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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 79/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - अग्निः छन्दः - आर्ष्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अग्ने॒ वाज॑स्य॒ गोम॑त॒ ईशा॑नः सहसो यहो। अ॒स्मे धे॑हि जातवेदो॒ महि॒ श्रवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । वाज॑स्य । गोम॑तः । ईशा॑नः । स॒ह॒सः॒ । य॒हो॒ इति॑ । अ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । महि॑ । श्रवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने वाजस्य गोमत ईशानः सहसो यहो। अस्मे धेहि जातवेदो महि श्रवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। वाजस्य। गोमतः। ईशानः। सहसः। यहो इति। अस्मे इति। धेहि। जातऽवेदः। महि। श्रवः ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 79; मन्त्र » 4
    अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे जातवेदोऽग्ने ! सहसो यहो गोतमो वाजस्येशानस्त्वमस्मे महि श्रवो धेहि ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (अग्ने) विद्युदिव विद्वान् (वाजस्य) अन्नस्य (गोतमः) बहुधेनुधनयुक्तस्य (ईशानः) स्वामी (सहसः) बलयुक्तस्य (यहो) पुत्र (अस्मे) अस्मासु (धेहि) (जातवेदः) जातविज्ञान (महि) महतः (श्रवः) सर्ववेदादिशास्त्रश्रवणम् ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विदुषां मातापितॄणां सन्ताना भूत्वा मातापित्राचार्य्यैः प्राप्तशिक्षा बह्वन्नैश्वर्य्यविद्याः स्युस्तेऽन्येष्वप्येतत्सर्वं वर्द्धयेयुः ॥ ४ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    हे (जातवेदः) प्राप्तविज्ञान (अग्ने) विद्युत् के समान विद्या प्रकाशयुक्त विद्वन् ! (सहसः) बलयुक्त पुरुष के (यहो) पुत्र (गोतमः) धन से युक्त (वाजस्य) अन्न के (ईशानः) स्वामी आप (अस्मे) हम लोगों में (महि) बड़े (श्रवः) विद्याश्रवण को (धेहि) धारण कीजिये ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्वान् माता और पिताओं के सन्तान होके माता, पिता और आचार्य्य से विद्या की शिक्षा को प्राप्त होकर बहुत अन्नादि ऐश्वर्य और विद्याओं को प्राप्त हों, वे अन्य मनुष्यों में भी यह सब बढ़ावें ॥ ४ ॥

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    विषय

    महि श्रवः

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी (सहसः यहो) = बल के पुत्र, बल के पुतले, शक्ति के पुञ्ज , (जातवेदः) = सर्वज्ञ प्रभो ! आप (गोमतः) = ज्ञान की वाणियोंवाली (वाजस्य) = शक्ति के (ईशानः) = ईशान हैं [गावः = वेदवाचः] । आपमें सम्पूर्ण ज्ञान व सम्पूर्ण शक्ति का समन्वय है और इसी कारण आप अग्रणी व परमेष्ठी - सर्वोच्च स्थान में स्थित हैं । ज्ञान व शक्ति के समन्वय में ही उन्नति है । २. आप (अस्मे) = हममें भी (महिश्रवः) = इस महनीय श्रव [ज्ञान] को (धेहि) = धारण कीजिए । आपकी कृपा से हमें भी यह महनीय ज्ञान प्राप्त हो । शक्ति से युक्त ज्ञान ही महनीय व प्रशंसनीय है । ‘शरीर में शक्ति, मस्तिष्क में ज्ञान’ - ये ही तो आदर्श पुरुष का निर्माण करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभुकृपा से हमें शक्तियुक्त ज्ञान की प्राप्ति हो । यही ज्ञान हमें उन्नतिपथ पर ले - चलनेवाला होगा ।

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    विषय

    परमेश्वर और आचार्य से प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे (जातवेदः) समस्त पदार्थों के जानने हारे परमेश्वर ! विज्ञानों से युक्त विद्वन् ! ऐश्वर्यवन् ! (सहसः यहो) शक्ति के एकमात्र आश्रय प्रभो ! शक्तिमान् पुरुष से उत्पन्न विद्वन् ! (अग्ने) सर्वप्रकाशक ! तू ( गोमतः ) गौ आदि पशुओं से युक्त ( वाजस्य ) ऐश्वर्य का ( ईशानः ) स्वामी है । तू (अस्मे) हमें (महि श्रवः) बड़ा भारी धन ( धेहि ) प्रदान कर । हे विद्वन् ! तू ( गोमतः वाजस्य ) वेद वाणियों से युक्त ज्ञान का ( ईशानः ) स्वामी है । तू ( महिः श्रवः ) बड़ा भारी श्रवण करने योग्य वेद ज्ञानोपदेश ( अस्मे धेहि ) हमें प्रदान कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गौतमो राहूगण ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः-१ विराट् त्रिष्टुप् । २, ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ आर्ष्युष्णिक् । ५, ६ निचृदार्ष्युष्णिक् । ७, ८, १०, ११ निचद्गायत्री । ९, १२ गायत्री ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विषय (भाषा)- फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे जातवेदः अग्ने ! सहसः यहो गोतमः वाजस्य ईशानः त्वम् अस्मे महि श्रवः धेहि ॥४॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (जातवेदः) जातविज्ञान= वस्तुओं के उत्पन्न होते ही, उन्हें विशेष ज्ञान से जाननेवाले, (अग्ने) विद्युदिव विद्वान्=विद्युत् के समान विद्वान्! (सहसः) बलयुक्तस्य= बलवाले के, (यहो) पुत्र = पुत्र, (गोतमः) बहुधेनुधनयुक्तस्य =बहुत सी गायों और धनवाले, (वाजस्य) अन्नस्य=अन्न के, (ईशानः) स्वामी= स्वामी, (त्वम्)=तुम, (अस्मे) अस्मासु=हम में, (महि) महतः= विपुलता से, (श्रवः) सर्ववेदादिशास्त्रश्रवणम्=समस्त वेद आदि शास्त्रों का सुनने का व्यवहार, (धेहि)= धारण कीजिये ॥४॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विद्वान् माता और पिताओं के सन्तान हो करके, माता-पिता और आचार्यों से प्राप्त शिक्षा से बहुत अन्न, ऐश्वर्य और विद्या वाले होंवें, वे अन्यों में इन सबको बढ़ावें ॥४॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (जातवेदः) वस्तुओं के उत्पन्न होते ही, उन्हें विशेष ज्ञान से जाननेवाले, (अग्ने) विद्युत् के समान [तत्क्षण क्रिया करनेवाले] विद्वान्! (सहसः) बलवाले के (यहो) पुत्र, (गोतमः) बहुत सी गायों व धनवाले और (वाजस्य) अन्न के (ईशानः) स्वामी (त्वम्) तुम, (अस्मे) हममें (महि) विपुलता से (श्रवः) समस्त वेद आदि शास्त्रों का सुनने का व्यवहार (धेहि) धारण कीजिये, [अर्थात् हमे वेद व शास्त्रों का स्वाध्यायी बनाइये] ॥४॥

    संस्कृत भाग

    अग्ने॑ । वाज॑स्य । गोम॑तः । ईशा॑नः । स॒ह॒सः॒ । य॒हो॒ इति॑ । अ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । महि॑ । श्रवः॑ ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विदुषां मातापितॄणां सन्ताना भूत्वा मातापित्राचार्य्यैः प्राप्तशिक्षा बह्वन्नैश्वर्य्यविद्याः स्युस्तेऽन्येष्वप्येतत्सर्वं वर्द्धयेयुः ॥४॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसं विद्वान माता-पिता यांची संतती असते ती माता-पिता आचार्य यांच्याद्वारे विद्येचे शिक्षण घेऊन पुष्कळ अन्न इत्यादी ऐश्वर्य व विद्या प्राप्त करते त्यांनी इतर माणसांनाही ते द्यावे व वर्धित करावे. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Agni, lord of the knowledge of existence, creator and ruler of food, energy and wealths of life and lord of cows and sunbeams, child of omnipotence, bring us the brilliance of knowledge and great splendour of life’s victories.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Agni is taught further in the 4th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person, you who are like the electricity, son of of a powerful virile person and lord of many cows and food material, bestow on us great knowledge of the Vedas and other Shastras.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (कवि:) सर्वविद्यावित् = Knower of all sciences. (दीदिहि) भृशं प्रकाशय = Illumiuate. दोदियति ज्वलतिकर्मा (निघ० १.१६ )

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those men who being the sons of learned parents, educated by the father, mother and precepters obtain much food material, wealth. and knowledge, should also multiply these things in others.

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    Subject of the mantra

    Then, what kind of scholar should he be?This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (jātavedaḥ)=scholar who know things with special knowledge as soon as they are produced, (agne) =like electricity, [tatkṣaṇa kriyā karanevāle] =who acts spontaneously, (vidvān)=scholar, (sahasaḥ) =of the powerful, (yaho) =son, (gotamaḥ) owner of many cows, wealth and, (vājasya) =of food, (īśānaḥ)= owner, (tvam) =you, (asme) =to us, (mahi) =abundantly, (śravaḥ)=practice of listening of all the Vedas et cetera scriptures, (dhehi) =inculcate, [arthāt hame veda va śāstroṃ kā svādhyāyī banāiye] =that is, make us self-studious of Vedas and scriptures.

    English Translation (K.K.V.)

    O scholar who know things with special knowledge as soon as they are produced, who acts spontaneously like electricity! You, son of the powerful, owner of many cows, wealth and food, inculcate in us the habit of listening to all the Vedas et cetera scriptures abundantly, that is, make us self-studious of Vedas and scriptures.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is silent simile as a figurative in this mantra.Those people, who being the children of learned parents, have a lot of food, wealth and knowledge due to the education received from their parents and preceptors, they should promote all these among others.

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