । सरस्वती नाम विद्वत्सभा को अधिकार, उसके सहायकों का कर्तव्य । छाग, मेष, ऋषभ और उनके हवि, मद, तथा उनके पार्श्व, कटि, प्रजनन आदि अंगों के अवदान करने का रहस्य ।

    भावार्थ

    (होता) योग्य पुरुषों को योग्य अधिकारों का प्रदाता विद्वान् पुरुष ( अश्विनौ सरस्वतीम् ) विद्या और राज्य कार्यों में अच्छी प्रकार कुशल दो पुरुषों और सरस्वती नामक विद्वत्सभा को और ( इन्द्रं सुत्रा- माणम् ) उत्तम रीति से राज्य के पालन करने हारे इन्द्र, राजा को ( यक्षत् ) योग्य अधिकार (इमे सोमाः ) ये परम ऐश्वर्यं सम्पन्न विद्वान्, राज पदाधिकारी जन ( सुरामाणः) उत्तम राज्यलक्ष्मी पाकर ( छागै: ) शत्रुनाशक, (मेषैः) विद्या और बल में प्रतिस्पर्द्धा वाले (ऋषभैः) और प्रजा में प्रतिष्ठित, उत्तम पुरुषों द्वारा (सुताः) अभिषिक्त होकर, (शब्पैः) शत्रुभ को हिंसाकारी शस्त्रों, (तोक्मभिः) शत्रु के व्यथादायी महात्रों और (लाजैः) विशेष दीप्तिजनक ऐश्वर्यों से ( महस्वन्तः ) बड़े भाग्यशाली, आदर और अधिकार को प्राप्त, (मदा) तृप्तिकर उनके चित्तों को संतोष जनक ( मासरेण) प्रतिमास, दिये जाने वाले वेतन, पुस्कार या अन्न आदि भोग्य सामग्री से (परिष्कृताः) संस्कृत, (शुक्राः) शुद्ध आचारवान्, ( पयस्वतः) पुष्टिकारक, अन्न, दुग्ध एवं पशु आदि समृद्धि से सम्पन्न अथवा वीर्यवान्, (अमृताः) अमर, आत्मज्ञानी, दीर्घायु, (प्रस्थिताः) उत्तम पद पर स्थित हैं । हे ऐश्वर्यवन्, विद्वान्, सौम्य पुरुषो ! ( तान् ) उनः (मधुश्चुतः) ज्ञान को प्रदान करने वाले ( वः ) आप लोगों को ( अश्विनौ ) दोनों प्रधान पुरुष,(सरस्वती) विद्वत्-सभा और ( सुत्रामा वृत्रहा ) उत्तम पालक, शत्रुनाशक ( इन्द्रः ) इन्द्र राजा, ये सब ( जुषन्ताम् ) प्रेम और आदर से प्राप्त करें और (सोम्यं मधु) सोम्य = राष्ट्र के हितकारी ऐश्वर्य या ज्ञान का (पिबन्तु) पान करें और (मदन्तु ) तृप्त और सन्तुष्ट हों और (व्यन्तु ) उसको ग्रहण करें । हे (होतः) विद्वन् होतः ! तू उनको (यज) अधिकार प्रदान कर ।

    टिप्पणी

    १ होता॑ २ सु॒रामा॑ण॒श्छायै॒र्न ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ त्रिपाद् गायत्री । षड्जः । २ विराट् प्रकृतिः । धैवतः ॥

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    विषय

    शष्प- तोक्म-लाजा

    पदार्थ

    १. (होता) = यज्ञशील पुरुष (अश्विनौ) = प्राणापान को सरस्वती ज्ञानाधिदेवता को (सुत्रामाणम्) = अपना उत्तम रक्षण करनेवाली (इन्द्रम्) = आत्मशक्ति को (यक्षत्) = अपने साथ सङ्गत करता है । २. इस उद्देश्य से ही (इमे) ये (सोमाः) = सोमलता के रस (छागैः) = अजमोद ओषधि के रस के साथ (सुता:) = अभिषुत हुए हुए प्राणशक्ति का वर्धन करते हैं, (मेषै:) = मेढ़ासिंगी ओषधि के रस के साथ अभिषुत हुए हुए इन्द्रशक्ति का विकास करते हैं और इस प्रकार ये सुरामाणाः सुरमणीय हैं, जीवन में रमणीयता लानेवाले हैं। ३. ये रस क्रमशः (शष्पैः) = बालतृणों के साथ, छोटे-छोटे पालक आदि ओषधियों के पत्तों के साथ (न) = और (तोक्मभिः) = यवाङ्कुर के साथ, जौ के नवाङकुरों के साथ तथा (लाजै:) = अक्षतों के साथ [चावल के बने हुए] सेवन किये हुए (महस्वन्तः) = तेजस्वितावाले होते हैं, अर्थात् उन रसों के सेवन के साथ पथ्यरूप में 'शष्प- तोक्म व लाजा' का प्रयोग बड़ा गुणकारी हो जाता है। इन पथ्यों के साथ ये रस (मदा:) = [मदी हर्षे] हर्ष के जनक हो जाते हैं। ४. (मासरेण) = [मासेषु रमन्ते] और सदा सब मासों में प्रसन्न करने की मनोवृत्ति से (परिष्कृताः) = अलंकृत हुए हुए ये रस (शुक्राः) = वीर्य को उत्पन्न करनेवाले, (पयस्वन्तः) = सब अङ्गों का आप्यायन करनेवाले तथा (अमृता:) = नीरोगता को देनेवाले होते हैं। ५. ये रस (प्रस्थिता:) = [होमाभिमुखं चलिता :- म० ] अग्निकुण्ड में डालने पर, सारे वायुमण्डल में फैलते हुए जब सूर्य तक जाने लगते हैं तब (वः) = तुम सब होताओं के लिए ये (मधुश्चुतः) = मधु का स्रवण करनेवाले होते हैं। जीवन में अत्यन्त माधुर्य पैदा करते हैं । ६. (तान्) = उन रसों को (अश्विना) = प्राणापान सरस्वती ज्ञानाधिदेवता (इन्द्रः) = वह आत्मशक्ति जो (सुत्रामा) = शरीर को रोगों से सम्यक् बचाती है तथा (वृत्रहा) = हृदय की वासनाओं का विनाश करती है, ये सब (जुषन्ताम्) = सेवन करें। ७. इन (सोम्यं मधु) = सोमकणों से उत्पन्न सारभूत [मधु] सोमशक्ति का, वीर्य का (पिबन्तु) = पान करें, अपने अन्दर ही व्याप्त करने का प्रयत्न करें, (मदन्तु) = आनन्द का अनुभव करें, (व्यन्तु) = [राजन्ताम्-म० ] अपने जीवन को कान्त व दीप्त बनाएँ। ८. प्रभु कहते हैं कि (होत:) = हे यज्ञशील पुरुष ! तू उल्लिखित रसों का प्रयोग अवश्य कर, परन्तु यज-यज्ञ करनेवाला बन। उन ओषधियों को हविरूप में अग्निकुण्ड में भी डाल ।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'छाग, मेष व ऋषभक' ओषधियों के पथ्य 'शष्प, तोक्म व लाजा' हैं। इनका यज्ञ करने पर ये अत्यन्त गुणकारी हो जाती हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक या जगातील पदार्थविद्या प्राप्त करून सत्यवचनाने रक्षणकर्त्या राजाचा आश्रय घेऊन पशूंचे दूध प्राशन करून पुष्ट होतात व संस्कारित केलेल अन्नपदार्थ खातात, तसेच रस प्राशन करून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यांसाठी प्रयत्न करतात, ते सदैव सुखी होतात.

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    विषय

    पुन्हा पुढील मंत्रात त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (होतः) घेणाऱ्या आणि हे (होता) देणाऱ्या तसेच हे (अश्विनौ) अध्यापन आणि उपदेश करणाऱ्या विद्वानांनो, (तुम्ही सर्वांची) (सरस्वतीम्‌) विज्ञानाने परिपूर्ण वाणी सुत्रामाणम्‌) प्रजाजनांचे सुरक्षा करणाऱ्या (इन्द्रम्‌) ऐश्वर्यशाली राजाला (वा राजापर्यंत) (यक्षत्‌) प्राप्त व्हावी (राजाने तुम्हा सर्वांचे म्हणणे ऐकावे) तसेच (इमे) हे ने (सुरामाणः) भरपूर दान देणारे (सोमाः) ऐश्वर्यशाली सभासद (राजसभेतील सदस्य) आहेत, ते (सुताः) अभिषिक्त (पदावर नेमलेले) आहेत, ते (छोगैः) विनष्ट होणाऱ्या पदार्था (न) प्रमाणे वा बकरा आदी मर्त्य प्राण्यांप्रमाणे तसेच (मेषैः) दृश्य पदार्थाप्रमाणे अथवा एडक्याप्रमाणे (ऋषभैः) वस्तूप्रमाणे अथवा बैलाप्रमाणे आणि (शष्पैः) हिंसक प्राण्या (न) प्रमाणे (बकरा, एडका व बैलाप्रमाणे) नाहीत (ते हितकारी व उदार आहेत) तसेच जे लोक (तोक्मभिः) संतानांमुळे आणि (लाजैः) भाजलेल्या भोज्य पदार्थांमुळे (ते संतानवान असून पुष्कळ खाद्य पदार्थ बाळगून आहेत) त्यामुळे ते समाजात (महस्वतः) सम्मानास प्राप्त असून (मदाः) आनंदी आहेत. (मासरेण) शुभ्र शिजलेल्या तांदळाप्रमाणे (परिष्कृताः) शोभायमान आणि (शुक्राः) शुद्ध आहेत (पयस्वन्तः) उत्तम जल आणि दुध व (अमृताः) एकरस (मधुश्चुतः) ज्यात मधुर आदी गुण विद्यमान आहेत असे (प्रस्थिताः) एका ठिकाणाहून दुसऱ्या ठिकाणी नेले जाणे शक्य असलेले पदार्थ निर्मित केले आहेत, ते (वः) पदार्थ ज्यांनी तुमच्यासाठी निर्माण केले आहेत (तान्‌) त्यानाही प्राप्त व्हावेत (त्या पदार्थांचा उपभोग निर्माता आणि इतरांनीही घ्यावा) तसेच ज्याप्रमाणे (अश्विना) सुरूप सत्कारित मनुष्य, (सरस्वती) विद्यावती स्त्री आणि (सुत्रामा) चांगल्याप्रकारे रक्षण करणारा (वृत्राहा) मेघमंडळाला छिन्न भिन्न करणाऱ्या सूर्याप्रमाणे (इन्द्रः) ऐश्वर्यशाली असलेला सज्जन (सोम्यम्‌) शीतलता आणि (मधु) माधुर्याचे (जुषन्ताम्‌) सेवन करतात (ते रस) (वा आनन्द) (पिबन्तु) पितात आणि (मदन्तु) आनंदित होतात आणि सर्व विद्या (व्यन्तु) प्राप्त करतात, तद्वत हे दाता आणि होता, तुम्हीही (यज) त्या उपर्युक्त पदार्थांचा (संग्रह वा मिश्रण करून) उपभोग घ्या. ॥42॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे लोक समस्त भौतिक पदार्थांची विद्या (भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र आदी) विषयी पूर्ण ज्ञान प्राप्त करणाऱ्या, सत्यभाषी आणि पदार्थांचे यथोचितपणे रक्षण करणाऱ्या राजाचे प्रजाजन असतात, पशूंचे दूध आदी पदार्थांचे सेवन करून पुष्ट होतात, (ते अवश्य सुखी होतात) तसेच ते उत्तम रक्षादीद्वारे सुसंस्कृत, सुपरीक्षित भोजन करतात उत्तम पुष्टिकर रसांचे सेवन करतात आणि धर्म, अर्थ, काम आणि मोक्ष प्राप्त करण्यासाठी यत्नशील असतात, ते सदैव सुखी व आनंदी राहतात ॥42॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Just as a learned person duly respects the teacher and the preacher, the scholarly speech, and the king, the guardian of his subjects ; us t as these learned, duly elected, charitably disposed members of the Assembly, save us from explosive substances and beasts of prey, and grant us beautiful and fascinating articles ; just as honourable persons respected by their progeny with parched grains, pure and gracious, joyfully eat the cooked rice with milk, and nice water ; just as aged spiritual people, full of sweet qualities, who travel from one place to the other, accept the offerings made by the people : and just as honoured persons, a learned lady and a famous person, affording protection like the Sun, the slayer of clouds, accept sweet Soma juice, drink it, derive pleasure, and master all branches of knowledge, so shouldst thou, O sacrificer make full use of all objects.

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    Meaning

    Let the hota, man of yajna, enlightened citizen, perform the yajna of development in honour of the Ashvinis, teachers, preachers and intellectuals, for Sarasvati, voice and motherhood of the nation, in the service of Indra, protective and ruling powers of the land. And here are these soma juices, leaders of rare quality, distilled, that is, selected, elected, prepared and perfected from amongst the people. Joyous they are as if with the wealth of goats, sheep, bulls and cows. Honoured and consecrated they are with shoots of grasses, ears of corn and roasted rice as with children. Inspired they are, seasoned and purified with holy food and nectar-drinks of life. And up-front they are, on their mark, ready for self-sacrifice in the service of humanity. Exhort them, all of you, support them with love and loyalty, and may you and the Ashvinis, Sarasvati and the protector Indra make the best of their service and sacrifice. Replete they are with honey-mead, overflowing, streaming for anyone to taste. May all drink of the soothing and enlightening sweets, may all rejoice and prosper with the wealth of life. Relent not, man of yajna, carry on with the offers of libations.

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    Translation

    Let the priest offer oblations to the twin healers, the divine Doctress and the resplendent one, the good protector. Here are your much pleasing cure-juices, along with goats, rams and bullocks, pressed with rich shoots, germinated corn and parched rice, joy-giving, adorned with cooked rice, refined, sparkling, mixed with milk, nectarlike, presented dripping honey. May the twin healers, the divine Doctress and the resplendent one, the good protector and the slayer of nescience, accept them and drink sweet cure-juice. May they be merry and enjoy. О priest, offer oblations. (1)

    Notes

    Somäḥ, सोमरसा:, Soma-juices; cure-juices. Surāmānah, सुरमणीयाः सुरावन्तो वा, enjoyable or mixed with liquor. Also, सुष्ठु दातार:, good donors. Sutāḥ, pressed out. Also, brewed; or strengthened. Śaspaiḥ, takmabhiḥ, lajaih, with grass-shoots, germinated grains and parched grains. Mahasvantaḥ, enriched with, Mada, मदकारिणा, gladdening. Pariṣkṛtāḥ, śukrāḥ, payasvantaḥ, amṛtāḥ, refined, spar kling, mixed with milk and nectar-like. Prasthitaḥ, presented; offered. Madhuścutaḥ, मधुस्राविण:, dripping honey.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (হোতঃ) গ্রহণকারী ! যেমন (হোতা) দাতা (অশ্বিনৌ) অধ্যাপনকারী ও উপদেশকারী পুরুষগণ ! (সরস্বতীম্) তথা বিজ্ঞানবতী বাণী এবং (সুত্রামাণম্) প্রজাদিগের উত্তম রক্ষক (ইন্দ্রম্) পরম ঐশ্বর্য্যযুক্ত রাজাকে (য়ক্ষৎ) প্রাপ্ত হউক অথবা (ইমে) এই যে (সুরামাণঃ) সুদাতা (সোমাঃ) ঐশ্বর্য্যবান্ সভাসদ্ (সুতাঃ) অভিষেক প্রাপ্ত, তাহারা (ছাগৈঃ) বিনাশ করিবার যোগ্য পদার্থ অথবা ছাগাদি পশুসমূহ (ন) সেইরূপ তথা (মেষৈঃ) দেখিবার যোগ্য পদার্থ বা মেষগুলি (ঋষভৈঃ) শ্রেষ্ঠ পদার্থ বা বৃষ ও (শষ্পৈঃ) হিংসক দিগের দ্বারা যদ্রূপ (ন) তদ্রূপ (তোক্মভিঃ) সন্তানগণ এবং (লাজৈঃ) ভর্জিত অন্ন দ্বারা (মহস্বন্তঃ) যাহাদিগের সৎকার বিদ্যমান হয়, সেই সব মনুষ্য এবং (মদাঃ) আনন্দ (মাসরেণ) পক্বান্ন সহ (পরিষ্কৃতাঃ) শোভায়মান (শুক্রাঃ) শুদ্ধ (পয়স্বন্তঃ) প্রশংসিত জল ও দুধ দ্বারা যুক্ত (অমৃতাঃ) যাহাতে অমৃত একরস (মধুশ্চুতঃ) যদ্দ্বারা মধুরাদি গুণ নিঃসরিত হয় অথবা (প্রস্থিতাঃ) একস্থান হইতে অন্য স্থানে গমনরত (বঃ) তোমাদিগের জন্য পদার্থ নির্মাণ করিয়াছে (তান্) সেই সব প্রাপ্ত হইবে অথবা যেমন (অশ্বিনা) সুন্দর সৎকার প্রাপ্ত পুরুষ (সরস্বতী) প্রশংসিত বিদ্যাযুক্তা নারী (সুত্রামা) উত্তম রক্ষক (বৃত্রহা) মেঘকে ছিন্ন-ভিন্নকারী সূর্য্যের সমান (ইন্দ্রঃ) পরম ঐশ্বর্য্যবান্ সজ্জন (সোম্যম্) শীতলতা গুণের যোগ্য (মধু) মিষ্টতার (জুষন্তাম্) সেবন করিবে (পিবন্তু) পান করিবে (মদন্তু) আনন্দ করিবে এবং সমস্ত বিদ্যা সমূহ (ব্যন্তু) ব্যাপ্ত হউক সেইরূপ তুমি (য়জ) সকল পদার্থের যথাযোগ্য সংগতি করিতে থাক ॥ ৪২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যাহারা সংসারের পদার্থ সমূহের বিদ্যা, সত্যবাণী এবং ভালমত রক্ষাকারী রাজাকে পাইয়া পশুদিগের দুগ্ধাদি পদার্থ দ্বারা পুষ্ট হয়, তাহারা উত্তম রসযুক্ত, সুসংস্কৃত অন্নাদি পদার্থ যাহা সুপরীক্ষিত উহা যুক্তি সহ আহার করে এবং রস পান করে, ধর্ম-অর্থ-কাম-মোক্ষের নিমিত্ত সুপ্রচেষ্টা করে তাহারাই সুখী হয় ॥ ৪২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    হোতা॑ য়ক্ষদ॒শ্বিনৌ॒ সর॑স্বতী॒মিন্দ্র॑ꣳ সু॒ত্রামা॑ণমি॒মে সোমাঃ॑ সু॒রামা॑ণ॒শ্ছাগৈ॒র্ন মে॒ষৈর্ঋ॑ষ॒ভৈঃ সু॒তাঃ শষ্পৈ॒র্ন তোক্ম॑ভির্লা॒জৈর্মহ॑স্বন্তো॒ মদা॒ মাস॑রেণ॒ পরি॑ষ্কৃতাঃ শু॒ক্রাঃ । পয়॑স্বন্তো॒ऽমৃতাঃ॒ প্রস্থি॑তা বো মধু॒শ্চুত॒স্তান॒শ্বিনা॒ সর॑স্ব॒তীন্দ্রঃ॑ সু॒ত্রামা॑ বৃত্র॒হা জু॒ষন্তা॑ᳬं সো॒ম্যং মধু॒ পিব॑ন্তু॒ মদ॑ন্তু॒ ব্যন্তু॒ হোত॒র্য়জ॑ ॥ ৪২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    হোতেত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । হোত্রাদয়ো দেবতাঃ । পূর্বস্য আর্চ্যুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ । সুরামাণ ইত্যুত্তরস্য বিরাডাকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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