अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 14
सूक्त - सविता
देवता - औदुम्बरमणिः
छन्दः - विराडास्तारपङ्क्तिः
सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त
अ॒यमौदु॑म्बरो म॒णिर्वी॒रो वी॒राय॑ बध्यते। स नः॑ स॒निं मधु॑मतीं कृणोतु र॒यिं च॑ नः॒ सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छात् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम्। औदु॑म्बरः। म॒णि। वी॒रः। वी॒राय॑। ब॒ध्य॒ते॒। सः। नः॒। स॒निम्। मधु॑ऽमतीम्। कृ॒णो॒तु॒। र॒यिम्। च॒। नः॒। सर्व॑ऽवीरम्। नि। य॒च्छा॒त् ॥३१.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमौदुम्बरो मणिर्वीरो वीराय बध्यते। स नः सनिं मधुमतीं कृणोतु रयिं च नः सर्ववीरं नि यच्छात् ॥
स्वर रहित पद पाठअयम्। औदुम्बरः। मणि। वीरः। वीराय। बध्यते। सः। नः। सनिम्। मधुऽमतीम्। कृणोतु। रयिम्। च। नः। सर्वऽवीरम्। नि। यच्छात् ॥३१.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 14
विषय - मधुमती सनि
पदार्थ -
१. (अयम्) = यह (औदुम्बर: मणि:) = रेत:कणरूप मणि पापों व रोगों से उभारनेवाली है। (वीरः) = यह रोगरूप शत्रुओं को कम्पित करनेवाली है [वि ईर]। बीराय बध्यते यह वीर पुरुष के लिए शरीर में बद्ध की जाती है। २. (स:) = वह मणि (न:) = हमारी (सनिम्) = उपासना [संभजन] को (मधुमतीम्) = अत्यन्त माधुर्यवाला (कृणोतु) = करे । वीर्य के सुरक्षित होने पर यह वीर मनःप्रसाद के साथ प्रभुभजन करनेवाला होता है। यह मणि (न:) = हमारे लिए (सर्ववीरम्) = सन्तानोंवाले (रयिम्) = ऐश्वर्य को (नियच्छात्) = दे।
भावार्थ - सुरक्षित वीर्य रोगों को कम्पित करके दूर भगाता है। हमारी उपासना को मधुर बनाता है और वीर सन्तानों से युक्त धन प्राप्त कराता है। वीर्यरक्षण द्वारा नीरोग व दीर्घजीवन की कामनावाला 'आयुष्यकामः' अगले दो सूक्तों का ऋषि है। यह 'भृगु' है-वीर्यरक्षण के लिए अपने को तपस्या व ज्ञान की अग्नि में पकाने से यह 'भृगु' है -
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