ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 25/ मन्त्र 9
ऋषिः - विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्रः
देवता - सोमः
छन्दः - विराडार्षीपङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
त्वं नो॑ वृत्रहन्त॒मेन्द्र॑स्येन्दो शि॒वः सखा॑ । यत्सीं॒ हव॑न्ते समि॒थे वि वो॒ मदे॒ युध्य॑मानास्तो॒कसा॑तौ॒ विव॑क्षसे ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । नः॒ । वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ । इन्द्र॑स्य । इ॒न्दो॒ इति॑ । शि॒वः । सखा॑ । यत् । सी॒म् । हव॑न्ते । स॒म्ऽइ॒थे । वि । वः॒ । मदे॑ । युध्य॑मानाः । तो॒कऽसा॑तौ । विव॑क्षसे ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नो वृत्रहन्तमेन्द्रस्येन्दो शिवः सखा । यत्सीं हवन्ते समिथे वि वो मदे युध्यमानास्तोकसातौ विवक्षसे ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । नः । वृत्रहन्ऽतम । इन्द्रस्य । इन्दो इति । शिवः । सखा । यत् । सीम् । हवन्ते । सम्ऽइथे । वि । वः । मदे । युध्यमानाः । तोकऽसातौ । विवक्षसे ॥ १०.२५.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 25; मन्त्र » 9
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वृत्रहन्तम-इन्दो) हे अत्यन्त पापविनाशक ! आनन्दरसपूर्ण परमात्मन् ! (त्वम्-इन्द्रस्य शिवः सखा) तू आत्मा का कल्याण-साधक मित्र है। (तोकसातौ समिथे) संतानों के प्राप्तिरूप संग्राम में-गृहस्थ आश्रम में (युध्यमानाः) संघर्ष करते हुए (हवन्ते) अर्चित करते हैं। (वः-मदे वि) तेरी हर्षनिमित्त विशिष्टरूप से हम स्तुति करते हैं। (विवक्षसे) तू महान् है ॥९॥
भावार्थ
परमात्मा उपासक के पापों को नष्ट करनेवाला और आनन्दरस से पूर्ण करनेवाला कल्याणकारी मित्र है। गृहस्थ आश्रम में संतानों की प्राप्ति के लिये वह स्तुति करने योग्य है ॥९॥
विषय
वह 'शिव-सखा'
पदार्थ
[१] हे (वृत्रहन्तम) = हमारे ज्ञान पर आवरणरूप इस काम को सर्वाधिक नष्ट करनेवाले (इन्दो) = शक्तिशालिन् व ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! (त्वम्) = आप (नः) = हमारे (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (शिवः सखा) = कल्याणकर व 'शो तनूकरणे' प्रज्ञान को क्षीण करनेवाले मित्र हैं। हमारे में से जो भी इन्द्रियों को जीतने का अभ्यास करता है, हे प्रभो ! आप उसके मित्र होते हैं, आप इसके लिए वृत्र का विनाश करनेवाले होते हैं। इस वृत्र का विनाश करके ही तो आप उसके अज्ञान को क्षीण करते हैं। अज्ञान को दूर करनेवाले 'शिव सखा' आप ही हैं। संसार में भी वही सच्चा मित्र है जो सद्बुद्धि दे, नेक सलाह दे । हाँ में हाँ मिलानेवाले तो सच्चे मित्र नहीं होते । [२] 'आप ही शिव सखा हैं' यही कारण है कि (यत्) = जो (तोकसातौ) = [तु-वृद्धि, पूर्ति, हिंसा] शत्रुओं की हिंसा के द्वारा वृद्धि व पूर्ति की प्राप्ति के निमित्त (समिथे) = संग्राम में, काम-क्रोधादि शत्रुओं के साथ चलनेवाले अध्यात्म संग्राम में (युध्यमाना:) = कामादि शत्रुओं से युद्ध करते हुए पुरुष (सीम्) = सर्वतः (हवन्ते) = आपको ही पुकारते हैं। वस्तुतः आपने ही तो विजय करनी है, व्यक्तियों के लिए इस विजय का सम्भव नहीं । [३] आप इस विजय को करवाइये ही, जिससे (वः) = आपकी प्राप्ति के (विमदे) = विशिष्ट आनन्द में विवक्षसे हम विशिष्ट उन्नति के लिये हों। बिना विजय के उन्नति नहीं और बिना आपकी कृपा के विजय नहीं ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु ही हमारे शिव सखा हैं, ये ही हमें युद्ध में विजय प्राप्त कराते हैं ।
विषय
द्रोही से रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (वृत्रहन्तम) दुष्ट पुरुषों के सबसे बड़े नाशक ! हे धनों को प्राप्त होने हारे ! हे (इन्दो) परमैश्वर्यवन् ! (त्वं नः शिवः सखा) तू हमारा परम कल्याणकारी मित्र है और तू (इन्द्रस्य शिवः सखा) ऐश्वर्यवान् का भी परम सखा है। (यत्) क्योंकि (तोक-सातौ समिथे) धनैश्वर्य को प्राप्त करने के लिये संग्राम में (युद्धयमानाः) युद्ध करते हुए मनुष्य भी (सीं हवन्ते) सर्वप्रकार से तुझे रक्षार्थ पुकारते हैं। (विवक्षसे वः वि मदे) वह प्रभु हे मनुष्यो ! तुम्हें विविध सुख देने में समर्थ है। (२) अध्यात्म में सोम वीर्य है। वह सब दुःखों का नाशक, आत्मा, प्राण का शिव सखा है। (तोक-सातौ) सन्तान प्राप्ति के निमित्त यत्नशील जन भी उसी को प्राप्त करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विमद ऐन्द्रः प्राजापत्यो वा वसुकृद्वा वासुक्र ऋषिः ॥ सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ६, १०, ११ आस्तारपंक्तिः। ३–५ आर्षी निचृत् पंक्तिः। ७–९ आर्षी विराट् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वृत्रहन्तम-इन्दो) हे अत्यन्त-पापनाशक-आनन्दरसपूर्णं परमात्मन् ! (त्वम्-इन्द्रस्य शिवः सखा) त्वमात्मनः कल्याणसाधकः सखाऽसि (तोकसातौ समिथे) प्रजानां सन्ततीनां प्राप्तिरूपे संग्रामे गृहस्थाश्रमे (युध्यमानाः) संघर्षं कुर्वाणाः (यत् सीं हवन्ते) त्वामामन्त्रयन्तेऽर्चन्ति (वः-मदे वि) त्वां हर्षनिमित्तं विशिष्टतया स्तुमः (विवक्षसे) त्वं महानसि ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, greatest dispeller of darkness and want and deprivation, our gracious friend as well as gracious friend of Indra, the ruler, people all round, struggling in their battle of life for the advancement of their future generations, call upon you for help, protection and success since, then, you are waxing great and glorious in your joy for the good of all.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपासकाच्या पापांना नष्ट करणारा व आनंद रसाने पूर्ण करणारा कल्याणकारी मित्र आहे. गृहस्थाश्रमात संतानाच्या प्राप्तीसाठी त्याचीच स्तुती केली पाहिजे. ॥९॥
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