अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
सूक्त - नारायणः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
ताव॑न्तो अस्य महि॒मान॒स्ततो॒ ज्यायां॑श्च॒ पूरु॑षः। पादो॑ऽस्य॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ त्रि॒पाद॑स्या॒मृतं॑ दि॒वि ॥
स्वर सहित पद पाठताव॑न्तः। अ॒स्य॒। म॒हि॒मानः॑। ततः॑। ज्याया॑न्। च॒। पुरु॑षः। पादः॑। अ॒स्य॒। विश्वा॑। भू॒तानि॑। त्रि॒ऽपात्। अ॒स्य॒। अ॒मृत॑म्। दि॒वि ॥६.३॥
स्वर रहित मन्त्र
तावन्तो अस्य महिमानस्ततो ज्यायांश्च पूरुषः। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥
स्वर रहित पद पाठतावन्तः। अस्य। महिमानः। ततः। ज्यायान्। च। पुरुषः। पादः। अस्य। विश्वा। भूतानि। त्रिऽपात्। अस्य। अमृतम्। दिवि ॥६.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
विषय - लोक - लोकान्तर में प्रभु की महिमा की अभिव्यक्ति
पदार्थ -
१. (तावन्तः) = उतने, अर्थात् ये जितने भी लोक-लोकान्तर हैं, वे (अस्य) = इस प्रभु के (महिमानः) = महिमामात्र हैं। इन सबमें प्रभु की महिमा प्रकट हो रही है (च) = और वे (पूरुषा:) = इस ब्रह्माण्डरूप पुरी में निवास करनेवाले प्रभु तो (ततः) = उस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से (ज्यायान्) = बहुत बड़े हैं । २.( विश्वा भूतानि) = सब प्राणी व सब पृथिव्यादि लोक (अस्य पादः) = इस प्रभु के चतुर्थांशमात्र हैं। (अस्य त्रिपात्) = इसके तीन अंश तो (दिवि अमृतम्) = प्रकाशमयरूप में अमृत हैं, अर्थात् उन तीन अंशों में यह उत्पत्ति व विनाश का क्रम नहीं चल रहा यह सब जन्म-मरण का क्रम प्रभु के एक देश में ही हो रहा है।
भावार्थ - भावार्थ - ये सब लोक लोकान्तर प्रभु की महिमा को प्रकट कर रहे हैं। प्रभु इनसे महान् हैं। ये सब तो प्रभु के एकदेश में ही हैं। प्रभु के तीन अंश तो इस सब जन्म-मरण के स्थल न बनकर प्रकाशमय ही हैं।
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