ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 25/ मन्त्र 7
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - सोमः
छन्दः - विराडार्षीपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
त्वं न॑: सोम वि॒श्वतो॑ गो॒पा अदा॑भ्यो भव । सेध॑ राज॒न्नप॒ स्रिधो॒ वि वो॒ मदे॒ मा नो॑ दु॒:शंस॑ ईशता॒ विव॑क्षसे ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । नः॒ । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । गो॒पाः । अदा॑भ्यः । भ॒व॒ । सेध॑ । रा॒ज॒न् । अप॑ । स्रिधः॑ । वि । वः॒ । मदे॑ । मा । नः॒ । दुः॒ऽशंसः॑ । ई॒श॒त॒ । विव॑क्षसे ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं न: सोम विश्वतो गोपा अदाभ्यो भव । सेध राजन्नप स्रिधो वि वो मदे मा नो दु:शंस ईशता विवक्षसे ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । नः । सोम । विश्वतः । गोपाः । अदाभ्यः । भव । सेध । राजन् । अप । स्रिधः । वि । वः । मदे । मा । नः । दुःऽशंसः । ईशत । विवक्षसे ॥ १०.२५.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 25; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (त्वम्-अदाभ्यः-नः-विश्वतः-गोपाः-भव) तू किसी से भी हिंसित न होनेवाला हमारा सर्व प्रकार से रक्षक हो । (राजन्) हे सर्वत्र प्रकाशमान परमात्मन् ! (स्रिधः-अप सेध) हिंसकों को दूर कर-नष्ट कर (दुःशंसः-नः-मा-ईशत) दुष्ट-प्रशंसक अहितवक्ता हम पर अधिकार न करें, (वः-मदे वि) तुझे हर्षनिमित्त विशेषरूप से मानते हैं। (विवक्षसे) तू महान् है ॥७॥
भावार्थ
परमात्मा किसी से भी बाधित न होनेवाला सदा रक्षक और हिंसकों को नष्ट करनेवाला है। हम पर अन्यथा अधिकार करनेवाले न हों, अतः उसके विशेष हर्षप्रद स्वरूप को हम धारण करें। वह महान् है ॥७॥
विषय
अहिंसित ग्वाला
पदार्थ
[१] हे (सोम) = शान्त परमात्मन् ! (त्वम्) = आप (नः) = हमारे लिये (विश्वतः) = सब ओर से (अदाभ्यः) = न हिंसित होनेवाले (गोपाः) = रक्षक (भव) = होइये। जैसे एक ग्वाला गौवों का रक्षण अप्रमत्तता से करता है, उसी प्रकार प्रभु हमारा रक्षण करनेवाले हों । सांसारिक ग्वाले को कोई शत्रु मार भी सकता है और तब गौवों को हानि पहुँचा सकता है। पर प्रभु हमारे अहिंसित ग्वाले हैं। अहिंसित होते हुए वे प्रभु सब ओर से होनेवाले 'काम-क्रोध' आदि शत्रुओं के आक्रमणों से हमारी रक्षा करते हैं । [२] हे (राजन्) = हमारे जीवनों को व्यवस्थित करनेवाले प्रभो ! (स्त्रिधः) = इन शत्रुओं को (अपसेध) = हमारे से दूर भगाइये। इनका हमारे पर आक्रमण न हो सके। (नः) = हमें (दुःशंसः) = बुराइयों को शंसन करनेवाला, बुरी बातों को अच्छे रूप में चित्रित करनेवाली शक्ति (मा ईशत) = मत दबा ले। हम उसकी बातों में आकर मृगया आदि व्यसनों में न फँस जाएँ। [क] मृगया तो बड़ा सुन्दर व्यायाम है, [ख] इसमें चल लक्ष्य के वेधन में कितनी एकाग्रता का अभ्यास होता है, [ग] खेती की रक्षा के लिए मृग आदि पशुओं की वृद्धि को रोकना आवश्यक भी तो है और [घ] इस प्रकार तो उन्हें एक ही योनि से शीघ्र मुक्ति ही मिल रही होती है। इस प्रकार की सुन्दर लगनेवाली हम उसकी युक्तियों में फँस न जाएँ। हम तो (वः) = आपकी प्राप्ति के (विमदे) = विशिष्ट आनन्द में (विवक्षसे) = विशिष्ट उन्नति के लिए हों। यह होगा तभी जब कि हम प्रभु द्वारा रक्षित होंगे, प्रभु का रक्षण ही हमें कामादि के आक्रमण से बचा सकेगा।
भावार्थ
भावार्थ - हम गौवें हों, प्रभु हमारे ग्वाले। तभी यह सम्भव होगा कि हम काम-क्रोधादि हिंस्र पशुओं के आक्रमण से बचे रहें ।
विषय
प्रभु से अपने पर दुष्टों के शासन न होने की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सोम) जगत् के सञ्चालक प्रभो ! तू (अदाभ्यः) अविनाशी है। (नः विश्वतः गोपाः भव) तू हमारा सब प्रकार से रक्षक हो। हे (राजन्) राजन् ! सबके स्वामिन् ! शासक ! स्वयं प्रकाश और अन्यों को प्रकाशित करने हारे ! तू (स्रिधः अप सेध) हमारा नाश करने वाले दुष्टों को शत्रु सेनाओं को राजा के तुल्य (अप सेध) दूर कर। (दुः-शंसः) दुःखदायी कठोर वचन कहने वाले (नः मा ईशत) हम पर शासन न करें। हे मनुष्यो ! (विवक्षसे) वह महान् प्रभु (वः वि मदे) आप लोगों को विविध आनन्द सुख देने के लिये हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ६, १०, ११ आस्तारपंक्तिः। ३–५ आर्षी निचृत् पंक्तिः। ७–९ आर्षी विराट् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! (त्वम्-अदाभ्यः-नः-विश्वतः-गोपाः-भव) त्वं केनाप्यहिंस्योऽस्माकं सर्वतो रक्षकः स्याः (राजन्) हे सर्वत्र राजमान परमात्मन् ! (स्रिधः-अपसेध) हिंसकान् “स्रिधः हिंसकान्” [ऋ० १।३६।७ दयानन्दः] दूरीकुरु नाशय वा (दुःशंसः नः मा ईशत) दुष्टस्य शंसकोऽहितवक्ताऽस्मान् मा स्वामित्वं करोतु (वः मदे वि) त्वां हर्षनिमित्तं विशिष्टतया मन्यामहे (विवक्षसे) त्वं महानसि ॥७॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, be our guide and dauntless guardian and protector all round in the world. O ruler of the world, ward off all errors, failures, violence and foemen far from us. Let none wicked and malicious boss over us. O lord, you are waxing great in your glory for the joy of all.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा कुणाकडूनही बाधित न होणारा, सदैव रक्षक व हिंसकांना नष्ट करणारा आहे. अहितकारी लोकांनी आमच्यावर अधिकार गाजवू नये यासाठी त्याच्या विशेष आनंदस्वरूपाला आम्ही धारण करावे. कारण तो महान आहे. ॥७॥
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