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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 10
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मजाया छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
    1

    पुन॒र्वै दे॒वा अ॑ददुः॒ पुन॑र्मनु॒ष्या॑ अददुः। राजा॑नः स॒त्यं गृ॑ह्णा॒ना ब्र॑ह्मजा॒यां पुन॑र्ददुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुन॑: । वै । दे॒वा: । अ॒द॒दु॒: । पुन॑: । म॒नु॒ष्या᳡: । अ॒द॒दु॒: । राजा॑न: । स॒त्यम् । गृ॒ह्णा॒ना: । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒याम् । पुन॑: । द॒दु॒: ॥१७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनर्वै देवा अददुः पुनर्मनुष्या अददुः। राजानः सत्यं गृह्णाना ब्रह्मजायां पुनर्ददुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुन: । वै । देवा: । अददु: । पुन: । मनुष्या: । अददु: । राजान: । सत्यम् । गृह्णाना: । ब्रह्मऽजायाम् । पुन: । ददु: ॥१७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) सूर्यादि देवताओं ने (पुनः) निश्चय करके (वै) ही (अददुः) दान किया है और (मनुष्याः) मनुष्यों ने (पुनः) निश्चय करके (अददुः) दान किया है। (सत्यम्) सत्य (गृह्णानाः) ग्रहण करते हुए (राजानः) राजा लोगों ने (ब्रह्मजायाम्) ब्रह्मविद्या को (पुनः) अवश्य (ददुः) दिया है ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य परस्पर सत्संग, राजनियम, और सूर्य आदि पदार्थों के विवेक से ब्रह्मविद्या का दान करते आये हैं, इसी प्रकार सब को करना चाहिये ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(पुनः वै) अवश्यमेव (देवाः) सूर्यादयो लोकाः (अददुः) अदुः। दत्तवन्तः (पुनः) (मनुष्याः) (अददुः) (राजानः) ऐश्वर्यवन्तः (सत्यम्) याथातथ्यम् (गृह्णानाः) स्वीकुर्वाणाः (ब्रह्मजायाम्) म० २। वेदविद्याम् (पुनः) अवश्यम् (ददुः) दत्तवन्तः ॥

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    विषय

    देव, मनुष्य, राजा,

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार (देवा:) = देववृत्ति के वे ब्राह्मण, जो ब्रह्मजाया के रक्षक थे, वे (पुन:) = फिर गृहस्थ की समाप्ति पर (वै) = निश्चय से (अददुः) = औरों के लिए इसका जान देनेवाले होते हैं। (उत मनुष्या:) = और ये विचारशील लोग (पुनः अददुः) = फिर इस वेदवाणी को देते हैं। बानप्रस्थ बनकर औरों के लिए इसे प्राप्त कराते हैं। २. (राजान:) = अपने जीवन को बड़ा व्यवस्थित [Well- regulated] करते हुए (सत्यं गृहाना:) = सत्य का स्वीकार करते हुए (पुनः) = फिर गृहस्थ की समाप्ति पर (ब्रह्मजायां ददुः) = इस ब्रह्मजाया को-प्रभु से प्रादुर्भूत की गई वेदवाणी को लोगों के लिए देते हैं।

    भावार्थ

    देव, मनुष्य व राजा बनकर-देववृत्ति के बनकर, विचारशील व व्यवस्थित जीवनवाले बनकर हम वानप्रस्थ बनें और इस वेदज्ञान को औरों के लिए देनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (देवाः) दिव्यगुणी विद्वानों ने (ब्रह्मजायाम्) ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञजाया को (वै) निश्चय से (पुनः) फिर (अददुः) वापस दे दिया, कर दिया, (मनुष्याः) सर्वसाधारण मनुष्यों ने (पुनः) फिर (अददुः) वापस दे दिया, कर दिया। (सत्यं गृह्णानाः) सत्यग्राही (राजानः) राजाओं ने ( पुनः) फिर (ददुः) वापस दे दिया, कर दिया।

    टिप्पणी

    [मन्त्र-भावना विचार की अपेक्षा करती है। मन्त्र ९ में जब यह निर्णय दे दिया कि ब्रह्मजाया का पति ब्राह्मण ही है, न राजा, न वैश्य तब तद्भिन्न व्यक्ति ब्रह्मजाया के पति मन्त्र १० में सम्भावित ही नहीं, जिसे कि देव आदि ने फिर वापस दे दिया, कर दिया तथा मन्त्र १० में देवा:, मनुष्याः, राजानः पद बहुवचनान्त हैं। क्या इससे यह समझना चाहिए कि ब्रह्मजाया का विवाह नाना देवों, नाना मनुष्यों, नाना राजाओं के साथ हुआ और उन्होंने विचार करके ब्रह्मजाया को पुनः-पुनः वापस कर दिया, अतः प्रतीत यह होता है कि गुणकर्म से योग्य पति न मिलने के कारण बार-बार विवाह सम्बन्धी प्रस्ताव हुए, परन्तु देव आदि ने अपने-आपको, ब्रह्म-जाया के गुणकर्मों से रहित जानकर, विवाह-प्रस्ताव वापस कर दिये। मन्त्र ८ में प्रस्तावित पति ब्रह्मजाया को अनभिमत हुए और मन्त्र १० में प्रस्तावित ब्रह्मजाया सम्बन्धी विवाह देव आदि को अनभिमत हुए। मन्त्रों में वर्णन कथानक रूप में हैं, वास्तविक नहीं।]

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    विषय

    ब्रह्मजाया या ब्रह्मशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (पुनर्वै देवा अददुः) देव अर्थात् राष्ट्र-सभा के व्यवस्थापक या पृथिवी के शासक जो कि ब्राह्मण नहीं हैं-योग्य ब्राह्मण आजाने पर सारा शासन अपने से हटाकर उसे ही सुपुर्द कर देते हैं। (पुनर्मनुष्याः अददुः) मनुष्य अर्थात् प्रजाजन भी अपने मताधिकार द्वारा ऐसा ही कर देते हैं। (राजानः सत्यं गृह्वाना ब्रह्मजायां पुनः ददुः) तथाः राष्ट्रों के राजा भी, जिन्होंने कि सत्य का ग्रहण किया हुआ है, पृथिवी तथा राष्ट्र-सभा का शासन ब्राह्मण को ही दे देते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मजाया देवताः। १-६ त्रिष्टुभः। ७-१८ अनुष्टुभः। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma-Jaya: Divine Word

    Meaning

    Noble teachers and scholars continuously go on teaching and advancing the Vedic voice, and noble people conduct the yajnic programmes of education. Rulers and brilliant men of knowledge and generous disposition serving the divine truth with dedication carry on the propagation of the holy Word and its extension in practice and application.

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    Translation

    Surely the enlightened ones restored her again; again the men restored. The princes, realizing the truth restored the wife of the intellectual again.

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    Translation

    Certainly the physical forces of nature give this Brahmajaya to her husband, certainly the parents and relatives of her give her to her husband and certainly the King at the helm of affairs give her to her Brahmana husband legally.

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    Translation

    The sages, mortals, and the kings, the lovers of truth, have verily given the knowledge of the Vedas to others.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(पुनः वै) अवश्यमेव (देवाः) सूर्यादयो लोकाः (अददुः) अदुः। दत्तवन्तः (पुनः) (मनुष्याः) (अददुः) (राजानः) ऐश्वर्यवन्तः (सत्यम्) याथातथ्यम् (गृह्णानाः) स्वीकुर्वाणाः (ब्रह्मजायाम्) म० २। वेदविद्याम् (पुनः) अवश्यम् (ददुः) दत्तवन्तः ॥

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