अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 33/ मन्त्र 7
द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥
स्वर सहित पद पाठद्विष॑: । न॒: । वि॒श्व॒त॒:ऽमु॒ख॒ । अति॑ । ना॒वाऽइ॑व । पा॒र॒य॒ । अप॑ । न॒: । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥३३.७॥
स्वर रहित मन्त्र
द्विषो नो विश्वतोमुखाति नावेव पारय। अप नः शोशुचदघम् ॥
स्वर रहित पद पाठद्विष: । न: । विश्वत:ऽमुख । अति । नावाऽइव । पारय । अप । न: । शोशुचत् । अघम् ॥३३.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखवाले [मुख के समान, सर्वोपदेशक सर्वोत्तम] परमेश्वर ! (द्विषः) द्वेषियों को (अति=अतीत्य) लाँघ कर (नः) हमें (पारय) पार लगा, (नावा इव) जैसे नाव से [समुद्र को पार करते हैं]। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥७॥
भावार्थ
जैसे पोत द्वारा समुद्र पार करते हैं, वैसे ही मनुष्य परमेश्वर के आश्रय से सब दोषों को हटा कर सुखी रहें ॥७॥
टिप्पणी
७−(द्विषः) द्वेष्टॄन् शत्रून् (नः) अस्मान् (विश्वतोमुख) म० ६। (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (नावा इव) यथा नौकया (पारय) पारं गमय। अन्यत्पूर्ववत् ॥
विषय
द्वेष के पार
पदार्थ
१. हे (विश्वतोमुख) = सब ओर मुखोंवाले-सर्वद्रष्टा प्रभो! (नः) = हमें (द्विषः) = द्वेष की भावनाओं से उसी प्रकार (अतिपारय) = पार कीजिए इव-जैसेकि नावा-नौका से किसी नदी को पार किया जाता है। २. हम द्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठकर प्रेम के क्षेत्र में विचरें, जिससे (न:) = हमारा (अघम्) = पाप हमसे दूर होकर (शोशुचत्) = शोक-सन्तत होकर नष्ट हो जाए।
भावार्थ
द्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठकर ही हम पाप को विनष्ट कर पाते हैं।
भाषार्थ
(विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखोंवाले परमेश्वराग्नि! (न:) हमें (द्विष:) द्वेष-नद से अति (पारय) पार कर, (नावा इव) जैसेकि नौका द्वारा [नदी या समुद्र को] पार किया जाता है। (अप नः शोशुचत् अघम्) परमेश्वराग्नि पापों को अपगत करके, दग्ध करके, उसकी शोचि या परमेश्वराग्नि हमें पवित्र कर देती है।
टिप्पणी
[द्वेष आदि दुर्भावनाएँ हैं। इन्हें त्याग देने से मनुष्य विविध पापों के करने से छूट जाता है, और पवित्र विचारोंवाला हो जाता है। एतदर्थ विश्वतोमुख परमेश्वर के सदुपदेशों का आश्रय ग्रहण करना चाहिए।]
विषय
पाप नाश करने की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (विश्वतोमुख) सर्वव्यापक सर्वोपदेष्टा ! आप (नावा इव) जिस प्रकार नौका से समुद्रों को पार किया जाता है उसी प्रकार (नः) हमें (द्विषः अति पारय) काम, क्रोध आदि अन्तः शत्रुओं से पार करो। और (नः अधम् अप शोशुचत्) हमारे पापों को हम से दूर करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। पापनाशनोऽग्निर्देवता। १-८ गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Cleansing of Sin and Evil
Meaning
O lord of universal presence and power, like a saving ark over the seas, take us over and aross the whirlpools of jealousy and enmity of the world. Burn off our sins and evil and let us shine all pure.
Translation
O with your face turned in all directions, may you take us across, as on a boat, beyond the reach of our adversaries. May your light dispel our sins. (Also Rg. 1.97.8)
Translation
O God, Whose face is everywhere! Thou take me away from my internal enemies—the anger, aversion, attachment etc. as the people cross the sea by ship. Remove our evils far from us.
Translation
O All-pervading God, let us cross the ocean of internal foes like lust and anger, as an ocean is crossed through a ship. Destroy Thou our sins!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(द्विषः) द्वेष्टॄन् शत्रून् (नः) अस्मान् (विश्वतोमुख) म० ६। (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (नावा इव) यथा नौकया (पारय) पारं गमय। अन्यत्पूर्ववत् ॥
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