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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 79/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अवा॑ नो अग्न ऊ॒तिभि॑र्गाय॒त्रस्य॒ प्रभ॑र्मणि। विश्वा॑सु धी॒षु व॑न्द्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अव॑ । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । ऊ॒तिऽभिः॑ । गा॒य॒त्रस्य॑ । प्रऽभ॑र्मणि । विश्वा॑सु । धी॒षु । व॒न्द्य॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अवा नो अग्न ऊतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि। विश्वासु धीषु वन्द्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अव। नः। अग्ने। ऊतिऽभिः। गायत्रस्य। प्रऽभर्मणि। विश्वासु। धीषु। वन्द्य ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 79; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स सभाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे वन्द्याग्ने सभाध्यक्ष ! त्वमूतिभिर्गायत्रस्य प्रभर्मणि विश्वासु धीषु नोऽस्मानव ॥ ७ ॥

    पदार्थः

    (अव) रक्ष (नः) अस्मान् (अग्ने) विज्ञानस्वरूप (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः (गायत्रस्य) गायत्रीप्रगाथस्य छन्दस आनन्दकरस्य व्यवहारस्य वा (प्रभर्मणि) प्रकर्षेण बिभ्रति राज्यादीन् यस्मिंस्तस्मिन् (विश्वासु) सर्वासु (धीषु) प्रज्ञासु (वन्द्य) अभिवदितुं प्रशंसितुं योग्य ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्येन प्रज्ञा प्रज्ञाप्यते स सत्कर्त्तव्यः ॥ ७ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    हे (वन्द्य) अभिवादन और प्रशंसा करने योग्य (अग्ने) विज्ञानस्वरूप सभाध्यक्ष ! आप (ऊतीभिः) रक्षण आदि से (गायत्रस्य) गायत्री के प्रगाथ वा आनन्दकारक व्यवहार का (प्रभर्मणि) अच्छी प्रकार राज्यादि का धारण हो जिसमें उस तथा (विश्वासु) सब (प्रज्ञासु) बुद्धियों में (नः) हम लोगों की (अव) रक्षा कीजिये ॥ ७ ॥

    भावार्थ

    सब मनुष्यों को चाहिये कि जो सभाध्यक्ष विद्वान् हमारी बुद्धि को शुद्ध करता है, उसका सत्कार करें ॥ ७ ॥

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    विषय

    ज्ञान का धारण

    पदार्थ

    १. (विश्वास धीषु वन्द्य) = ज्ञानपूर्वक किये जानेवाले सब कर्मों में वन्दना के योग्य (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! आप (गायत्रस्य) = गान करनेवाले का त्राण [रक्षण] करनेवाले ज्ञान के (प्रभर्मणि) = प्रकर्षेण धारण करने के निमित्त (नः) = हमें (ऊतिभिः) = अपने रक्षणों से (अव) = रक्षित कीजिए । आपकी रक्षा से ही हम ज्ञान - प्राप्ति में निर्विघ्नता से आगे बढ़ सकेंगे । यह ज्ञान हमारा रक्षण करता है, हमें कामादि वासनाओं का शिकार नहीं होने देता । २. इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमें प्रभु की वन्दना करनी चाहिए । प्रत्येक कर्म प्रभुकृपा से ही सफल हुआ करता है । प्रभु की कृपा के बिना छोटे - से - छोटे कार्य भी पूर्ण नहीं होते, अतः वे प्रभु ही सब ज्ञानयुक्त कों के आरम्भ में वन्दना के योग्य हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हे प्रभो ! आपकी वन्दना करते हुए हम ज्ञानप्राप्ति के कर्म में सफल हों ।

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    विषय

    राजा, विद्वान्, परमेश्वर से प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे ( वन्द्य ) स्तुति करने योग्य ( अग्ने ) सर्वप्रकाशक, परमेश्वर ! तू ( नः ) हमें ( गायत्रस्य ) गान करने या स्तुति करने वाले पुरुष की रक्षा करने में समर्थ वेद ज्ञान के ( प्रभर्मणि ) अच्छी प्रकार धारण करने के कार्य में और ( गायत्रस्य प्रभर्मणि ) इस पृथिवी लोक के उत्तम रीति से भरण पोषण के कार्य में (नः) हमारा (ऊतिभिः) ज्ञानों और रक्षा साधनों द्वारा ( अव ) पालन कर और ( विश्वासु ) समस्त ज्ञानों और कर्मों के प्राप्त करने के अवसरों में हमारी रक्षा कर । राजा केवल इस भूलोकस्थ प्रजाजन के भरण पोषण में ( विश्वासु धीषु ) समस्त प्रकार के कार्यों में हम प्रजाजनों की रक्षा करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गौतमो राहूगण ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः-१ विराट् त्रिष्टुप् । २, ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ आर्ष्युष्णिक् । ५, ६ निचृदार्ष्युष्णिक् । ७, ८, १०, ११ निचद्गायत्री । ९, १२ गायत्री ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विषय (भाषा)- फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे वन्द्य अग्ने सभाध्यक्ष ! त्वम् ऊतिभिः गायत्रस्य प्रभर्मणि विश्वासु धीषु नः अस्मान् अव ॥७॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (वन्द्य) अभिवदितुं प्रशंसितुं योग्य= सादर प्रणाम और प्रशंसा किये जाने योग्य, (अग्ने) विज्ञानस्वरूप=विशेष ज्ञान के स्वरूप, (सभाध्यक्ष)=सभा के अध्यक्ष! (त्वम्)=तुम, (ऊतिभिः) रक्षणादिभिः=रक्षा आदि से, (गायत्रस्य) गायत्रीप्रगाथस्य छन्दस आनन्दकरस्य व्यवहारस्य वा=गायत्री मन्त्र के प्रगाथ और छन्द के आनन्द प्रदान करनेवाले व्यवहार की, (प्रभर्मणि) प्रकर्षेण बिभ्रति राज्यादीन् यस्मिंस्तस्मिन् =राज्य आदि में उत्कृष्ट रूप से ले जानेवाले, (विश्वासु) सर्वासु=समस्त, (धीषु) प्रज्ञासु= प्रज्ञाओं में, (नः) अस्मान्=हमारी, (अव) रक्ष=रक्षा कीजिये ॥७॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- सब मनुष्यों के द्वारा जिस प्रज्ञा से जो बुद्धि प्रकृष्ट रूप से सत्य और गहन ज्ञान को प्राप्त कराती है, उसका ही प्रयोग करना चाहिए ॥७॥

    विशेष

    अनुवादक की टिप्पणियाँ- छन्द- प्रत्येक वेद मंत्र एक विशेष काव्य छंद में पाया गया है जिसे 'छन्द' कहा जाता है और जिसका श्रवण करते ही मन्त्र अथवा श्लोक की यथार्थ अक्षर संख्या का बोध हो जाये, उसे छन्द कहते हैं। वेद में मुख्य रूप से सात छन्द माने जाते हैं। ये छन्द हैं- गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप्, बृहती, पङ्‌क्ति, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री- वेद के छन्दों में गायत्री एक प्रधान छन्द है। इसमें मुख्यत: तीन पाद और 24 अक्षर होते हैं। गायत्री के लगभग 26 भेद होते हैं। प्रगाथ- जब किन्हीं विशेष कारणों से दो-तीन छन्दों का समुदाय बनाया जाता है, तब उस छन्द समुदाय को प्रगाथ कहते हैं। ब्राहमण ग्रन्थों और श्रौत सूत्रों में प्रगाथों का बहुधा उल्लेख मिलता है।

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (वन्द्य) सादर प्रणाम और प्रशंसा किये जाने योग्य, (अग्ने) विशेष ज्ञान के स्वरूप और (सभाध्यक्ष) सभा के अध्यक्ष! (त्वम्) तुम (ऊतिभिः) रक्षा आदि से (गायत्रस्य) गायत्री मन्त्र के प्रगाथ और छन्द के आनन्द प्रदान करनेवाले व्यवहार की (प्रभर्मणि) राज्य आदि की [प्रजाओं में] उत्कृष्ट रूप से ले जानेवाली (विश्वासु) समस्त (धीषु) प्रज्ञाओं में (नः) हमारी (अव) रक्षा कीजिये ॥७॥

    संस्कृत भाग

    अव॑ । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । ऊ॒तिऽभिः॑ । गा॒य॒त्रस्य॑ । प्रऽभ॑र्मणि । विश्वा॑सु । धी॒षु । व॒न्द्य॒ ॥ विषयः- पुनः स सभाध्यक्षः कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैर्येन प्रज्ञा प्रज्ञाप्यते स सत्कर्त्तव्यः ॥७॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो सभाध्यक्ष विद्वान आपल्या बुद्धीला शुद्ध करतो त्याचाच सर्व माणसांनी सत्कार करावा. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Lord adorable all over the world in the affairs of enlightenment, protect and advance us with your care and powers of defence and development in the transactions of knowledge and happiness of the people with your heart and soul.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is the Agni (President of the Assembly) is taught further in the seventh Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned President of the Assembly who are praise-Worthy, guard us with your protective powers in the upholding of the Gayatri and other Mantras and in maintaining delightful dealings and in all intellectual activities.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (गायत्रस्य) गायत्री प्रगाथस्य छन्दसः आनन्दकरस्य व्यवहारस्य वा = Of the Gayatri and other Mantras or of delightful dealing.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should respect a person intellects. who illuminates our intellects.

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    Subject of the mantra

    Then, how should that President of the Assembly be?This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (vandya) =worthy of respectful obeisance and praise, (agne) =mbodiment of special knowledge and, (sabhādhyakṣa)= the President of the Assembly, (tvam) =you, (ūtibhiḥ) =of guarding etc., (gāyatrasya)= by the joy-giving behaviour of gāyatrī mantra pragātha and chanda, (prabharmaṇi) =of the state etc., excellently carrying, [prajāoṃ meṃ]= in the people, (viśvāsu) =all, (dhīṣu)= in all the wisdom, (naḥ) =our, (ava) =protect.

    English Translation (K.K.V.)

    O worthy of respectful obeisance and praise, the embodiment of special knowledge and the President of the Assembly! You protect us from guarding etc., by the joy-giving behaviour of gāyatrī mantra pragātha and chanda, excellently carrying in the people of the state etc., in all the wisdom that leads to excellence.

    Footnote

    Chanda- Each Veda mantra is found in a particular poetic verse called ' Chanda'. gāyatrī is a major verse among these verses.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    The wisdom which naturally enables one to attain eminently truth and deep knowledge should be used by all human beings.

    TRANSLATOR’S NOTES-

    Chanda- Every Vedic mantra is found in a special poetic verse which is called 'Chanda' and on listening to which one can understand the exact number of syllables of the mantra or verse, it is called Chanda. Mainly seven chandas are considered in Vedas. These chandas are- gāyatrī, uṣṇika, anuṣṭup, bṛhatī, paṅkti, triṣṭup and jagatī. Gāyatrī- Gāyatrī is an important chanda among the chandas of Veda. It mainly consists of three stanzas and 24 syllables. There are about 26 types of Gayatri. Pragātha - When for some special reasons a group of two-three mantras is formed, then that group of mantras is called Pragātha. There is frequent mention of Pragātha in Brahmanical texts and śrauta sūtrāja.

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