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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 4
    ऋषिः - चातनः देवता - आयुः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दीर्घायुष्य सूक्त
    1

    यदेन॑सो मा॒तृकृ॑ता॒च्छेषे॑ पि॒तृकृ॑ताच्च॒ यत्। उ॑न्मोचनप्रमोच॒ने उ॒भे वा॒चा व॑दामि ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । एन॑स: । मा॒तृकृ॑तात् । शेषे॑ । पि॒तृऽकृ॑तात् । च॒ । यत् । उ॒न्मो॒च॒न॒प्र॒मो॒च॒ने इत्यु॑न्मोचनऽप्रमोच॒ने । उ॒भे इति॑ । वा॒चा । व॒दा॒मि॒ । ते॒ ॥३०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदेनसो मातृकृताच्छेषे पितृकृताच्च यत्। उन्मोचनप्रमोचने उभे वाचा वदामि ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । एनस: । मातृकृतात् । शेषे । पितृऽकृतात् । च । यत् । उन्मोचनप्रमोचने इत्युन्मोचनऽप्रमोचने । उभे इति । वाचा । वदामि । ते ॥३०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 30; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मा के उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) यदि (मातृकृतात्) माता के किये हुए (च) और (यत्) यदि (पितृकृतात्) पिता के किये हुए (एनसः) अपराध से (शेषे) तू सोता है। (उभे) दोनों (उन्मोचनप्रमोचने) अलग रहना और छुटकारा (ते) तुझ को (वाचा) वेदवाणी से (वदामि) मैं बताता हूँ ॥४॥

    भावार्थ

    माता पिता आदि के दोष से जो मनुष्य निरुद्यमी होता हो, तो वह उस दोष को त्याग दे ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(यत्) यदि (एनसः) अ० २।१०।८। अपराधात् (मातृकृतात्) मात्रा निष्पादितात् (शेषे) स्वपिषि। आलस्यं करोषि (पितृकृतात्) जनकेन कृतात्। अन्यद् यथा म० २ ॥

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    विषय

    उन्मोचन-प्रमोचने

    पदार्थ

    १. (यत्) = यदि (स्वः पुरुषः) = अपना कोई सम्बन्धी पुरुष, (यत्) = यदि कोई (अरण: जन:) = [रण शब्दे] असम्भाष्य-हीन पुरुष (त्वा अभि चेरु:) = तुझपर अभिचार वा बुरा आक्रमण करता है तो मैं [आचार्य] (वाचा) = वाणी के द्वारा (उन्मोचनप्रमोचने) = जाल से छूटना व जाल से बचे ही रहना-(उभे) = दोनों का ते वदामि तुझे उपदेश करता हूँ। तू समझदार बनकर उन दुष्टों के जाल से छूट आ, उनके जाल में मत फैस। २. हे शिष्य ! (यत्) = जो (अचित्या) = नासमझी से अथवा असावधानी से तूने (स्त्रिय) = किसी स्त्रि के लिए (पंसे) = या पुरुष के लिए (दद्रोहिथ) = द्रोह किया है अथवा (शेपिषे) = बुरा वचन कहा है, तो मैं वाणी द्वारा तेरे लिए उन्मोचन व प्रमोचन को कहता हूँ। ३. (यत्) = यदि तू (मातकृतात् एनस:) = माता से किये गये पाप से (च) = और (यत्) = यदि (पितकृतात् एनस:) = पिता से किये गये पाप से (शेषे) = अज्ञान-निद्रा में सो रहा है तो मैं वाणी द्वारा तेरे लिए उन्मोचन और प्रमोचन दोनों को ही करता हूँ।

    भावार्थ

    आचार्यों से ज्ञान प्राप्त करके हम अपने और पराये मनुष्यों के षड्यन्त्रों का शिकार न बनें। किसी भी स्त्री व पुरुष के लिए अपशब्द न कहें। अज्ञाननिद्रा में ही न सोये रह जाएँ।

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    भाषार्थ

    (मातृकृतात्) माता द्वारा किये (एनस:) पाप से (यत्) जो रोग प्राप्त कर, (च) और (पितृकृतात् ) पिता द्वारा किये [पाप से ] ( यत् ) जो रोग प्राप्त कर, (शेषे) तू सोया पड़ा है, ( उन्मोचन -प्रमोचने ) उस रोग से उन्मुक्त और प्रमुक्त होना (अर्थात् छुटकारा पाना) (उभे) इन दोनों को (वाचा) वेदवाणी द्वारा (ते) तेरे लिए (वदामि) मैं कहता हूँ।

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    विषय

    आरोग्य और सुख की प्राप्ति का उपदेश।

    भावार्थ

    (यद्) यदि (मातृ-कृतात् एनसः) माता के किये दोष से (यत् च) और यदि (पितृ-कृतात् एनसः) पिता के किये दोष से (शेषे) तु आवृत रह कर अज्ञान में सो रहा है तो भी (वाचा) वेद-वाणी से उन दोषों और व्यसनों से (उन्मोचन-प्रमोचने) छूटने और दूर रहने दोनों का (वदामि) तुझे उपदेश करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आयुष्काम उन्मोचन ऋषिः। आयुर्देवता। १ पथ्यापंक्तिः। १-८, १०, ११, १३, १५, १६ अनुष्टुभः। ९ भुरिक्। १२ चतुष्पदा विराड् जगती। १४ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। १७ त्र्यवसाना षट्पदा जगती। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    God Health and Full Age

    Meaning

    And if you are suffering the consequences of sin committed by your father or mother, either way I would speak and advise you how to forestall the effects or face them with success.

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    Translation

    If you are lying in bed due to any sin committed by your mother or by your father, for that I tell you ways of both release and deliverance in my words.

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    Translation

    O man! If you are lying asleep because of mother’s folly or because of the fault committed by father tell you by my advice the freedom and release from that.

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    Translation

    If thou art lying on the sick bed because of mother's or of father's sin, I through Vedic speech instruct thee how to get free from, and remain aloof from it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(यत्) यदि (एनसः) अ० २।१०।८। अपराधात् (मातृकृतात्) मात्रा निष्पादितात् (शेषे) स्वपिषि। आलस्यं करोषि (पितृकृतात्) जनकेन कृतात्। अन्यद् यथा म० २ ॥

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