ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 92/ मन्त्र 6
अता॑रिष्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्योषा उ॒च्छन्ती॑ व॒युना॑ कृणोति। श्रि॒ये छन्दो॒ न स्म॑यते विभा॒ती सु॒प्रती॑का सौमन॒साया॑जीगः ॥
स्वर सहित पद पाठअता॑रिष्म । तम॑सः । पा॒रम् । अ॒स्य । उ॒षाः । उ॒च्छन्ती॑ । व॒युना॑ । कृ॒णो॒ति॒ । श्रि॒ये । छन्दः॑ । न । स्म॒य॒ते॒ । वि॒ऽभा॒ती । सु॒ऽप्रती॑का । सौ॒म॒न॒साय॑ । अ॒जी॒ग॒रिति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अतारिष्म तमसस्पारमस्योषा उच्छन्ती वयुना कृणोति। श्रिये छन्दो न स्मयते विभाती सुप्रतीका सौमनसायाजीगः ॥
स्वर रहित पद पाठअतारिष्म। तमसः। पारम्। अस्य। उषाः। उच्छन्ती। वयुना। कृणोति। श्रिये। छन्दः। न। स्मयते। विऽभाती। सुऽप्रतीका। सौमनसाय। अजीगरिति ॥ १.९२.६
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 92; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः सा कीदृश्यनया जीवः किं करोतीत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
या श्रिये छन्दो नेवोच्छन्ती बिभाती सुप्रतीकोषा सर्वेषां सौमनसाय वयुनानि कृणोत्यन्धकारमजीगः स्मयते तयास्य तमसः पारमतारिष्म ॥ ६ ॥
पदार्थः
(अतारिष्म) संतरेम प्लवेमहि वा (तमसः) अन्धकारस्येव दुःखस्य (पारम्) परभागम् (अस्य) प्रत्यक्षस्य (उषाः) (उच्छन्ती) विवासयन्ती दूरीकुर्वन्ती (वयुना) वयुनानी प्रशस्यानि कमनीयानि वा कर्माणि (कृणोति) कारयति (श्रिये) विद्याराज्यलक्ष्मीप्राप्तये (छन्दः) (न) इव (स्मयते) आनन्दयति। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः। (बिभाती) विविधानि मूर्त्तद्रव्याणि प्रकाशयन्ती (सुप्रतीका) शोभनानि प्रतीकानि यस्याः सा (सौमनसाय) धर्मे सुष्ठु प्रवृत्तमनस आह्लादनाय (अजीगः) अन्धकारं निगिलति। गॄ निगरणे इत्यस्माद् बहुलं छन्दसीति शपः स्थाने श्लुः। तुजादीनामिति दीर्घश्च ॥ ६ ॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथेयमुषाः कर्मज्ञानानन्दपुरुषार्थधनप्राप्तिमिव दुःखस्य पारमन्धकारनिवारणहेतुरस्ति तथाऽस्यां सुपुरुषार्थेन प्रयत्नमास्थाय सुखोन्नतिर्दुःखहानिश्च कार्य्या ॥ ६ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह कैसी है और इससे जीव क्या करता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
जो (श्रिये) विद्या और राज्य की प्राप्ति के लिये (छन्दः) वेदों के (न) समान (उच्छन्ती) अन्धकार को दूर करती और (विभाती) विविध प्रकार के मूर्त्तिमान् पदार्थों को प्रकाशित और (सुप्रतीका) पदार्थों की प्रतीति कराती है वह (उषाः) प्रातःकाल की वेला सब (सौमनसाय) धार्मिक जनों के मनोरञ्जन के लिये (वयुनानि) प्रशंसनीय वा मनोहर कामों को (कृणोति) कराती (अजीगः) अन्धकार को निगल जाती और (स्मयते) आनन्द देती है, उससे (अस्य) इस (तमसः) अन्धकार के (पारम्) पार को प्राप्त होते हैं, वैसे दुःख के परे आनन्द को हम (अतारिष्म) प्राप्त होते हैं ॥ ६ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को योग्य है कि जैसे यह उषा प्रातःकाल की वेला कर्म, ज्ञान, आनन्द, पुरुषार्थ, धनप्राप्ति के द्वारा दुःखरूपी अन्धकार के निवारण का निदान है, वैसे इस वेला में उत्तम पुरुषार्थ से प्रयत्न में स्थित होके सुख की बढ़ती और दुःख का नाश करें ॥ ६ ॥
विषय
अन्धकार के पार
पदार्थ
१. उषा के निकलने पर हम (अस्य तमसः) = इस रात्रि के अन्धकार के (पारं अतारिष्म) = पार को पा सकते हैं, अन्धकार को उत्तीर्ण होकर प्रकाश में आ जाते हैं । २. (उच्छन्ती) = अन्धकार से दूर करती हुई (उषाः) = उषा (वयुना) = प्रज्ञानों को (कृणोति) = करती है । उषा के प्रकाश में लोगों को मार्ग का ठीक ज्ञान होता है और वे भटकने से बच जाते हैं । ३. यह उषा (स्मयते) = इस प्रकार मुस्कराती हुई - सी आती है (न) = जैसेकि (श्रिये) = श्री की वृद्धि के लिए (छन्दः) = प्रार्थयिता मनुष्य मुस्कराहट को लिये हुए होता है । मुस्कराता हुआ चेहरा [Smiling face] अच्छा प्रतीत होता है, दूसरों पर उसका उत्तम प्रभाव होता है । ४. यह (विभाती) = विशिष्ट प्रकाशवाली (सुप्रतीका) = उत्तम अङ्गों व चेहरेवाली उषा (सोमनसाय) = सौमनस्य के लिए, लोगों के चित्त के प्रसादन के लिए (अजीगः) = अन्धकार को निगल जाती है । प्रकाश में प्रसन्नता है, अन्धकार में विषाद । उषा वह प्रकाश प्राप्त कराती है, जिसमें किसी प्रकार का सन्ताप नहीं होता । इस प्रकाश में मनुष्य प्रसन्न मनवाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ = उषा आती है, अन्धकार को निगल जाती है और हमारे चित्तों को प्रसन्न कर देती है ।
विषय
उषा के वर्णन के साथ, उसके दृष्टान्त से उत्तम गृह-पत्नी के कर्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
( उषा ) प्रभात वेला जिस प्रकार ( उच्छन्ती ) प्रकट होती हुई और अन्धकार को दूर करती हुई ( वयुना कृणोति ) समस्त पदार्थों का ज्ञान कराती है, उसी प्रकार कमनीय कन्या प्रथम वयस में वर्त्तमान रहकर ( उच्छन्ती ) बाल भाव को दूर करती हुई ( वयुना कृणोति ) नाना ज्ञानों व कर्मों को सम्पादन करती है। वह ( छन्दः न ) खुश करने वाले अनुकूल प्रेमी के समान होकर ( श्रिये ) शोभा और सौभाग्य के लिये ( स्मयते ) ईषत् हास करे और ( विभाती ) विविध गुणों से प्रकाशित होती हुई ( सुप्रतीका ) सुमुखी होकर ( सौमनसाय ) शुभचित्तता, उत्तम हृदय या सौहार्द की वृद्धि के लिये (अजीगः) वचन कहे । इस प्रकार हम गृहस्थजन ( अस्य तमसः ) इस शोक, दुःख आदि रूप अन्धकार के ( पारम् अतारिष्म ) पार उतरें । अथवा—वह कन्या ( छन्दः न श्रिये ) वेद के समान ज्ञान का प्रकाश करने या आच्छादन करने वाले गृह के समान हो सम्पत्ति की वृद्धि के लिये हो । वह ( विभाती स्मयते ) इत्यादि पूर्ववत् । (२) उषापक्ष में—(छन्दः न स्मयते) उषा वेद वाणी के समान शोभा के लिये प्रकाश करती, सुन्दर मुख, रूप या प्रतीति प्रकट करनेवाली होकर उत्तम हृदय के भावों को उत्पन्न करने के लिये ( अजीगः ) अज्ञान अन्धकार को ग्रसती है । इस प्रकार हम रात्रि के अन्धकार से पार हों । ( ३ ) इसी प्रकार विशोका या ज्योतिष्मती प्रज्ञा का उदय होने पर भी योगी को प्रज्ञातिरेक अर्थात् विशेष पारमार्थिक ज्ञान उत्पन्न होते हैं हृदय में प्रकाश हो जाता है, वह संसार के दुःखान्धकार से पार हो जाता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोतमो राहूगणपुत्र ऋषिः ॥ उषा देवता ॥ छन्दः—१, २ निचृज्जगती । ३ जगती । ४ विराड् जगती । ५, ७, १२ विराड् त्रिष्टुप् । ६, १२ निचृत्त्रिष्टुप् ८, ९ त्रिष्टुप् । ११ भुरिक्पंक्तिः । १३ निचृत्परोष्णिक् । १४, १५ विराट्परोष्णिक् । १६, १७, १८ उष्णिक् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी ही उषा प्रातःकाळची वेळ कर्म, ज्ञान, आनंद, पुरुषार्थ, धनप्राप्तीद्वारे दुःखरूपी अंधकाराचे निवारण करण्याचे निदान आहे. तसे यावेळी उत्तम पुरुषार्थाने प्रयत्नात स्थित होऊन माणसांनी सुखाची वृद्धी व दुःखाचा नाश करावा. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
At the rise of the dawn, we cross this dark of the night. Rising and radiating, the brilliant dawn awakens us to the bright business of the day. Like the joyous hymns of the Veda for the beauty, prosperity and graces of life, it smiles, shining, consumes the darkness and, itself beautiful of form, it reveals the beauties of the world for our refreshment and rejuvenation.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Ushas and what the soul does with her is taught in the 6th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The Usha (dawn) restores the consciousness of living beings for the acquisition of knowledge and wealth like the Vedas. Brightly shining, she smiles and manifests the noble desirable deeds of the people by her radiance, illumining all embodied objects for the cheerfulness of the mind inclined towards righteous acts. She swallows for our delight the darkness. Let us cross over boundary of the misery like the darkness.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(तमस:) अन्धकारस्येव दुःखस्य = Of misery like darkness. (वयुना) वयुनानि प्रशस्यानि कमनीयानिवा कर्माणि । = Admirable deeds. (अजीगः) अन्धकारंनिगलति । = Swallows darkness.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As this Usha (dawn) dispels darkness and helps us in the achievement of knowledge, action, bliss, exertion and wealth and thus crossing over all suffering, in the same manner, men should engage themselves in doing good deeds at this time and advance of happiness and annihilation of misery.
Translator's Notes
वयुन मिति प्रशस्यनाम (निघ० ३.८)
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