अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
सूक्त - गार्ग्यः
देवता - नक्षत्राणि
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - नक्षत्र सूक्त
चि॒त्राणि॑ सा॒कं दि॒वि रो॑च॒नानि॑ सरीसृ॒पाणि॒ भुव॑ने ज॒वानि॑। तु॒र्मिशं॑ सुम॒तिमि॒च्छमा॑नो॒ अहा॑नि गी॒र्भिः स॑पर्यामि॒ नाक॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठचि॒त्राणि॑। सा॒कम्। दि॒वि। रो॒च॒नानि॑। स॒री॒सृ॒पाणि॑। भुव॑ने। ज॒वानि॑। तु॒र्मिश॑म्। सु॒ऽम॒तिम्। इ॒च्छमा॑नः। अहा॑नि। गीः॒ऽभिः। स॒प॒र्यामि॑। नाक॑म् ॥७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
चित्राणि साकं दिवि रोचनानि सरीसृपाणि भुवने जवानि। तुर्मिशं सुमतिमिच्छमानो अहानि गीर्भिः सपर्यामि नाकम् ॥
स्वर रहित पद पाठचित्राणि। साकम्। दिवि। रोचनानि। सरीसृपाणि। भुवने। जवानि। तुर्मिशम्। सुऽमतिम्। इच्छमानः। अहानि। गीःऽभिः। सपर्यामि। नाकम् ॥७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
विषय - नक्षत्रों में प्रभु-महिमा का दर्शन
पदार्थ -
१. (दिवि) = आकाश में (साकम्) = साथ-साथ (रोचनानि) = चमकनेवाले ये नक्षत्र (चित्राणि) = अद्भुत ही हैं। ये सब नक्षत्र उस प्रभु की महिमा को प्रकट कर रहे हैं। ये सब नक्षत्र (सरीसृपाणि) = अपने अण्डाकृति-वक्र से प्रतीत होनेवाले मार्गों पर चल रहे हैं। (भुवने जवानि) = इस ब्रह्माण्ड में ये सब नक्षत्र अतिशयेन वेगवान् हैं । २. मैं इन नक्षत्रों में उस आनन्दमय प्रभु की महिमा को देखता हुआ, (तुर्मिशम्) = [तुर त्वरणे मिश् समाधौ] त्वरा से समाधि को [एकाग्रता को] तथा (सुमतिम्) = कल्याणी मति को (इच्छमान:) = चाहता हुआ (अहानि) = सब दिनों में (गीर्भि:) = इन वेदवाणियों के द्वारा (नाकं सपर्यामि) = क्लेशों से असम्भिन्न आनन्दमय प्रभु का उपासन करता हूँ।
भावार्थ - हम झुलोक में दीप्त नक्षत्रों में प्रभु की महिमा को देखें। एकाग्रता व सुमति की कामना करते हुए प्रभु का उपासन करें।
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