अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 10
सूक्त - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
आ मे॒ धनं॒ सर॑स्वती॒ पय॑स्फातिं च धा॒न्य॑म्। सि॑नीवा॒ल्युपा व॑हाद॒यं चौदु॑म्बरो म॒णिः ॥
स्वर सहित पद पाठआ। मे॒। धन॑म्। सर॑स्वती। पयः॑ऽस्फातिम्। च॒। धा॒न्य᳡म्। सि॒नी॒वा॒ली। उप॑। व॒हा॒त्। अ॒यम्। च॒। औदु॑म्बरः। म॒णिः ॥३१.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
आ मे धनं सरस्वती पयस्फातिं च धान्यम्। सिनीवाल्युपा वहादयं चौदुम्बरो मणिः ॥
स्वर रहित पद पाठआ। मे। धनम्। सरस्वती। पयःऽस्फातिम्। च। धान्यम्। सिनीवाली। उप। वहात्। अयम्। च। औदुम्बरः। मणिः ॥३१.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 10
विषय - धन-दूध-धान्य
पदार्थ -
यह (सिनीवाली) = [सिनम्-अन्नम्] अन्नोंवाली सरस्वती ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता मे मेरे लिए (धनम्) = धन को (पयस्फातिम्) = दूध की वृद्धि को (च) = तथा (धान्यम्) = धान्य को उपावहात् सर्वथा समीपता से प्राप्त कराए, अर्थात् मेरा ज्ञान उस विज्ञानवाला हो जो मुझे 'धन, दूध व धान्य' के प्राचुर्य को देनेवाला हो। २. (च) = और (अयम्) = यह (औदुम्बरः मणि:) = सब रोगों व पापों से ऊपर उठानेवाली वीर्यमणि मुझे धन, दूध व धान्य को देनेवाली हो। वीर्यरक्षण मेरी समृद्धि का कारण बने।
भावार्थ - ज्ञान की आरधना तथा वीर्यरक्षण मुझे 'धन, दूध व धान्य' का प्राचुर्य दें।
इस भाष्य को एडिट करें