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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 33/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - पापनाशन सूक्त
    1

    प्र यद॒ग्नेः सह॑स्वतो वि॒श्वतो॒ यन्ति॑ भा॒नवः॑। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । यत् । अ॒ग्ने: । सह॑स्वत: । वि॒श्वत॑: । यन्ति॑ । भा॒नव॑: । अप॑ । न॒: । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥३३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र यदग्नेः सहस्वतो विश्वतो यन्ति भानवः। अप नः शोशुचदघम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । यत् । अग्ने: । सहस्वत: । विश्वत: । यन्ति । भानव: । अप । न: । शोशुचत् । अघम् ॥३३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जिस कारण से (सहस्वतः) बलवान् (अग्नेः) परमात्मा के (भानवः) अनेक प्रकाश (विश्वतः) सब ओर (प्र) भली भाँति (यन्ति) चलते रहते हैं। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की अनेक सूक्ष्म और स्थूल रचनाओं को देखकर अपने विघ्नों को मिटावें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(प्र) प्रकर्षेण (यत्) यस्मात् (अग्नेः) परमात्मनः (सहस्वतः) बलवतः (विश्वतः) सर्वतः (यन्ति) गच्छन्ति (भानवः) प्रकाशाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    शक्ति व प्रकाश

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (सहस्वतः) = सहस्वाले-सहोरूप [शक्तिपुञ्ज] (अग्नेः) = अग्नणी प्रभु की (भानव:) = ज्ञानदीसियाँ (विश्वतः) = हमारे जीवन में सब ओर (प्रयन्ति) = प्रकर्षेण गति करती हैं, तब (न:) = हमारे (अघम्) = पाप (अप) = हमसे दूर होकर (शोशचत्) = शोक-सन्तप्त होकर नष्ट हो जाते हैं। २. ज्ञान के प्रकाश में पापान्धकार विलीन हो जाता है। सहस्वान् प्रभु के सहस् से सहस्वाले बनकर हम पापरूप शत्रुओं को कुचल डालते हैं [सहस्-शत्रु-मर्षक बल]।

    भावार्थ

    प्रभु के सम्पर्क में हम प्रकाश व बल को प्राप्त करके पापों को कुचल डालते हैं।

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    भाषार्थ

    (यत्) जोकि (सहस्वतः) पराभव करनेवाले, (अग्नेः) परमेश्वराग्नि की (भानवः) प्रभाएं (विश्वतः) संसार के सब ओर (प्र यन्ति) प्रयाण करती हैं, अतः (अप नः शोशुचत् अघम्) परमेश्वराग्नि पापों को अपगत करके, दग्ध करके, उसकी शोचि या स्वयं परमेश्वराग्नि हमें पवित्र कर देती है।

    टिप्पणी

    [व्यक्ति समग्र संसार में परमेश्वराग्नि की प्रभाओं को देखता है, अनुभव करता है, अत: वह समग्र संसार में प्रभावान् परमेश्वर की सत्ता को जानकर, कहीं भी पाप नहीं करता, और पाप से अपगत होकर पवित्र हो जाता है।]

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    विषय

    पाप नाश करने की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (यत्) क्योंकि (सहस्वतः) सब को अभिभव करने वाले बल से सम्पन्न (अग्नेः) प्रकाशस्वरूप आपके (भानवः) अनेक तेजःप्रकाश (विश्वतो यन्ति) विश्व में सब ओर गति कर रहे हैं। अतः आप उन प्रकाशों द्वारा (नः अधम् अप शोशुचद्) हमारे पापान्धकार को दूर करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। पापनाशनोऽग्निर्देवता। १-८ गायत्र्यः। अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cleansing of Sin and Evil

    Meaning

    As the lights of this powerful Agni go up all round in mighty blaze, so may we be with light and power. O lord of light and power, purge us of our sins and pollution and let us shine in purity and original power.

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    Translation

    The ever-conquering beams of splendour of this fire divine are spreading in all directions. May your light gleam away our sins. (Also Rg. 1.97.5)

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    Translation

    As Misery-removing self-refulgent God’s beams of splendor go everywhere, so our evils be removed far from us.

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    Translation

    As God's ever conquering beams of splendor go to every side, may Thou, O God through Them, destroy Thou our sins!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(प्र) प्रकर्षेण (यत्) यस्मात् (अग्नेः) परमात्मनः (सहस्वतः) बलवतः (विश्वतः) सर्वतः (यन्ति) गच्छन्ति (भानवः) प्रकाशाः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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