अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 16
सूक्त - नारायणः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
मू॒र्ध्नो दे॒वस्य॑ बृह॒तो अं॒शवः॑ स॒प्त स॑प्त॒तीः। राज्ञः॒ सोम॑स्याजायन्त जा॒तस्य॒ पुरु॑षा॒दधि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमू॒र्धः। दे॒वस्य॑। बृ॒ह॒तः। अं॒शवः॑। स॒प्त। स॒प्त॒तीः। राज्ञः॑। सोम॑स्य। अ॒जा॒य॒न्त॒। जा॒तस्य॑। पुरु॑षात्। अधि॑ ॥६.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
मूर्ध्नो देवस्य बृहतो अंशवः सप्त सप्ततीः। राज्ञः सोमस्याजायन्त जातस्य पुरुषादधि ॥
स्वर रहित पद पाठमूर्धः। देवस्य। बृहतः। अंशवः। सप्त। सप्ततीः। राज्ञः। सोमस्य। अजायन्त। जातस्य। पुरुषात्। अधि ॥६.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 16
विषय - देवस्य, बृहतः, राज्ञः, सोमस्य
पदार्थ -
१. गतमन्त्र में 'पुरुषपशु' के बन्धन का उल्लेख है। उस (पुरुषात्) = पौरुषयुक्त 'काम' से (अधिजातस्य) = ऊपर उठे हुए इस साधक के मन-मस्तिष्क से (समती:) = [सप् समवाये] सब विद्याओं को अपने में समवेत करनेवाली सप्त-सात गायत्र्यादि छन्दों में बद्ध होने से सात संख्यावाली अंशव: ज्ञान की किरणें (अजायन्त) = प्रादुर्भूत होती हैं। इसके मस्तिष्क में इन सात छन्दों में बद्ध इन वेदवाणियों का प्रकाश होता है। यह उन वेदवाणियों के रहस्य को समझ पाता है। २. उस साधक के मस्तिष्क में इन वेदवाणियों का प्रादुर्भाव होता है जो (देवस्य) = दिव्य गुणयुक्त होता है, (बृहत:) = सब शक्तियों का वर्धन करनेवाला होता है तथा (राज्ञः) = अपनी इन्द्रियों का राजा होता है, अथवा बड़ी व्यवस्थित [regulated] क्रियाओंवाला होता है तथा (सोमस्य) = सौम्य स्वभाव का-शान्त प्रवृत्ति का होता है।
भावार्थ - हम अत्यन्त प्रबल 'काम' के नियमन के द्वारा ऊपर उठें। देव, बृहन्, राजा व सौम बनें-'दिव्यगुणोंवाले, प्रवृद्ध शक्तियोंवाले, व्यवस्थित जीवनवाले व सौम्य'। ऐसा बनने पर हमारे मस्तिष्क में सात छन्दों में बद्ध इन वेदवाणियों का प्रकाश होगा। गतमन्त्र के अनुसार वेदवाणियों का प्रकाश होने पर यह प्रभु-स्तोत्रों का उच्चारण करता है और अज्ञानान्धकार को निगल जाता है-सो 'गर्ग' कहलाता है [गिरति]। इसी पर बल देने के लिए कहते हैं कि यह गर्ग का पुत्र 'गार्य' बन गया है। यह गार्य ही अगले शूक्त का ऋषि है। इस ज्ञानी गार्ग्य का सब नक्षत्र [लोक-लोकान्तर] कल्याण ही करनेवाले होते हैं -
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