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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 14
    ऋषिः - मयोभूः देवता - ब्रह्मजाया छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
    1

    नास्य॑ क्ष॒त्ता नि॒ष्कग्री॑वः सू॒नाना॑मेत्यग्र॒तः। यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न । अ॒स्य॒ । क्ष॒त्ता । नि॒ष्कऽग्री॑व: । सू॒नाना॑म् । ए॒ति॒ । अ॒ग्र॒त: । यस्मि॑न् । रा॒ष्ट्रे । नि॒ऽरु॒ध्यते॑ । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या । अचि॑त्त्या ॥१७.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नास्य क्षत्ता निष्कग्रीवः सूनानामेत्यग्रतः। यस्मिन्राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्त्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    न । अस्य । क्षत्ता । निष्कऽग्रीव: । सूनानाम् । एति । अग्रत: । यस्मिन् । राष्ट्रे । निऽरुध्यते । ब्रह्मऽजाया । अचित्त्या ॥१७.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 17; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (अस्य) उसका (निष्कग्रीवः) सोने के कण्ठेवाला (क्षत्ता) द्वारपाल (सूनानाम्) ऐश्वर्यवाले पुरुषों के (अग्रतः) सन्मुख (न) नहीं (एति) जाता है। (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राज्य में.... ॥१४॥

    भावार्थ

    वेदविद्या के नाश होने से मनुष्य निर्धन होकर उत्तम सेवक नहीं रख सकते ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(न) निषेधे (अस्य) राज्ञः (क्षत्ता) तृन्तृचौ शंसिक्षदादिभ्यः०। उ० २।९४। इति क्षद संवृतौ−तृच्। द्वारपालः (निष्कग्रीवः) निष्क माने−घञ्। सुवर्णालङ्कारः कण्ठे यस्य सः (सूनानाम्) षुञो दीर्घश्च। उ० ३।१३। इति षु प्रसवैश्यर्ययोः−न। ऐश्वर्यवतां पुरुषाणाम् (एति) गच्छति (अग्रतः) अभिमुखम् ॥

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    विषय

    वेदत्याग व मूर्ख अनादृत राजा

    पदार्थ

    १. (यस्मिन् राष्ट्र) = जिस राष्ट्र में (अचित्या) = नासमझी से (ब्रह्मजाया) = प्रभु से प्रादुर्भूत की गई यह वेदवाणी (निरुध्यते) = निरुद्ध की जाती है, अर्थात् जहाँ ज्ञान के प्रसार पर बल नहीं दिया जाता, वहाँ (अस्य) = इस राष्ट्र-रथ का (क्षत्ता) = सारथि (निष्कग्रीव:) = सुवर्णवत् दीस ज्ञान के कण्ठहारवाला (सूनानाम्) = ज्ञान-रश्मियों के [सूना-Aray of light ] (अग्रत: न ऐति) = आगे नहीं चलता, अर्थात् ज्ञान का प्रसार न होने पर राष्ट्र का सारथि भी ज्ञानी नहीं रहता और मूर्ख राजा राष्ट्र-रथ को लक्ष्य से दूर ले-जाता है। २. इसीप्रकार जिस राष्ट्र में नासमझी से वेदवाणी के प्रसार का निरोध होता है, (अस्य) = इस राष्ट्र का (श्वेत:) = श्वेत, अर्थात् शुद्ध आचरणवाला (कृष्णकर्ण:) = आकृष्ट किये हैं कर्ण जिसने, अर्थात् जिसकी आज्ञा को सब प्रजा सुनती है, ऐसा (धुरियुक्त:) = राष्ट्र-शकट के जुए में जुता हुआ राजा (न महीयते) = उत्तम महिमा को प्राप्त नहीं होता, अर्थात् इस राष्ट्र में राजा भी मलिन कर्मोंवाला तथा प्रजा से उपेक्षित व अनादृत होता है।

    भावार्थ

    ज्ञान के प्रचार के अभाव में राष्ट्र में राजा भी ज्ञानी नहीं रहता और अन्तत: मलिन कौवाला व प्रजा से उपेक्षित व अनादृत हो जाता है।

     

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    भाषार्थ

    (निष्कग्रीवः) सुवर्ण-मुद्रा-निर्मित हार को ग्रीवा में धारण करने वाला, (अस्य क्षत्ता) इस राजा के रथ का वाहन करनेवाला रथी, (सूनानाम्) सूनारूप युद्धभूमियों में (अग्रतः) आगे की ओर (न) नहीं जाता। (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राष्ट्र में (ब्रह्मजाया) ब्रह्मजाया ( अचिन्त्या) अज्ञान-पूर्वक, (निरुध्यते) [प्रचार करने से] रोकी जाती है।

    टिप्पणी

    [वैदिक दृष्टि में युद्धभूमियाँ सूनारूप हैं, बूचड़खाने हैं, जिनमें कि मानुष वध किये जाते हैं, मानुष जीवन उच्च उद्देश्य के लिए है।]

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    विषय

    ब्रह्मजाया या ब्रह्मशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (यस्मिन् राष्ट्रे अचित्या ब्रह्म-जाया नि रुध्यते) जिस राष्ट्र में मूर्खता से ब्राह्मणों की व्यवस्था तथा शासन को रोक दिया जाय। (अस्य क्षत्ता) उस राष्ट्र का थोड़ा भी (निष्क-ग्रीवः) जैसे कि स्वर्ण के आभूषण पहन कर (सूनानाम्) यज्ञ में (अग्रतः) आगे आना चाहिये (न एति) वह भी आगे नहीं आता। अर्थात् सच्चे ब्राह्मण की व्यवस्था के अभाव में क्षत्रिय भी अपने कर्तव्य-पथ से गिर जाते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मजाया देवताः। १-६ त्रिष्टुभः। ७-१८ अनुष्टुभः। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma-Jaya: Divine Word

    Meaning

    Nor does the citizen, guardian, creative artist or even the border watch of the nation go forward with pride of the nation’s power and prosperity if in the nation the vision and Word of divinity and the Brahmana’s voice is suppressed for reasons of error and ignorance.

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    Translation

    Not his warrior adorning his neck with a golden ornament (niska) goes before young girls, in whose domain an intellectual’s wife is detained thoughtlessly.

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    Translation

    No steward golden-necked goes before the men and women of power and prosperity in the Kingdom where in the wife of Brahman is detained through want of sense.

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    Translation

    In a country where the spread of Vedic knowledge is prohibited through lack of sense, no steward, golden-necklaced, goes before eminent persons.

    Footnote

    On account of poverty well-paid servants cannot be employed. A country that neglects the teachings of the Vedas become poor, its employees are low paid, and cannotafford to wear a golden necklace.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(न) निषेधे (अस्य) राज्ञः (क्षत्ता) तृन्तृचौ शंसिक्षदादिभ्यः०। उ० २।९४। इति क्षद संवृतौ−तृच्। द्वारपालः (निष्कग्रीवः) निष्क माने−घञ्। सुवर्णालङ्कारः कण्ठे यस्य सः (सूनानाम्) षुञो दीर्घश्च। उ० ३।१३। इति षु प्रसवैश्यर्ययोः−न। ऐश्वर्यवतां पुरुषाणाम् (एति) गच्छति (अग्रतः) अभिमुखम् ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Effects of lack of our sensibilities towards women

    Word Meaning

    Chivalrous strong men do not show up in nations, where females are exploited, commandeered/forced upon against their free will & the nation/society becomes deaf /ignorant to the voice of the people.

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