अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 12
ऋषिः - मयोभूः
देवता - ब्रह्मजाया
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मजाया सूक्त
2
नास्य॑ जा॒या श॑तवा॒ही क॑ल्या॒णी तल्प॒मा श॑ये। यस्मि॑न्रा॒ष्ट्रे नि॑रु॒ध्यते॑ ब्रह्मजा॒याचि॑त्त्या ॥
स्वर सहित पद पाठन । अ॒स्य॒ । जा॒या । श॒त॒ऽवा॒ही । क॒ल्या॒णी । तल्प॑म् । आ । श॒ये॒ । यस्मि॑न् । रा॒ष्ट्रे । नि॒ऽरु॒ध्यते॑ । ब्र॒ह्म॒ऽजा॒या । अचि॑त्त्या ॥१७.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
नास्य जाया शतवाही कल्याणी तल्पमा शये। यस्मिन्राष्ट्रे निरुध्यते ब्रह्मजायाचित्त्या ॥
स्वर रहित पद पाठन । अस्य । जाया । शतऽवाही । कल्याणी । तल्पम् । आ । शये । यस्मिन् । राष्ट्रे । निऽरुध्यते । ब्रह्मऽजाया । अचित्त्या ॥१७.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) उसकी (जाया) विद्या (शतवाही) सैकड़ों कार्य निबाहनेवाली (कल्याणी) कल्याणी होकर (तल्पम्) प्रतिष्ठा (न) नहीं (आ शये=शेते) पाती है। (यस्मिन्) जिस (राष्ट्रे) राज्य में (ब्रह्मजाया) वेदविद्या (अचित्या) अचेतपन से (निरुध्यते) रोकी जाती है ॥१२॥
भावार्थ
अविद्या के प्रचार और वेदविद्या की रोक से किसी राज्य में कल्याण नहीं होता ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(न) निषेधे (अस्य) राष्ट्रस्य (जाया) म० ६। विद्या (शतवाही) शत+वह प्रापणे−अण्, ङीप्। बहुपदार्थप्रापयित्री (कल्याणी) कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते। कल्य+अण शब्दे जीवने च−घञ्, ङीप्। मङ्गलप्रदा (तल्पम्) खष्पशिल्प०। उ० ३।२८। इति तल प्रतिष्ठायाम्−प। प्रतिष्ठाम् स्थिरताम् (आ शये) तलोपः। आशेते। प्राप्नोति (यस्मिन्) (राष्ट्रे) राज्ये (निरुध्यते) निवार्यते (ब्रह्मजाया) म० २। ब्रह्मविद्या (अचित्या) चिती क्तिन्। अचेतनया। अज्ञानेन ॥
विषय
वेदत्याग व पाप-प्रसार
पदार्थ
१. (यस्मिन् राष्ट्र) = जिस राष्ट्र में (अचित्या) = नासमझी के कारण (ब्रह्मजाया) = प्रभु से प्रादुर्भूत की गई [ब्रह्मण: जायते] यह वेदवाणी (निरुध्यते) = रोकी जाती है, अर्थात् जहाँ वेदज्ञान का प्रचार नहीं होता, वहाँ (अस्य) = इस ब्रह्मजाया का निरोध करनेवाले पुरुष की (जाया) = पत्नी जो शतवाही-घर के सैकड़ों कार्यों को करनेवाली व (कल्याणी) = मङ्गल-साधिका होनी चाहिए थी, वह (न तल्पम् आश्ये) = अपने बिछौने पर नहीं सोती, अर्थात् वह सती न रहकर स्वैरिणी बन जाती है, तब शतवाहीत्व और कल्याणीत्व का तो प्रसङ्ग ही नहीं रहता। २. इसीप्रकार जिस घर में वेदाध्ययन की परिपाटी नहीं रहती (तस्मिन् वेश्मनि) = उस घर में (विकर्ण:) = विशिष्ट श्रोत्रशक्तिवाला-शास्त्रों का खुब ही श्रवण करनेवाला (पृथुशिरा:) = विशाल मस्तिष्कवाला सन्तान (न जायते) = उत्पन्न नहीं होता। माता-पिता जब अध्ययन ही नहीं करेंगे तब सन्तान ज्ञान की रुचिवाले कैसे होंगे?
भावार्थ
जिन घरों में वेदाध्ययन की परिपाटी नहीं रहती, वहाँ स्त्रियों का आचरण ठीक नहीं रहता और सन्तान पठन की रुचिवाले नहीं होते, निर्बल-मस्तिष्क सन्तान उत्पन्न होते हैं।
भाषार्थ
(शतवाही) सैकड़ों सैनिकों [की वाहिनी ] का वहन करनेवाली, (कल्याणी१) और कल्याणकारिणी (अस्य) इस राजा की (जाया) पत्नी, इसकी (तल्पम्) शय्या पर (न आशये) नहीं आकर शयन करती है, (यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राष्ट्र में (ब्रह्मजाया) ब्रह्मजाया ( अचित्त्या) अज्ञान-पूर्वक, (निरुध्यते) [प्रचार करने से] रोकी जाती है। ब्रह्मजाया = ब्रह्मणि रता जाया, मध्यपदलोपी समास।
टिप्पणी
[ब्रह्मजाया को प्रचार से रोकने के विरोध में राजा की जाया भी राजा से रुष्ट हो जाती है।] [१. राष्ट्र का कल्याण चाहनेवाली राजा की जाया चाहती है कि ब्रह्मरता ब्राह्मणी राष्ट्र में ब्रह्मासम्बन्धी प्रचार करे, ताकि राष्ट्र में आध्यात्मिक प्रचार द्वारा प्रजाजनों के जीवनों में आध्यात्मिकता हो सके, परन्तु गजा इसे नहीं चाहता, अत: उसकी पत्नी रुष्ट है। अथवा जाया कल्याणी है पति के प्रति, परन्तु पति है राजा। राजा का कल्याण भी तो प्रजा के कल्याण पर ही निर्भर है, अतः पत्नी आध्यात्मिकता का प्रचार चाहती है।]
विषय
ब्रह्मजाया या ब्रह्मशक्ति का वर्णन।
भावार्थ
(यस्मिन् राष्ट्रे) जिस राष्ट्र में (अचित्या) अज्ञानवश, मूर्खता से (ब्रह्मजाया) सच्चे ब्राह्मण की व्यवस्था तथा नियन्त्रण को (नि-रुध्यते) रोक दिया जाता है उस राष्ट्र में (अस्य) इस प्रजाजन की (जाया) स्त्रियां भी (शत-वाही) जो कि सहस्रों कार्य करने में समर्थ (कल्याणी) तथा सुख, कल्याण की देने हारी हो सकती हैं (तल्पं) अपने योग्य तथा अधिकार प्राप्त भोग्य-स्थान, सेज पर (न आशये) नहीं विराजती हैं अर्थात् वे भी न्याय-नियम को त्याग कर व्यभिचार-पथ में प्रवृत्त हो जाती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मयोभूर्ऋषिः। ब्रह्मजाया देवताः। १-६ त्रिष्टुभः। ७-१८ अनुष्टुभः। अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahma-Jaya: Divine Word
Meaning
In the Rashtra, order of governance, where by error or ignorance Brahma Jaya, the Word of divinity and the voice of the Brahma, is suppressed, the women and the mother spirit of the nation’s creativity shall find no peace and prestige either in the day or at night although they are auspicious harbingers of a hundred gifts and advantages for the nation.
Translation
Not on his bed lies his wedded good wife, who has brought a hundred (satavahi) dowers, in whose domain (rastre) an intellectual's wife is detained thoughtlessly.
Translation
No lady of the Kingdom where in the wife of Brahmana is detained through want of sense enjoys the peaceful sleep on her bed inspite of her possessing plenty of property and beauty.
Translation
In a country where the spread of Vedic knowledge is prohibited through lack of sense, knowledge, the implementer of hundreds of deeds, and the bestower of virtue, can never attain to stability.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(न) निषेधे (अस्य) राष्ट्रस्य (जाया) म० ६। विद्या (शतवाही) शत+वह प्रापणे−अण्, ङीप्। बहुपदार्थप्रापयित्री (कल्याणी) कल्ये प्रातः अण्यते शब्द्यते। कल्य+अण शब्दे जीवने च−घञ्, ङीप्। मङ्गलप्रदा (तल्पम्) खष्पशिल्प०। उ० ३।२८। इति तल प्रतिष्ठायाम्−प। प्रतिष्ठाम् स्थिरताम् (आ शये) तलोपः। आशेते। प्राप्नोति (यस्मिन्) (राष्ट्रे) राज्ये (निरुध्यते) निवार्यते (ब्रह्मजाया) म० २। ब्रह्मविद्या (अचित्या) चिती क्तिन्। अचेतनया। अज्ञानेन ॥
हिंगलिश (1)
Subject
Effects of lack of our sensibilities towards women
Word Meaning
Even the ruler protected/surrounded by hundreds of security force does not feel secure enough, to have a sound sleep in his chamber, in a Nation where females are commandeered/forced upon against their free will.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal