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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 31

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
    सूक्त - सविता देवता - औदुम्बरमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - औदुम्बरमणि सूक्त

    औदु॑म्बरेण म॒णिना॒ पुष्टि॑कामाय वे॒धसा॑। प॑शू॒णां सर्वे॑षां स्फा॒तिं गो॒ष्ठे मे॑ सवि॒ता क॑रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    औदु॑म्बरेण। म॒णिना॑। पुष्ट‍ि॑ऽकामाय। वे॒धसा॑। प॒शूना॑म्। सर्वे॑षाम्। स्फा॒तिम‌्। गो॒ऽस्थे। मे॒। स॒वि॒ता। क॒र॒त् ॥३१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    औदुम्बरेण मणिना पुष्टिकामाय वेधसा। पशूणां सर्वेषां स्फातिं गोष्ठे मे सविता करत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    औदुम्बरेण। मणिना। पुष्ट‍िऽकामाय। वेधसा। पशूनाम्। सर्वेषाम्। स्फातिम‌्। गोऽस्थे। मे। सविता। करत् ॥३१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 31; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (वेधसा) = [वेधस् creator. Name of सोम] शरीर में सब शक्तियों को उत्पन्न करनेवाली (औदुम्बरेण मणिना) = सब पापों व रोगों से ऊपर उठानेवाली'औदुम्बर' नामवाली वीर्यरूप मणि से (सविता) = शक्ति का सम्पादक प्रभु (पुष्टिकामाय मे) = पुष्टि की कामनावाले मेरे लिए (गोष्ठे) = इस शरीररूप गोष्ठ में (सर्वेषां पशूनाम्) = सब इन्द्रियरूप पशुओं की (स्फातिम्) = वृद्धि (करत्) = करें। २. शरीर गोष्ठ है। इसमें सब देव भिन्न-भिन्न इन्द्रियों के रूप में इसप्रकार रह रहे हैं, जैसेकि गोष्ठ में गौएँ रहती है 'सर्वाह्यस्मिन् देवता गावो गोचइवासते'। वीर्यशक्ति के रक्षण से इन सब इन्द्रियरूप गौओं की शक्ति बढ़ती है।

    भावार्थ - प्रभु मेरे अन्दर वीर्यरूप'औदुम्बरमणि' का रक्षण करें। यह मणि ही सब शक्तियों को उत्पन्न करती है। इसी से शरीररूप गोष्ठ में इन्द्रियरूप गौओं का वर्धन होता है।

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