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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 20
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त
    1

    गावः॑ सन्तु प्र॒जाः स॒न्त्वथो॑ अस्तु तनूब॒लम्। तत्सर्व॒मनु॑ मन्यन्तां दे॒वा ऋ॑षभदा॒यिने॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गाव॑: । स॒न्तु॒ । प्र॒ऽजा: । स॒न्तु॒ । अथो॒ इति॑ । अ॒स्तु॒ । त॒नू॒ऽब॒लम् । तत् । सर्व॑म् । अनु॑ । म॒न्य॒न्ता॒म् । दे॒वा: । ऋ॒ष॒भ॒ऽदा॒यि॑ने ॥४.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गावः सन्तु प्रजाः सन्त्वथो अस्तु तनूबलम्। तत्सर्वमनु मन्यन्तां देवा ऋषभदायिने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गाव: । सन्तु । प्रऽजा: । सन्तु । अथो इति । अस्तु । तनूऽबलम् । तत् । सर्वम् । अनु । मन्यन्ताम् । देवा: । ऋषभऽदायिने ॥४.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आत्मा की उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (गावः) विद्याएँ (सन्तु) होवें, (प्रजाः) प्रजाएँ (सन्तु) होवें, (अथो) और भी (तनूबलम्) शरीरबल (अस्तु) होवे। (देवाः) विद्वान् लोग (ऋषभदायिने) सर्वदर्शक परमेश्वर के [ज्ञान] देनेवाले के लिये (तत् सर्वम्) वह सब (अनु मन्यन्ताम्) स्वीकार करें ॥२०॥

    भावार्थ

    ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्मोपदेशक जन को सब सुख प्राप्त होते हैं ॥२०॥

    टिप्पणी

    २०−(गावः) वाचः। विद्याः (सन्तु) (प्रजाः) पुत्रपौत्रादयः (अथो) अपि च (अस्तु) (तनूबलम्) शरीरसामर्थ्यम् (तत्) (सर्वम्) (अनुमन्यन्ताम्) स्वीकुर्वन्तु (देवाः) विद्वांसः (ऋषभदायिने) परमेश्वरस्य बोधदात्रे-इत्यर्थः ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( ऋषभदायिने ) = सर्वदर्शक परमात्मा के ज्ञान के देनेवाले के लिए  ( गावः सन्तु ) = विद्याएँ होवें  ( प्रजाः सन्तु ) = पुत्र, पौत्रादि प्रजाएँ होवें ।  ( अथो ) = और भी  ( तनू बलम् ) = शरीर बल  ( अस्तु ) = होवे  ( देवा: ) = विद्वान् लोग  ( तत्सर्वम् ) = वे सब वस्तुएँ  ( अनुमन्यन्ताम् ) = स्वीकार करें ।

    भावार्थ

    भावार्थ = जो ब्रह्मचारी महात्मा लोग परमात्मा का वेद द्वारा उपदेश करते हैं उनके स्थानों में वेद विद्याओं का प्रचार और पुत्र-पौत्र तथा शिष्यादि वर्ग और इन उपदेशक महानुभावों का शारीरिक बल भी अवश्य होना चाहिये। संसार के बुद्धिमान् विद्वानों का कर्तव्य है कि ऐसे वेद द्वारा ब्रह्मज्ञान का उपदेश करनेवाले महानुभावों के लिए सब उत्तम पदार्थ प्राप्त करावें । जिससे किसी बात की न्यूनता  न होकर वेदों का तथा ईश्वर- भक्ति का प्रचार सदा होता रहे ।

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    विषय

    गाव: प्रजा: तनूबलम्

    पदार्थ

    १. इस (ऋषभदायिने) = सर्वव्यापक व सर्वद्रष्टा प्रभु का ज्ञान देनेवाले के लिए (गाव: सन्तु) = इन्द्रियाँ हों, अर्थात् इसकी सब इन्द्रियों सशक्त बनती हैं, (प्रजाः सन्तु) = इसे उत्तम सन्तान प्राप्त हों (अथो) = और (तनूबलम् अस्तु) = इसके शरीर का बल ठीक बना रहे। २. (देवा:) = सूर्य-चन्द्र आदि सब देव ब्रह्मज्ञान देनेवाले के लिए (तत् सर्वम्) = 'इन्द्रियों, प्रजाओं व बल' उन सबको (अनुमन्यन्ताम्) = अनुमत करें। सब देवों की अनुकूलता से ये सब पदार्थ हमें प्राप्त हों।

     

    भावार्थ

    हम परस्पर ब्रह्मज्ञान की चर्चा करते हुए सब देवों की अनुकूलता से उत्तम इन्द्रियों, सन्तानों व शरीर-बल को प्राप्त करें।

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    भाषार्थ

    (गावः सन्तु) गौएं हों, (प्रजाः सन्तु) प्रजाएं हों, (अथो) और (तनूबलम्) शारीरिक बल (अस्तु) हो। (ऋषभदायिने) ऋषभ के दाता के लिये (तत् सर्वम्) उस सब का (देवाः) देवलोग (अनुमन्यन्ताम्) अनुमोदन करें, इसकी स्वीकृति दें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में परमयोगी का वर्णन है, जोकि ब्रह्मोपासक को ब्रह्म का दर्शन करा देता है। ऐसा योगी यदि गृहस्थी हो तो उसके गृहजीवन के लिये आवश्यक साधनों को उपस्थित करना, तथा यदि वह रुग्ण हो तो उसके स्वास्थ्य तथा शारीरिक बल के लिये औषधादि की व्यवस्था करना राज्याधिकारियों का कर्तव्य है, जोकि राज्याधिकारी देव हों, देव कोटि के व्यक्ति हों। किस स्थान में ऐसा कौन सा योगी रहता है इस की सूचना तो स्थानीय विशिष्ट जन ही दे सकते हैं। वे ही सहायतार्थ यथोचित प्रस्ताव राज्याधिकारियों के समीप उपस्थित कर सकते हैं। प्रस्ताव आने पर राज्याधिकारी उसका अनुमोदन करें, तत्पश्चात् राज्य की ओर से ऐसे परमयोगियों की सहायता की जानी चाहिये, यह उपदेश मन्त्र का है। दूसरी बात मन्त्र से यह प्रतीत होती है कि ऐसे योगी महात्मा भी गृहस्थ धारण कर, धर्मात्मा, सद्गुणी, तथा सदाचारी सन्तानें उत्पन्न कर, यदि राष्ट्र को दें, तो राष्ट्र की वास्तविक समुन्नति हो सकती है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rshabha, the ‘Bull’

    Meaning

    Let there be plenty of lands, cows and higher culture of mind and senses with knowledge, and let there be noble progeny and friends, and the strength of body, mind and soul for the giver of divine knowledge of the Rshabha, and may all Devas bless him with all that which he desires for self-fulfilment.

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    Translation

    May there be cows; may there be children; also may there be physical strength and vigour; may the bounties of nature grant all that to the presenter of a bull.

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    Translation

    Let there be cows, let there be progeny and let there be the strength of body. Let the learned men grant all this to him who is the propagator of the knowledge of almighty God.

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    Translation

    Let there be learning, let there be progeny and bodily strength: all this may the learned grant to him who spreads true knowledge about God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(गावः) वाचः। विद्याः (सन्तु) (प्रजाः) पुत्रपौत्रादयः (अथो) अपि च (अस्तु) (तनूबलम्) शरीरसामर्थ्यम् (तत्) (सर्वम्) (अनुमन्यन्ताम्) स्वीकुर्वन्तु (देवाः) विद्वांसः (ऋषभदायिने) परमेश्वरस्य बोधदात्रे-इत्यर्थः ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    গাবঃ সন্তু প্রজাঃ সন্ত্বথো অস্তু তনু বলম্।

    তৎ সর্বমনু মন্যন্তাং দেবা ঋষভদায়িনে ।।৬২।।

    (অথর্ব ৯।৪।২০)

    পদার্থঃ (ঋষভদায়িনে) সর্বদর্শক পরমাত্মার জ্ঞান যারা প্রচার করেন, তাদের (গাবঃ সন্তু) জ্ঞান লাভ হোক, (প্রজাঃ সন্তু) সন্তান-সন্ততি হোক (অথো) এবং (তনু বলম্ অস্তু) শরীর বলবান হোক। (দেবাঃ) বিদ্বান লোকেরা (তৎ সর্বম্) এই সমস্ত কিছু (অনু মন্যন্তাম্) গ্রহণ করুন বা স্বীকার করুন।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ যে ব্রহ্মচারী মহাত্মা পরমাত্মার বেদ বাণী দ্বারা উপদেশ প্রদান করেন অর্থাৎ পরমাত্মার বাণী প্রচার করেন, সেই মহানুভবের সকল প্রকার জ্ঞান লাভ হোক। যেন তিনি পরমাত্মার জ্ঞান বিশেষরূপে প্রচার করতে পারেন। তার সন্তান-সন্ততি হোক যেন বংশ পরম্পরায় জ্ঞানের ধারা অব্যাহত রাখতে পারেন। তিনি যেন বলবান হন। ঈশ্বরের বাণী প্রচারে তার যেন কোন ন্যূনতা না থাকে ।।৬২।।

     

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