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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 25/ मन्त्र 6
    ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः देवता - सोमः छन्दः - आस्तारपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    प॒शुं न॑: सोम रक्षसि पुरु॒त्रा विष्ठि॑तं॒ जग॑त् । स॒माकृ॑णोषि जी॒वसे॒ वि वो॒ मदे॒ विश्वा॑ स॒म्पश्य॒न्भुव॑ना॒ विव॑क्षसे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒शुम् । नः॒ । सो॒म॒ । र॒क्ष॒सि॒ । पु॒रु॒ऽत्रा । विऽस्थि॑तम् । जग॑त् । स॒म्ऽआकृ॑णोषि । जी॒वसे॑ । वि । वः॒ । मदे॑ । विश्वा॑ । स॒म्ऽपश्य॑न् । भुव॑ना । विव॑क्षसे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पशुं न: सोम रक्षसि पुरुत्रा विष्ठितं जगत् । समाकृणोषि जीवसे वि वो मदे विश्वा सम्पश्यन्भुवना विवक्षसे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पशुम् । नः । सोम । रक्षसि । पुरुऽत्रा । विऽस्थितम् । जगत् । सम्ऽआकृणोषि । जीवसे । वि । वः । मदे । विश्वा । सम्ऽपश्यन् । भुवना । विवक्षसे ॥ १०.२५.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 25; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (नः) हमारे (पशुम्-रक्षसि) देखनेवाले-ज्ञानवाले आत्मा की तू रक्षा करता है (जीवसे) जीवन के लिये (विश्वा भुवना पश्यन्) समस्त भूतों को लक्ष करता हुआ (पुरुत्रा विष्ठितं जगत्) सर्वत्र विविधरूप से स्थित जगत् को (समाकृणोषि) सम्यक् प्रकट करता है, उत्पन्न करता है (वः-मदे वि) तेरे हर्षप्रद स्वरूप के निमित्त विशेषरूप से तुझे प्राप्त करते हैं। (विवक्षसे) तू महान् है ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा आत्मा का रक्षक है। सभी प्राणियों के जीवन के लिये सर्व प्रकार की विविध सृष्टि करता है। उसके हर्षप्रद स्वरूप को प्राप्त करना चाहिये ॥६॥

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    विषय

    'पशु' रक्षण व उत्तम जीवन

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = शान्त परमात्मन् ! आप (नः) = हमारे (पशुम्) = काम-क्रोधरूप पाशविक भाव को (रक्षसि) = उसी प्रकार कैद में, संयम में रखते हैं जैसे कि शेर को पिञ्जरे में रखा जाता है । [२] इस प्रकार 'कामः पशु, क्रोधः पशुः ' काम-क्रोधरूप इन पशुओं को पूर्णरूप से वश में रखते हुए आप (पुरुत्रा) = नाना प्रकार की कामनाओं में (विष्ठितम्) = विशेषरूप से स्थित, अर्थात् इस काम मय जगत् में विविध कामनाओं में विचरनेवाले (जगत्) = इन लोगों को (जीवसे) = उत्तम जीवन के लिये (समाकृणोषि) = करते हैं। कामशून्य जीवन तो कोई जीवन ही नहीं, वह तो अचेतनावस्था है। पर काममय जीवन भी कोई सुन्दर जीवन नहीं, वह जीवन पतनोन्मुख होता है । 'कामातता न प्रशस्ता न चैषेहासयकामता 'मनु कहते हैं कि काममयता तो ठीक है ही नहीं, पर अकामता भी तो प्रशस्त नहीं। प्रभु हमारे काम-क्रोध को संयत करके हमारे जीवन को सुन्दर बना देते हैं । [३] हे प्रभो ! इस प्रकार आप ही (विश्वा भुवना संपश्यन्) = सम्पूर्ण लोकों का ध्यान कर रहे हैं [Look after ]। (वः) = आपकी प्राप्ति के (विमदे) = विशिष्ट आनन्द में ही लोग (विवक्षते) = विशिष्ट उन्नति के लिये होते हैं । वास्तविक उन्नति तभी प्रारम्भ होती है जब कि जीव प्रभु प्राप्ति के लिए प्रभु की उपासना में आनन्द लेने लगता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु कृपा से हमारे काम-क्रोध संयत हों और इस प्रकार हमारा जीवन उत्तम बने । प्रभु ही हमारा पालन करनेवाले हैं, हम उनकी उपासना में चलते हुए निरन्तर उन्नत हों ।

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    विषय

    सर्वरक्षक प्रभु।

    भावार्थ

    हे (सोम) समस्त जगत् के उत्पन्न करने और चलाने हारे ! तू (नः) हमें (पशुं) पशु को गोपाल के समान (रक्षसि) रक्षा करता है। और तू (पुरुत्रा) बहुत प्रकारों से (वि-स्थितं जगत्) व्यवस्थित जगत् की भी (रक्षसि) रक्षा करता है। हे प्रभो ! तू (विश्वा भुवना) समस्त भुवनों को (सम्- पश्यन्) देखता हुआ (जीवसे) जीव गण के जीवन-सुख के लिये (सम् आकृणोषि) सब पदार्थों की उचित व्यवस्था करता है। हे मनुष्यो ! (विवक्षसे वः वि मदे) वह महान् प्रभु तुम्हें बहुत से सुख देने में समर्थ है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ६, १०, ११ आस्तारपंक्तिः। ३–५ आर्षी निचृत् पंक्तिः। ७–९ आर्षी विराट् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (नः) अस्माकं (पशुम्-रक्षसि) पश्यन्तं ज्ञानवन्तमात्मानं “आत्मा वै पशुः” [कौ० १२।७] रक्षसीति शेषः (जीवसे) जीवनाय (विश्वा भुवना पश्यन्) समस्तानि भूतानि लक्षयन् (पुरुत्रा विष्ठितं जगत्) बहुत्र विविधतया स्थितं जगच्च (समाकृणोषि) सम्यक् प्रकटयसि (वः-मदे वि) तव हर्षप्रदस्वरूपनिमित्तं विशिष्टतया त्वां प्राप्नुमः (विवक्षसे) त्वं महानसि ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, you protect and elevate our enlightened soul. You generate, protect and promote the settled world of vast variety as well for our holy and joyous living for a full life in the presence of your divine bliss. Watching the entire world of existence, you wax great in your glory.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा आत्म्याचा रक्षक आहे. सर्व प्राण्यांच्या जीवनासाठी सर्व प्रकारची सृष्टी रचतो. त्याच्या आनंदमय स्वरूपाला प्राप्त केले पाहिजे. ॥६॥

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