Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 17 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 18
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मजाया छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
    1

    नास्य॑ धे॒नुः क॑ल्या॒णी नान॒ड्वान्त्स॑हते॒ धुर॑म्। विजा॑नि॒र्यत्र॑ ब्राह्म॒णो रात्रिं॒ वस॑ति पा॒पया॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । अ॒स्य॒। धे॒नु: । क॒ल्या॒णी । न । अ॒न॒ड्वान् । स॒ह॒ते॒ । धुर॑म् । विऽजा॑नि: । यत्र॑ । ब्रा॒ह्म॒ण: । रात्रि॑म् । वस॑ति ।पा॒पया॑ ॥१७.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नास्य धेनुः कल्याणी नानड्वान्त्सहते धुरम्। विजानिर्यत्र ब्राह्मणो रात्रिं वसति पापया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । अस्य। धेनु: । कल्याणी । न । अनड्वान् । सहते । धुरम् । विऽजानि: । यत्र । ब्राह्मण: । रात्रिम् । वसति ।पापया ॥१७.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 18
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (न) न तो (अस्य) उसकी (धेनुः) दुधैल गौ (कल्याणी) कल्याणी [होती है] और (न) (अनड्वान्) छकड़ा ले चलनेवाला बैल (धुरम्) धुर वा जूये को (सहते) सहता है। (यत्र) यहाँ (विजानिः) विद्याभ्यास बिना (ब्राह्मणः) ब्राह्मण (रात्रिम्) रात को (पापया) कष्ट से (वसति) वसता है ॥१८॥

    भावार्थ

    जिस राज्य में ब्राह्मण विद्याभ्यास नहीं करता, वहाँ दुधैल गौयें और बलवान् बैल आदि उपकारी पशु नहीं होते हैं ॥१८॥

    टिप्पणी

    १८−(न) निषेधे (अस्य) राज्ञः (धेनुः) दुग्धवती गौः (कल्याणी) मङ्गलवती (न) निषेधे (अनड्वान्) अ० ४।११।१। शकटवाही वृषभः (सहते) वहति (धुरम्) युगम्। भारम् (विजानिः) जाया−म० २। जायाया निङ्। पा० ५।४।१३४। वि+जायाशब्दस्य निङ्। विगता जाया विद्या यस्य सः। विगतविद्याभ्यासः (यत्र) यस्मिन् राष्ट्रे (ब्राह्मणः) वेदवेत्ता (रात्रिम्) निशाम् (वसति) वासं करोति (पापया) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति विभक्तेर्या। पापेन कष्टेन ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    कुत्ता न कि धेनु

    पदार्थ

    १. (यत्र) = जिस राष्ट्र में (ब्राह्मण:) = ब्राह्मण भी (विजानि:) = [विगता जाया-ब्रह्मजाया यस्य] वेदवाणिरूपी ब्रह्मजाया से रहित होकर (रत्रिम् पापया वसति) = रात्रि में कुकर्म से निवास करता है, अर्थात् असंयत जीवनवाला होकर पाप में चलता जाता है। (अस्य) = इस राष्ट्र की (धेनु:) = गाय (कल्याणी न) = लोककल्याण करनेवाली नहीं होती और (न) = नहीं (अनड्वान्) = बैल (धुरं सहते) = गाड़ी में जुए को धारण करनेवाला होता है, अर्थात् इस राष्ट्र में गोपालन ठीक से न होने के कारण गौ और बैल की नस्ल क्षीण हो जाती है। घरों में गौओं का स्थान कुत्तों को मिल जाता है। लोग भी कुत्तों की भाँति ही लड़ने की प्रवृतिवाले बन जाते हैं।

     

    भावार्थ

    जिस राष्ट्र में ब्राह्मण ज्ञानरूचि न रहकर असंयत आचरणवाले हो जाते हैं, वहाँ लोगों में गोपालन की रुचि न रहकर कुत्तों के पालन की प्रवृत्ति पनप उठती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अस्य) इस राजा की (कल्याणी) कल्याणकारिणी (धेनु:) दुधार गौ (न) दूध नहीं देती, (न) और न (अनड्वान् ) शकट का वहन करनेवाला बैल (धुरम्) शकट की धुरी को (सहते) सहता है, (यत्र) जिस राष्ट्र में (ब्राह्मणः) ब्राह्मण, (विजानिः) विवाहित जाया से रहित हुआ (पापया) पापिन के साथ (रात्रि वसति) रात्रिवास करता है।

    टिप्पणी

    [जिस राष्ट्र में ब्रह्म और वेद का प्रचार रोक दिया जाता है, उस राष्ट्र में अधिक दुर्व्यवस्था हो जाने से, पशुओं को घास-चारा नहीं मिलता, अतः दूध देनेवाली गौएँ भी दूध नहीं देती और न शकट वहन करनेवाले बैल, कमजोरी के कारण, शकट के वहन के भार को सहन कर सकते हैं तथा विवाह-व्यवस्था के भी बिगड़ जाने से ब्रह्मज्ञ और वेदज्ञ व्यक्ति भी दुराचारी हो जाते हैं।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ब्रह्मजाया या ब्रह्मशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (यत्र) जहां (ब्राह्मणः) विद्वान्, वेदवेत्ता, ब्राह्मण लोग (विजानिः) अपनी भार्या के समान पालनीय, राष्ट्र-सभा के शासन से रहित होकर (पापया) पाप-प्रधान प्रजा साथ (रात्रिं) अज्ञान, कुकर्म तथा विप्लव मयी रात्रि में (वसति) निवास करते रहते हैं के (अस्य) उस राष्ट्र की (धेनुः) गाय, भूमि (कल्याणी न) सुखपूर्वक दूध देने वाली नहीं होती और (अनड्वान्) बैल भी (धुरम् न सहते) गाड़ियों में नहीं जुतते। अर्थात् विद्वानों के शासन के अभाव में न पशुओं की वृद्धि होती है, न गो-पालन होता है और न व्यापारार्थ बैल आदि का सत् उपयोग होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मजाया देवताः। १-६ त्रिष्टुभः। ७-१८ अनुष्टुभः। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma-Jaya: Divine Word

    Meaning

    The auspicious and abundant mother cow goes dry of milk, the mighty bull refuses to bear the yoke of the master in the Rashtra where the Brahmana is denied access to divine knowledge and passes the night in discomfort for fear of political offence.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Not his milch-cow brings any profit, nor his draft-ox bears the yoke, where an intellectual, separated from wife, spends a night miserably.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Wherever the Brahmana spends the mournful night severed from his wife, the milch cows does not give milk to any one and the ox does not masters the yoke.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    In a country where a Brahmin devoid of knowledge, passes his sinful life in the night of ignorance, milch-cow doth not profit one, his ox endures not the yoke.

    Footnote

    In a country where there is paucity of learned persons, milch-kine and strong bulls become extinct.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १८−(न) निषेधे (अस्य) राज्ञः (धेनुः) दुग्धवती गौः (कल्याणी) मङ्गलवती (न) निषेधे (अनड्वान्) अ० ४।११।१। शकटवाही वृषभः (सहते) वहति (धुरम्) युगम्। भारम् (विजानिः) जाया−म० २। जायाया निङ्। पा० ५।४।१३४। वि+जायाशब्दस्य निङ्। विगता जाया विद्या यस्य सः। विगतविद्याभ्यासः (यत्र) यस्मिन् राष्ट्रे (ब्राह्मणः) वेदवेत्ता (रात्रिम्) निशाम् (वसति) वासं करोति (पापया) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति विभक्तेर्या। पापेन कष्टेन ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिंगलिश (1)

    Subject

    Effects of lack of our sensibilities towards women

    Word Meaning

    Neither the cows bring welfare to society nor oxen get yoked, and without active participation of the women in the society, men are given to crime in night life.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top