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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 33/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - पापनाशन सूक्त
    1

    सु॑क्षेत्रि॒या सु॑गातु॒या व॑सू॒या च॑ यजामहे। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽक्षे॒त्रि॒या । सु॒ऽगा॒तु॒या । व॒सु॒ऽया । च॒ । य॒जा॒म॒हे॒ । अप॑ । न॒: । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥३३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुक्षेत्रिया सुगातुया वसूया च यजामहे। अप नः शोशुचदघम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽक्षेत्रिया । सुऽगातुया । वसुऽया । च । यजामहे । अप । न: । शोशुचत् । अघम् ॥३३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (सुक्षेत्रिया) उत्तम खेत के लिये, (सुगातुया) उत्तम भूमि के लिये (च) और (वसुया) धनके लिये (यजामहे) हम [परमेश्वर को] पूजते हैं। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की महिमा जानकर अनिष्टों को मिटाकर पुरुषार्थ से अपनी प्रभुता बढ़ावें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(सुक्षेत्रिया) इयाडियाजीकाराणामुपसंख्यानम्। वा० पा० ७।१।३९। इति ङेर्डियाजादेशः। चित्त्वादन्तोदात्तः शोभनाय क्षेत्राय (सुगातुया)। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति ङेर्याच्। गातुः−पृथिवीनाम-निघ० १।१। शोभनभूमिप्राप्तये (वसुया) पूर्वसूत्रेण ङेर्याच्। वसुने धनाय (च) समुच्चये (यजामहे) परमेश्वरं पूजयामः। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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    विषय

    सुक्षेत्र+सुगातु+वसु

    पदार्थ

    १. (सक्षेत्रिया) = इस उत्तम शरीररूप क्षेत्र को शोभन बनाने की इच्छा से (यजामहे) = हे प्रभो! हम आपका पूजन करते हैं। प्रभु-पूजन से हम प्रकृति के भोगों में नहीं फँसते और शरीर में रोग नहीं आते। एवं, यह शरीररूप क्षेत्र नीरोगता के द्वारा सुक्षेत्र बना रहता है। २. (सगातुया) = उत्तम मार्ग की कामना से हम हे प्रभो। आपका संगतिकरण करते हैं। आपके साथ चलते हुए हम भटकते नहीं। आप हमारा मार्ग-दर्शन करते हैं और इसप्रकार हम जीवन में शुभ मार्ग से ही चलते हैं (च) = और (वसूया) = वसुओं को प्राप्त करने की कामना से [यजामहे]-हम आपके प्रति अपना दान करते हैं। प्रभु के प्रति अपना अर्पण करनेवाला प्रभु से सब वसुओं को प्राप्त करता है। ३. हे प्रभो! हमारी ये कामनाएँ बनी रहें कि [क] हमें प्रभु-पूजन द्वारा भोग-प्रवणता से ऊपर उठकर शरीर के नीरोग बनाना है, [ख] प्रभु के सम्पर्क में रहकर सदा उत्तम मर्ग पर चलना है और [ग] प्रभु के प्रति अपना अर्पण करके-दानवृत्ति को अपनाकर वसुओं को प्राप्त करना है। ऐसा होने पर (अघम्) = पाप (न:) = हमसे (अप) = दूर होकर (शोशुचत्) = शोक-सन्तप्त होकर नष्ट हो जाए।

    भावार्थ

    शरीर को उत्तम बनाने की कामना, उत्तम मार्ग पर चलने की कामना व वसु प्राप्ति की कामना से 'प्रभु-पूजन, प्रभु-संगतिकरण व प्रभु के प्रति अर्पण' में प्रवृत्त होने पर हम पापों से दूर हों।

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    भाषार्थ

    (सुक्षेत्रिया) उत्तम क्षेत्र द्वारा, (सुगातुया) उत्तम मार्ग द्वारा, (च) और (वसूया) धनेच्छा द्वारा (यजामहे) तुझ अग्नि का हम यजन अर्थात् पूजन, सत्संग तथा उसके प्रति दान या आत्मसमर्पण करते हैं, ताकि (अघम्, अप) पाप को अपगत करके (नः शोशुचत्) तुझ अग्नि की शोचि हमें पवित्र करे।

    टिप्पणी

    [सुक्षेत्रिया= डियाजादेश, (पाव्या० अष्टा० ७।१।३९), (सायण)। क्षेत्र है शरीर-"इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते" (गीता १३।१)। शरीर में कर्म-बीज बोये जाते हैं, अत: शरीर क्षेत्र है। इसमें उत्तम कर्मवीर बोये जाने चाहिएँ, तो यह शरीर-क्षेत्र सुक्षेत्र होता है। यजामहे= यज देवपूजा-संगतीकरण-दानेषु (भ्वादिः)। सुक्षेत्र अर्थात् उत्तम कर्मोंवाले शरीर द्वारा परमेश्वर का भजन करना चाहिए।]

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    विषय

    पाप नाश करने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! (सुक्षेत्रिया) उत्तम क्षेत्र = देह की प्राप्ति के लिये और (सुगातुया) और उत्तम मार्ग=देवयान को प्राप्त करने की इच्छा से और (वसूया च) उत्तम वसु = आत्मा को या परम आत्मरूप आनन्द मोक्ष को प्राप्त करने की इच्छा से (यजामहे) हम आपकी उपासना करते हैं। आप (नः अधम् अप शोशुचद्) हमारे पापों को जला कर नष्ट करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। पापनाशनोऽग्निर्देवता। १-८ गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cleansing of Sin and Evil

    Meaning

    With the desire for waving green fields, straight and simple highways of life, and honest wealth of body, mind and soul and power of defence and protection, we approach and honour you.

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    Translation

    We worship you for good fields, for secure paths, and for riches. May your light dispel our sins. (Also Rg. 1.97.2)

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    Translation

    We worship God for attaining the sound body, for attaining good path of emancipation and for attaining the wealth physical and spiritual. O Lord! remove our evils far from us.

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    Translation

    O God, we worship Thee, for acquiring an excellent body, a nice course of conduct, and salvation. Destroy Thou our sins!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(सुक्षेत्रिया) इयाडियाजीकाराणामुपसंख्यानम्। वा० पा० ७।१।३९। इति ङेर्डियाजादेशः। चित्त्वादन्तोदात्तः शोभनाय क्षेत्राय (सुगातुया)। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति ङेर्याच्। गातुः−पृथिवीनाम-निघ० १।१। शोभनभूमिप्राप्तये (वसुया) पूर्वसूत्रेण ङेर्याच्। वसुने धनाय (च) समुच्चये (यजामहे) परमेश्वरं पूजयामः। अन्यत्पूर्ववत् ॥

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