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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 92/ मन्त्र 13
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्परोष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    उष॒स्तच्चि॒त्रमा भ॑रा॒स्मभ्यं॑ वाजिनीवति। येन॑ तो॒कं च॒ तन॑यं च॒ धाम॑हे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उषः॑ । तत् । चि॒त्रम् । आ । भ॒र॒ । अ॒स्मभ्य॑म् । वा॒जि॒नी॒ऽव॒ति॒ । येन॑ । तो॒कम् । च॒ । तन॑यम् । च॒ । धाम॑हे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उषस्तच्चित्रमा भरास्मभ्यं वाजिनीवति। येन तोकं च तनयं च धामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उषः। तत्। चित्रम्। आ। भर। अस्मभ्यम्। वाजिनीऽवति। येन। तोकम्। च। तनयम्। च। धामहे ॥ १.९२.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 92; मन्त्र » 13
    अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैरेतया किं विज्ञातव्यमित्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    हे सुभगे वाजिनीवति त्वमुषरिवास्मभ्यं चित्रं चित्रं धनमाभर येन वयं तोकं च तनयं च धामहे ॥ १३ ॥

    पदार्थः

    (उषः) उषाः (तत्) (चित्रम्) अद्भुतं सौभाग्यम् (आ) समन्तात् (भर) धर (अस्मभ्यम्) (वाजिनीवति) प्रशस्तक्रियान्नयुक्ते (येन) (तोकम्) पुत्रम् (च) तत्पालनक्षमान् पदार्थान् (तनयम्) पौत्रम् (च) स्त्रीभृत्यपृथिवीराज्यादीन् (धामहे) धरेम। अत्र धाञ्धातोर्लेटि बहुलं छन्दसीति श्लोरभावः। अत्र निरुक्तम्। उषस्तच्चित्रं चायनीयं मंहनीयं धनमाहरास्मभ्यमन्नवति येन पुत्रांश्च पौत्रांश्च दधीमहि। निरु० १२। ६। ॥ १३ ॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः प्रातःकालमारभ्य कालविभागयोग्यान् व्यवहारान् कृत्वैव सर्वाणि सुखसाधनानि सुखानि च कर्त्तुं शक्यन्ते तस्मादेतन्मनुष्यैर्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ १३ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को इससे क्या जानना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे सौभाग्यकारिणी स्त्री ! (वाजिनीवति) उत्तम क्रिया और अन्नादि ऐश्वर्य्ययुक्त तू (उषः) प्रभात के तुल्य (अस्मभ्यम्) हमलोगों के लिये (चित्रम्) अद्भुत सुखकर्त्ता धन को (आभर) धारण कर (येन) जिससे हम लोग (तोकम्) पुत्र (च) और इसके पालनार्थ ऐश्वर्य (तनयम्) पौत्रादि (च) स्त्री, भृत्य और भूमि के राज्यादि को (धामहे) धारण करें ॥ १३ ॥

    भावार्थ

    मनुष्यों से प्रातःसमय से लेके समय के विभागों के योग्य अर्थात् समय-समय के अनुसार व्यवहारों को करके ही सब सुख के साधन और सुख किये जा सकते हैं, इससे उनको यह अनुष्ठान नित्य करना चाहिये ॥ १३ ॥

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    विषय

    यज्ञ

    पदार्थ

    १.वाज का अर्थ हविर्लक्षण अन्न है । उससे युक्त क्रिया को 'वाजिनी' कहते हैं । उषा में ये यज्ञादि चलते हैं, अतः उषा 'वाजिनीवती' है । हे (वाजिनीवति) = यज्ञादि उत्तम क्रियाओंवाली (उषः) = उषे! (तत्) = उस (चित्रम्) = अद्भुत व ज्ञान देनेवाले धन को (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (आभर) = प्राप्त करा (येन) = जिससे कि (तोकं च) = अपने पुत्रों को भी (तनयनं च) = और पौत्रों को भी (धामहे) = हम धारण करनेवाले बनें । २. हमारा उषः काल यज्ञों व स्वाध्याय में बीते । यह हमारे जीवनों को पवित्र करेंगे और स्वाध्याय हमें ज्ञानपरिपूर्ण करेगा । इस प्रकार पवित्र व ज्ञानी बनकर, इस ज्ञान को आगे देते हुए हम अपने सन्तानों के जीवनों को सुन्दर बनानेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ = उषा हमें वह ज्ञान दे जो हमारे पुत्र और पौत्रों का भी कल्याण करनेवाला हो ।

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    विषय

    उत्तम गृहपत्नी का स्वरूप ।

    भावार्थ

    हे ( उषः ) पति की कामना करने हारी कमनीये कन्ये ! हे ( वाजिनीवति ) ऐश्वर्य और अन्न की वृद्धि, उत्पत्ति तथा परिशोधन या परिपाक आदि करने में कुशल नववधू ! तू ( अस्मभ्यम् ) हमारे लिये ( चित्रम् ) ऐसा उत्तम, संग्रह करने योग्य, धन ऐश्वर्य (अस्मभ्यम् ) हमें ( आभर ) प्रदान कर ( येन ) जिससे हम ( तोकं तनयं च ) पुत्रों और पौत्रों का भी ( धामहे) पालन पोषण करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, २ निचृज्जगती । ३ जगती । ४ विराड् जगती । ५, ७, १२ विराड् त्रिष्टुप् । ६, १२ निचृत्त्रिष्टुप् ८, ९ त्रिष्टुप् । ११ भुरिक्पंक्तिः । १३ निचृत्परोष्णिक् । १४, १५ विराट्परोष्णिक् । १६, १७, १८ उष्णिक् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रातःकाळापासून वेळेचे योग्य विभाजन करून अर्थात वेळोवेळी योग्य व्यवहार करून सर्व सुखाची साधने व सुख प्राप्त केले जाते. त्यामुळे माणसांनी हे अनुष्ठान नित्य केले पाहिजे. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Dawn, harbinger of food, energy and rejuvenation of thought, will and action, bear and bring that health and wealth of wondrous and various kinds for us by which we may be able to beget, maintain and advance our children and grand-children and others, friends and assistants in life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men learn from Usha is taught in the 13th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O accomplished learned lady possessor of good food materials and doing noble actions who art charming like the Dawn, bestow upon us that wonderful good fortune where with we may support our sons and grand sons, getting all desirable objects and obedient attendants.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (वाजिनीवति) प्रशस्तक्रियान्नयुक्ते । = Endowed with noble activity and good food.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men can enjoy happiness and acquire its means only by doing all actions according to the prescribed time table from morning to night. Therefore this must be done by all.

    Translator's Notes

    (तोकम्) पुत्रम् = Sons. (तनयम्) पौत्रम् = Grand sons. तोकमिति अपत्यनाम (निघ० २.२ ) तनयम् इति श्रपत्यनाम (निघ० २.२ )

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